सीरवी समाज - ब्लॉग

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Posted By : Posted By Raju Seervi on 09 Feb 2022, 07:33:06
माता पिता की अति महत्वाकांक्षा से 27-28-32 उम्र से अदिक की कुंवारी लड़कियां घर बैठी हैं। अगर अभी भी माँ-बाप नहीं जागे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो सकती है। हमारा समाज आज  बच्चों के  विवाह को लेकर इतना सजग हो गया है कि आपस में रिश्ते ही नहीं हो पा रहे हैं। समाज में आज 27-28-32 उम्र तक की बहुत सी कुँवारी लड़कियाँ घर बैठी है, क्योंकि इनके सपने हैसियत से भी बहुत ज्यादा है इस प्रकार के कई उदाहरण है। ऐसे लोगों के कारण समाज की छवि बहुत ख़राब हो रही है। सबसे बड़ा मानव सुख, सुखी वैवाहिक जीवन होता है। पैसा भी आवश्यक है, लेकिन कुछ हद तक। पैसे की वजह से अच्छे रिश्ते ठुकराना गलत है। पहली प्राथमिकता सुखी संसार व् अच्छा घर-परिवार होना चाहिये। ज्यादा धन के चक्कर में अच्छे रिश्तों को नजर-अंदाज करना गलत है। सपंति खरीदी जा सकती  है लेकिन गुण नहीं। मेरा मानना है कि घर-परिवार और लड़का अच्छा देखें लेकिन ज्यादा के चक्कर में अच्छे रिश्तें हाथ से नहीं जाने दें। सुखी वैवाहिक जीवन जियें। 30 की उम्र के बाद विवाह नहीं होता, समझौता होता है और मेडिकल स्थिति से भी देखा जाए तो उसमें बहुत सी समस्याएँ उत्तप..
Posted By : Posted By गोविन्द सिंह पंवार on 29 Dec 2021, 03:57:43
।।संस्कृति का उत्थान या पतन..!!।।
भारत के महान शायर कवि मुहम्मद इकबाल ने लिखा है कि,
” यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।”
यह भाव हमारी महान सांस्कृतिक विरासत के मूल्यों को अक्षुण्ण रखने में हमारे पुरखो के योगदान की गाथा का सही बखान है जिन्होंने अपनी संस्कृति को मिटने नही दिया। समय के साथ विश्व की प्राचीन सांस्कृतिक विरासतें-यूनान,मिश्र व रोम की संस्कृति मिट गई लेकिन भारतीय संस्कृति को आंच नही आई।जबकि हमारी सांस्कृतिक विरासत को मिट्टी में मिलाने के लिए क्रूर आक्रांताओं और दुश्मनों ने बहुत कोशिश की। विदेशी विधर्मी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति के महान धरोहरों को नष्ट-विनष्ट करने में कोई कसर नही छोड़ी और हमारी महान परम्पराओ पर भी जबर्दस्त चोट की। क्रूर आक्रांताओं ने हमारे पुरखो पर अत्याचार-अनाचार किए,हमारी नारियों पर जघन्य दुष्कृत्य किए और धर्म परिवर्तन का दबाव डाला लेकिन उन्होंने अपनी वीरता और बुद्धिमता से संस्कृ..
Posted By : Posted By गोविन्द सिंह पंवार on 02 Nov 2021, 01:49:13
मेरे प्यारे भाईयों एवं बहनों
सादर जय श्री आईमाताजी की।

सीरवी समाज डॉट कॉम वेबसाइट की और से आप सभी का हार्दिक स्वागत एंव अभिनंदन है। सर्वप्रथम आप सभी सीरवी भाईयों और बहनों को दीपावली एवं भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें देते हुए माँ लक्ष्मी एवं भगवान गणपति से प्राथना करते हैं कि ज्योति पर्व दीपावली आपके जीवन में आनन्द एवं मंगल के अगणित दीप जलाता रहे। देवी लक्ष्मी एवं भगवान श्री गणेश जी कृपा से आपका घर रिद्धि-सिद्धि एवं धन-धान्य से परिपूर्ण एवं आपका जीवन खुशहाल रहे। अंधेरे के अन्त और उजाले के आगाज का प्रतीक यह त्योहर आपके जीवन और हमारे सीरवी समाज को रौशन करे, यही हमारी मंगल कामना हैं।

मेरा ऐसा मानना है कि आप जिस गंभीरता से अपने काम में गुणवत्ता देते हैं परिवार के साथ खुशियां मनाने को भी वही अहमियत दें।

हम सभी परिवार में कई जिम्मेदारियां निभाते हैं - पिता, माता, पति, पत्नी, भाई, बहन व अन्य रिश्ते-नाते। हमें चाहिए कि हर एक जिम्मेदारी निभाते हुए खुशियां बांटें। अपनों के साथ बिताये सुनहरे पलों को सब के लिए यादगार बनाएं।

आइए, हम सब ये संकल्प ले..
Posted By : Posted By Raju Seervi on 25 Oct 2021, 12:57:42
बीती को भूलना-एक मंत्र :- मनोहर सीरवी

दीपावली - प्रकाश पर्व! समृद्धि की देवी लक्ष्मी की उपासना का पर्व। अंधेरे पर उजाले की विजय का प्रतिक । बुराई पर अच्छाई की जीत। अज्ञानता पर ज्ञान का परिचय, आदि,आदि....।

आज हमारा सीरवी समाज भी विकास के बावजूद कई तरह के विवादों से जकड़ा हुआ है। कुरीतियों, आपसी राग-द्वेष समाज को जकड़े हुए है। आपसी वैमनस्यता इतनी ज्यादा है कि लगता है कि समाज बिखर जायगा। इन सबका मूल कारण हमारे समाज में एक दूसरे की टांग खिंचाई हैं। हम अहंकार में डूबे हुए है। सिर्फ स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ मान बैठे है। समाज तभी आगे बढ़ेगा जब हम सबको साथ लेकर चलें। बुराइयों की जड़ पर कुठाराघात करें।

हम अपना काम सही तरीके से तभी कर पायेंगे जब पिछली भूलों, कमियों गलतफहमियों, कमजोरियों को मन से निकाल देंगे। इन बातों को भूलने से प्रतिकूलता की भावना, अप्रिय प्रसंग के कडुवे अनुभव, व्यर्थ की हाय हाय मिट जाती हैं।

जो व्यक्ति हठ और नकारात्मक विचारों का शिकार रहता है, वह निरंतर पछतावे और बैर-विरोध की आग में जलता है। आत्मग्लानि का अनुभव करता है। उसके ह्रदय में हमेश..
Posted By : Posted By Raju Seervi on 01 Jul 2021, 05:43:58
सुखी जीवन का आधार एवं मानव का कर्तव्य

सुख किसे कहते हैं और वह कैसे प्राप्त होता हैं?..... इस प्रश्न पर विद्वानों के विभिन्न मत हैं।
मनुष्य के पास अथाह धन हो तो वह उससे तमाम मन चाही वस्तुएँ खरीद सकता है। हालांकि कितना भी धन क्यों न हो, उससे जीवन के लिये सुख नहीं खरीदा जा सकता है। स्पष्ट है कि मानव जीवनपर्यन्त जिस सुख की तलाश में व्याकुल रहता है, वह वास्तव में अनमोल होता है। यह सुख असल में कोई वस्तु न होकर एक भाव होता है। चूँकि यह भाव है तो उसे-महसूस भी करना होगा। यहाँ पर प्रश्न उठता है कि आखिर महसूस कैसे हो।
प्रायः यह देखा गया है कि कोई गरीब व्यक्ति किसी धनी व्यक्ति की तुलना में अधिक सुखी रहता है। इसका मुख्य कारण है कि वह छोटी छोटी वस्तुओं में अपने लिये सुख खोज लेता है। स्वास्थ्य भी सुखी जीवन का एक महत्वपूर्ण आधार होता है। एक स्वस्थ व सुखी दिनचर्या तभी बन सकती है जब आपको अच्छा भोजन और सुकून भरी नींद मिले। सुखी रहने के लिए व्यक्ति के मन में संतोष का होना भी अनिवार्य शर्त है। अन्यथा लालसा की अग्नि, सुख को भस्म कर सकती है। अपने जीवन के सुखमय बनाने के लिये हम..
Posted By : Posted By दलपत सिंह राठौड़ (बिलाड़ा ) on 21 May 2021, 06:
"विनाशक व्याधि"

मास फागुन में आँधी सी।
आयी विनाशक व्याधि सी।।

जाने किस ऋतुचक्र में फँसकर।
बेकसूर, निरपराधों को चटकर।
दुष्ट मायावी, कुलटा रूप लेकर।
अनगिनत बंधुओं पर पैर पसारकर।।
बन बैठी गृह स्वामिनी सी।
मुंह फुलाएं कुलघातिनी सी।।
आयी विनाशक...............

जाति,धर्म, मत,पंथ से ऊपर उठकर।
क्षेत्र, समुदाय विशेष से नाता तोड़कर।
नाम कोरोना विश्व प्रसिद्ध रखकर।
अकड़ अपनी हर घर-घर फैलाकर।।
बिन बुलाए मेहमान सरीखी सी।
बन गई भारत की साम्राज्ञी सी।।
आयी विनाशक..................

अपनों को अपनों से लूटकर।
असहाय, अनाथ उन्हें बनाकर।
रणभूमि अपनी यहाँ सुदृढ़कर।
कमजोर निर्धनों को निगलकर।।
ताक रही क्रूर गिद्ध दृष्टि सी।
आ बैठी निकृष्ट घमंडी सी।।
आयी विनाशक.............

पर आज यह संकल्प धारणकर।
मर्यादा,अनुशासित नियम अपनाकर।
तुझे भगा देंगे मन में निश्चयकर।
बनने नहीं देंगे पक्का यहाँ घर।।
देखती रह जाएगी तू ठगी सी।
शीघ्र बनाएंगे भू को निरोगी सी।।
आयी विनाशक.............

आओ हम सब संगठित होकर।
सरकारी निर्देशों की पालना कर।
महामारी को क्षिति..
Posted By : Posted By Raju Seervi on 26 Mar 2021, 01:14:39
मेरे सभी वन्दनीय बंधुजन-बहनों,
सादर वन्दे!
जय माँ श्री आईजी सा। सीरवी समाज की वेबसाइट "सीरवी समाज डॉट कॉम परिवार" की और से आप सभी का दिल की अन्तरंगता सु हार्दिक वन्दन-अभिनन्दन ।
समाज के समस्त सीरवी बन्धुओं, वरिष्ठ नागरिकों एवं अनुज भाई बहनों, वेबसाइट के विज्ञापन दाताओं, रचनाकारों, वेबसाइट प्रतिनिधियों तथा समस्त वेबसाइट स्टाफ को रंगों के पावन पर्व होली महोत्सव की दिल से हार्दिक बधाई एवं मंगलमय जीवन की अनेकानेक शुभकामनायें।
परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि उत्तरायण का सूर्य आप सबकी जिन्दगी में अपरम्पार खुशियों की नव किरणें बिखेरे और सुख-शान्ति को आपके जीवन में स्थिरता प्रदान करे।
बंधुओं, समाज सेवा निश्चित ही कड़ी साधना है। यदि आप सच्चे समाज सेवी है तो बिना फल की चिंता किये अपना निस्वार्थ भाव से कार्य कीजिए। आपके मन में सेवा भावना होनी चाहिए, दिखावा नहीं। समाज सेवा हेतु किसी शैक्षिक संस्था के डिग्री की कोई जरूरत नही है और न ही किसी सरकारी पद की। आप स्वयं देख लें जितने संत महात्मा हुये है वे कोई ज्यादा पढ़े लिखे लोग नही है लेकिन उमने सेवा भ..
Posted By : Posted By Raju Seervi on 13 Mar 2021, 14:08:52
आदरणीय आत्मीय जन
सादर अभिवादन।

आप फेसबुक या व्हाट्सएप समूहों में एक चित्रकार की कहानी अवश्य पढ़ी होगी जो एक चित्र बनाकर चौराहे पर इस आशय से टांग दिया कि इसमें जो कमियां हों, निशान लगा दे। सुबह से शाम तक हजारों निशान अपने ज्ञान को प्रदर्शित करने हेतु लग गये। परन्तु उसी चित्र को हूबहू उस आशय से दूसरे दिन टांगा गया कि इसमें जो कमियाँ हो, उसे सुधार देवें तो दो दिन तक उसमें कोई सुधार नहीं किया गया। इससे यह सीख़ तो मिलती है कि कमियाँ निकालने वाले खूब है; समाधान या सुधार का रास्ता सुझाने वाले बिरले ही हैं।

ठीक उसी तरह हमारे समाज की भी हालत है। अपनी कमी ढूंढने के बजाया दूसरों की कमियाँ को ढूंढ-ढूंढकर उसे छोटा या अपराधी बनाने या अपमानित कर अपने को ज्ञानी एवं बड़ा तथा अनुभवी एवं न्यायप्रिय एवं निष्पक्ष प्रदर्शित करने की होड़ सी लगी है परन्तु आत्मीय समाधान सुझाने वालों की कमी सी लगती है। यह प्रमाणित है कि गलतियाँ उसी से होंगी जो काम करेगा, जो कुछ करेगा ही नहीं, वह दूसरे की कमी निकालकर ही अपनी कमी जाहिर कर देता है। अच्छे लोगों में भी कमियाँ है तथा बुरे लोगों में..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 19 Jan 2021, 11:06:03
एक आदमी था, जो हमेशा अपने संगठन में सक्रिय रहता था, उसको सभी जानते थे ,बड़ा मान सम्मान मिलता था; अचानक किसी कारण वश वह निष्क्रीय रहने लगा , मिलना - जुलना बंद कर दिया और संगठन से दूर हो गया।

कुछ सप्ताह पश्चात् एक बहुत ही ठंडी रात में उस संगठन के मुखिया ने उससे मिलने का फैसला किया । मुखिया उस आदमी के घर गया और पाया कि आदमी घर पर अकेला ही था। एक बोरसी में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आगंतुक मुखिया का बड़ी खामोशी से स्वागत किया।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। केवल आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए ही देखते रहे। कुछ देर के बाद मुखिया ने बिना कुछ बोले, उन अंगारों में से एक लकड़ी जिसमें लौ उठ रही थी (जल रही थी) उसे उठाकर किनारे पर रख दिया। और फिर से शांत बैठ गया।

मेजबान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे समय से अकेला होने के कारण मन ही मन आनंदित भी हो रहा था कि वह आज अपने संगठन के मुखिया के साथ है। लेकिन उसने देखा कि अलग की हुई लकड़ी की आग की लौ धीरे धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग बिल्कुल बुझ गई। उसमें कोई ताप नहीं बचा। उस लकड़ी ..
Posted By : Posted By Raju Seervi on 11 Jan 2021, 01:12:55
हमें अपने समाज पर गर्व है

प्रिय बंधुओं
आप सभी का सादर अभिवादन है

आप सभी को मकर सक्रांति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनायें। हमारे वरिष्ठजनों ने अपनी मेहनत, लगन और सामाजिक सेवा से समाज को आज इस स्तिथि में ला दिया है कि हम आज अन्य समाजों में सर्वाधिक आदर की दृष्टि से देखे जाते हैं। यह हमारे प्रयासों का फल है।

हमारा मूल उद्देश्य ही जन सेवा है। सेवा भाव ही किसी समाज का प्राण तत्व होता है। ये समाज है, अगर आपने सच्चे मन से जन सेवा कि है तो निश्चत ही जन सामान्य उसे सराहेगा।

बंधुओं, समाजसेवा निश्चित ही एक कड़ी साधना है। यदि आप सच्चे समाजसेवी हैं तो बिना फल को सोचे, अपना कार्य निरन्तर करते हुए अपना अनुभव समाज सहयोग में करते जाएं। संत कबीरदास, रहीम, तुलसीदास आदि लोग कौन ज्यादा पढ़े-लिखे थे लेकिन इन लोगों ने समाज और देश को राह दिखाई, जनता की आँखे खोली, अपने समाज हित के कार्यों से ऊपरी चमक दमक कोई मायने नहीं रखता।

जो बोते हैं, उन्हीं को काटने का अवसर भी प्राप्त होता है। जो जैसा बोता है, उसी के अनुसार उसको वैसा ही चाकने को मिलता है। इसी तरह प्..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 08 Jan 2021, 06:01:49
सीरवी समाज के सभी दानवीर महानुभावों और समाजसेवियों को मेरा सादर चरण वन्दन सा
जय माँ श्री आईजी सा।
यह पोस्ट लिखते हुए मुझे गर्व होता है कि अपना समाज अपने नाम में समाहित "सीर" शब्द की सार्थकता की दिशा में तेज गति से बढ़ रहा है।यह भावना समाज को नव ऊंचाईयां प्रदान करेगी,ऐसा मुझे विश्वास है। समाज के लोगो मे दान की प्रवृति में गजब का अर्पण और उत्साह देखने को मिलता है। आज समाज में जहां देखो वहाँ कुछ न कुछ नया हो रहा है। समाज के लोगो की दान की अच्छी प्रवृति के कारण ही सांस्कृतिक धरोहर के रूप में माँ श्री आईजी के धाम "वडेर" बन रहे हैं।शिक्षा मंदिर और छात्रावास बन रहे हैं।जगह-जगह गौ-शाला में समाज के बंधुजन अपनी महत्ती भूमिका निभा रहे है। बड़ी वडेरों में नियमित भोजन शाला का संचालन हो रहा है। अपनी मातृभूमि के विद्यालयों में उदार दिल से योगदान कर रहे हैं। समाज के धनी वर्ग विराट सोच और विशाल सहृदयता से आर्थिक रूप से विपन्न बंधुजनों की मदद कर रहे हैं।आज श्री आईजी सेवा समिति,सीरवी किसान सेवा समिति ,संस्कार केंद्र और अन्य ट्रस्ट जैसे श्री आईजी बालिका फाउंडेशन इस दिशा ..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 08 Jan 2021, 06:00:45
जिसने भी लिखा कमाल का लिखा है..

पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें...

पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था..

पुस्तक के बीच पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था..

कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था..

हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था..

माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी.. न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी.. सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।

एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं..

स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था , दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है ?

पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 07 Jan 2021, 05:50:45
सीरवी समाज के यूवा साथियों को मेरा सादर नमस्कार।

जय माँ श्री आईजी सा।
मैं देख रहा हूँ कि समाज के युवाजन अपनी खोई हुई शक्ति को संगठित कर रहे हैं।वे अपने भीतर की ऊर्जा की महत्ता को जान रहे हैं। जिस समाज-राष्ट्र का युवा अपनी अंतर्निहित ताकत-क्षमता-ऊर्जा को समझ लेता है,उस समाज व राष्ट्र का उत्थान हो जाता है। कहते है कि यूवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है. युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाने की सामर्थ्य रखते हैं। युवा समाज-राष्ट्र का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के बीच का मजबूत सेतु भी युवा ही हैं।इसी मजबूत सेतु से हम बड़ी से बड़ी मंजिल को पा सकते है। युवा राष्ट्र-समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं।  युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं. उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है।
मुझे अपने समाज के युवाओं की शक्ति-क्षमता-ऊर्जा पर पूर्ण भरोसा है,लेकिन मंजिल केवल भरोसे से ही नही पाई जा सकती है। मंजिल को पाने के लिए बहुत सी विधाओं की आवश..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 01 Jan 2021, 14:31:19
ना अब और नहीं युवा पीढ़ी

घूम रहा है युवा नशे में...
पागलपन सा छाया है...
मदहोशी में उसके लिए ना कोई अपना ना कोई पराया...
शराब, तम्बाकू, गुटखे ने उसके मन पर काबू पाया है...
आज नशे की प्रवृत्ति ने मैला समाज...ना जाने क्यों नहीं हो रहा है लोगो को इनका एहसास...
जो था कल का उजाला...नशे में उसका जीवन अंधकार में कर डाला है...
शराब तो एक बहाना हो गया...
घर वालों से छुपकर धुँवा उड़ाना हो गया है...
अब ना जाने कोन युवा को समझाये...
यू ही इनका जीवन अंधकार में ...
ना जाने क्यों इस नशे की प्रवृत्ति को समाज ने अपनाया...
2 मिनट के मजे के लिए जीवन है बर्बाद कराया...
माता पिता ने पैसे दिए सोचा उज्ज्वल रहेंगे...
उनको क्या पता कि पेप्सी की जगह शराब पियेंगे...
युवावों ने नशे में सपनों का महल ढ़हाया...
लेकर कर्ज उसने गिरवी अपना मकान रखवाया...
शोक शौक में सिरगेट का धुँवा उड़ाया...
मण्डली में अपनी धाक जमाने धुँवा फिर से उड़ाया...
मीठे जहर की बोतल ने....
घर परिवार को पर सड़क पर लाया है...
होश में आया जब मानव तो अपना शरीर ही खोया...
अभी सम्बल जा ए मानव तू...
ये शौक नहीं बर्बादी है...बर्बादी हैं..!

निति..
Posted By : Raju Seervi on 11 Dec 2020, 14:36:35
*सीरवी समाज में महिलायें सामाजिक स्तर पर जो सकारात्मक विचार धारा रखकर सामाजिक कार्य कर रही हैं, उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिये*

सीरवी समाज में महिलायें सामाजिक स्तर पर जो सकारात्मक विचार धारा रखकर सामाजिक कार्य कर रही हैं, उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिये। जिनका प्रयास सराहनीय है, उनके कार्य की प्रशंसा करना स्वार्थ सिद्धि नहीं, बल्कि सच्चाई को उजागर करना होता है। समाज में बढ़ती हुई द्वेष की भावना से प्रेरित प्रतिस्पर्धा को खत्म करना जरुरी हो गया है। सामाजिक स्तर पर व्यक्तिगत एवं सामूहिक द्वेष की भावना को भुलाकर एकजुट होकर समाज की उन्नति एवं उत्थान के लिये प्रयास करें। यह वक्त की माँग है। जैसे किसी भारी बोझ को उठाने के लिये दो हाथ की बजाय दस हाथ तथा दस हाथ के बजाय सौ हाथ सहायक होते हैं। उसी तरह सामाजिक कुरीतियों से दबे बोझ को उठाने के लिये सकारात्मक सोच भरे सौ हाथ जरुरी हैं।

सर्वप्रथम अपने मन में दबी हीनता की भावना को निकालकर दूर फेंकें। अपने में दबी प्रतिभा को उजागर करके, सामूहिक प्रयास से, समाज में फैली अज्ञानता की धूल को पोंछा डालें एवं नय..
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