सीरवी समाज - http://www.seervisamaj.com - ब्लॉग

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Posted By : Posted By Manohar Seervi on 19 Jan 2021, 11:06:03
एक आदमी था, जो हमेशा अपने संगठन में सक्रिय रहता था, उसको सभी जानते थे ,बड़ा मान सम्मान मिलता था; अचानक किसी कारण वश वह निष्क्रीय रहने लगा , मिलना - जुलना बंद कर दिया और संगठन से दूर हो गया।

कुछ सप्ताह पश्चात् एक बहुत ही ठंडी रात में उस संगठन के मुखिया ने उससे मिलने का फैसला किया । मुखिया उस आदमी के घर गया और पाया कि आदमी घर पर अकेला ही था। एक बोरसी में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आगंतुक मुखिया का बड़ी खामोशी से स्वागत किया।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। केवल आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए ही देखते रहे। कुछ देर के बाद मुखिया ने बिना कुछ बोले, उन अंगारों में से एक लकड़ी जिसमें लौ उठ रही थी (जल रही थी) उसे उठाकर किनारे पर रख दिया। और फिर से शांत बैठ गया।

मेजबान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे समय से अकेला होने के कारण मन ही मन आनंदित भी हो रहा था कि वह आज अपने संगठन के मुखिया के साथ है। लेकिन उसने देखा कि अलग की हुई लकड़ी की आग की लौ धीरे धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग बिल्कुल बुझ गई। उसमें कोई ताप नहीं बचा। उस लकड़ी ..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 08 Jan 2021, 06:01:49
सीरवी समाज के सभी दानवीर महानुभावों और समाजसेवियों को मेरा सादर चरण वन्दन सा
जय माँ श्री आईजी सा।
यह पोस्ट लिखते हुए मुझे गर्व होता है कि अपना समाज अपने नाम में समाहित "सीर" शब्द की सार्थकता की दिशा में तेज गति से बढ़ रहा है।यह भावना समाज को नव ऊंचाईयां प्रदान करेगी,ऐसा मुझे विश्वास है। समाज के लोगो मे दान की प्रवृति में गजब का अर्पण और उत्साह देखने को मिलता है। आज समाज में जहां देखो वहाँ कुछ न कुछ नया हो रहा है। समाज के लोगो की दान की अच्छी प्रवृति के कारण ही सांस्कृतिक धरोहर के रूप में माँ श्री आईजी के धाम "वडेर" बन रहे हैं।शिक्षा मंदिर और छात्रावास बन रहे हैं।जगह-जगह गौ-शाला में समाज के बंधुजन अपनी महत्ती भूमिका निभा रहे है। बड़ी वडेरों में नियमित भोजन शाला का संचालन हो रहा है। अपनी मातृभूमि के विद्यालयों में उदार दिल से योगदान कर रहे हैं। समाज के धनी वर्ग विराट सोच और विशाल सहृदयता से आर्थिक रूप से विपन्न बंधुजनों की मदद कर रहे हैं।आज श्री आईजी सेवा समिति,सीरवी किसान सेवा समिति ,संस्कार केंद्र और अन्य ट्रस्ट जैसे श्री आईजी बालिका फाउंडेशन इस दिशा ..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 08 Jan 2021, 06:00:45
जिसने भी लिखा कमाल का लिखा है..

पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें...

पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था..

पुस्तक के बीच पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था..

कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था..

हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था..

माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी.. न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी.. सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।

एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं , यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं..

स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था , दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है ?

पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 07 Jan 2021, 05:50:45
सीरवी समाज के यूवा साथियों को मेरा सादर नमस्कार।

जय माँ श्री आईजी सा।
मैं देख रहा हूँ कि समाज के युवाजन अपनी खोई हुई शक्ति को संगठित कर रहे हैं।वे अपने भीतर की ऊर्जा की महत्ता को जान रहे हैं। जिस समाज-राष्ट्र का युवा अपनी अंतर्निहित ताकत-क्षमता-ऊर्जा को समझ लेता है,उस समाज व राष्ट्र का उत्थान हो जाता है। कहते है कि यूवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है. युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाने की सामर्थ्य रखते हैं। युवा समाज-राष्ट्र का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के बीच का मजबूत सेतु भी युवा ही हैं।इसी मजबूत सेतु से हम बड़ी से बड़ी मंजिल को पा सकते है। युवा राष्ट्र-समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं।  युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं. उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है।
मुझे अपने समाज के युवाओं की शक्ति-क्षमता-ऊर्जा पर पूर्ण भरोसा है,लेकिन मंजिल केवल भरोसे से ही नही पाई जा सकती है। मंजिल को पाने के लिए बहुत सी विधाओं की आवश..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 01 Jan 2021, 14:31:19
ना अब और नहीं युवा पीढ़ी

घूम रहा है युवा नशे में...
पागलपन सा छाया है...
मदहोशी में उसके लिए ना कोई अपना ना कोई पराया...
शराब, तम्बाकू, गुटखे ने उसके मन पर काबू पाया है...
आज नशे की प्रवृत्ति ने मैला समाज...ना जाने क्यों नहीं हो रहा है लोगो को इनका एहसास...
जो था कल का उजाला...नशे में उसका जीवन अंधकार में कर डाला है...
शराब तो एक बहाना हो गया...
घर वालों से छुपकर धुँवा उड़ाना हो गया है...
अब ना जाने कोन युवा को समझाये...
यू ही इनका जीवन अंधकार में ...
ना जाने क्यों इस नशे की प्रवृत्ति को समाज ने अपनाया...
2 मिनट के मजे के लिए जीवन है बर्बाद कराया...
माता पिता ने पैसे दिए सोचा उज्ज्वल रहेंगे...
उनको क्या पता कि पेप्सी की जगह शराब पियेंगे...
युवावों ने नशे में सपनों का महल ढ़हाया...
लेकर कर्ज उसने गिरवी अपना मकान रखवाया...
शोक शौक में सिरगेट का धुँवा उड़ाया...
मण्डली में अपनी धाक जमाने धुँवा फिर से उड़ाया...
मीठे जहर की बोतल ने....
घर परिवार को पर सड़क पर लाया है...
होश में आया जब मानव तो अपना शरीर ही खोया...
अभी सम्बल जा ए मानव तू...
ये शौक नहीं बर्बादी है...बर्बादी हैं..!

निति..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 04 Dec 2020, 01:48:33
कोरोना की वेक्सीन हम ही

जैसे हर निखरती चीज सोना नहीं होता,,,,
वैसे हर खासी का मतलब कोरोना नहीं होता,,,,!
केवल जल्दी जल्दी में हाथ धोना,हाथ धोना नहीं होता,,,
30 सेकंड साबुन से हाथ धोने से कोरोना नहीं होता,,,,!
कोरोना वॉयरस का इलाज जादु टोना नहीं होता,,,,
साफ सफाई रखने से कोरोना नहीं होता,,,,!
कोरोना काल मे बस हमें सावधानी रखनी,,,,
मास्क, सेनेटाइजर, 2 गज की दूरी से कोरोना नहीं होता,,,,!
सावधानी रखना, जागरूकता रखने के बाद में रोना नहीं होता,,,
भीड़ भाड़ से दूर रहने से कोरोना नहीं होता,,,,!
लोगो से हाथ नहीं मिलाना,,,नमस्कार करने वालो को कोरोना नहीं होता,,,,!
समय रहते सचेत हो जाये तो अपनों को खोना नहीं होता,,,बीमार स्वयंम आइसोलेशन हो जाये तो अन्य लोगो को कोरोना नहीं होगा,,,,!!!

नितिन परिहार पुत्र चुतराराम
बेरा आसन की भडेट जेलवा बिलाड़ा
बीए बीएड
वर्तमान आरएएस अध्ययन्तर..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 03 Dec 2020, 05:45:27
श्री गणेशाय नमः
जय माता जी री मेरे समाज के सभी प्रिय बंधुओं पिता तुल्य बुजुर्गो और युवाओं मैं आपके समक्ष में मेरे अपने विचार रखने जा रहा हूं कृपया उस पर ध्यान दें और अपने जीवन में बदलाव के लिए अपनी समाज में बदलाव के लिए अपने समाज में विकास के लिए अपने समाज की प्रगति के लिए हमारे धर्म के विस्तार के लिए अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर समाज के कल्याण के लिए दूरदर्शिता का परिचय देते हुए ध्यान देने की कृपा करें मैं एक सामान्य नागरिक क्षत्रिय खराडिया सीरवी समाज का बेटा आपका छोटा भाई आप सभी को जय माता जी री और आप सभी को मेरा दंडवत प्रणाम साहब हमें कुछ बड़ा करने का सोचना चाहिए जब हम कुछ सोचेंगे तो उसका असर अपने मन पर पड़ता है और मन का प्रभाव तन पर पड़ता है और तन और मन का प्रभाव अपने जीवन पर पड़ता है इसके लिए हमें अच्छी सोच रखनी चाहिए समाज के हर व्यक्ति को समाज के लिए कुछ करने का जज्बा रखना चाहिए यह हमारे समाजसेवी रामलाल जी सेणसा गांधीधाम वाले बा साहब ने कहा था वह मुझे बहुत ही अच्छा लगा इसके लिए यह यहां पर प्रयोग किया
*मेरी एक रिक्वेस्ट है कि हम सभी व्यापार करते ह..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 01 Dec 2020, 13:40:17
अपने सपने गैरो की वजह से टूटे

चाँद छिपा,सूरज ढला...
पग पग पर अरमान जगा...!
सपने टूटे गैरो की वजह से...
अरमान के नभ में निराशाओ के बादल ने घेरा...
न जाने कब होगा सवेरा...!
खोया सा रहता है दिन सारा...
जागी जागी रहती है रात...
सागर के लहरों की भांति...
छू छू कर फिर चली जाती है...
ऐसे मझधार में मेरी नैया फंसी...
गैरो की वजह से...!
जो सोचा था वो हो ना पाया...
सब सपने टूटे गैरो की वजह से...
वो अरमानों का हवाई महल
यही कही पर गिर गया...!
आखों में जो ख़्वाब दिखे...
आज वो दुसरो की वजह से ख़्वाब रह गए...
सब राहें सब सुनसान लगे...
अब मंजिल भी अनजान लगें...
मन रहता है तनहा तनहा...
सुना सुना लगता है जहान...!
टूट गया सपना मेरा...
बिखर गई आस मेरी...
आखो में सपने खो गए...
सब प्यास नजर आते है...!
अपने हुए पराये लेकिन...
गैर ना हो सके...
गैरो की बस्ती में कैसे अपनी नाव खड़ी...!!!


नितिन परिहार पुत्र चुतराराम जी
बेरा आसन की भडेट जेलवा बिलाड़ा
बीए बीएड
वर्तमान आरएएस अध्ययन्तर..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 01 Dec 2020, 12:06:32
आज के वर्तमान में इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन का महत्व बहुत बढ़ गया है।

आज के वर्तमान में इंटरनेट का महत्व बहुत बढ़ गया है। वह अपनी जीवनशैली में काफी कुछ बदलाव ला रहा है। जैसे कि इंटरनेट की वजह से ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन क्लासेज, ऑनलाइन बिजनेस,बैकींग,कुकींग फिर चाहे गेम रहो वगैरे काफी कुछ फायदा हो रहा है। समय के हिसाब से हम ऑनलाइन से काफी दूर थे। ऑनलाइन शॉपिंग वाले ऑनलाइन शॉपिंग करते थे हमें सिर्फ पता था पर अभी दुनिया में एवरी टाइम काम ऑनलाइन हो रहा है। आज के युग में छोटा से बड़ा तक इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन का फायदा उठा रहे हैं। ऑनलाइन से हमको नए जमाने के साल 2020 इंटरनेट की शिक्षा देकर जा रहा है। बच्चों को ऑनलाइन क्या होता है यह भी पता नहीं था पर आज बच्चों से लगाकर बड़ो तक सब जानने लगे है ऑनलाइन के बारे में इंटरनेट के बारे में यह सब सीखा के गया है। यह एक अच्छा अनुभव सीखने को मिला जिससे काफी लोग इस अनुभव से वंचित थे। इस इंटरनेट की योग्यता का सबसे ज्यादा फायदा बच्चों को हुआ है।

आज के वर्तमान में हम देख रहे हैं कि कोरोना वायरस की वजह से हमारे जीवन में काफी क..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 27 Jul 2020, 11:53:11
मायड़ भाषा रा हैताळू
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मने म्हारी मायड़ भाषा मारवाड़ी बोली रो घणो है गुमान ।मनेआ बोले घणी चौखी लागे ।जिकी बोली में आपो अपणी मां सूं बात करां , जिकी बोली में आपणा सगळा संस्कार रेवे ,जिकी भाषा आपा रे रु रु में बसियोड़ी वे , वा मायड़ भाषा कैविजे ।आपाणी मायड़ भाषा राजस्थान री मारवाड़ी बोली घणी मीठी बोली है ।राजस्थान में घणी बोलियां बोली जावे ।कैवत है - तीन कोस पाणी पलटे बारह कोस बोली ।अपोणे मारवाड़ में भी १२कोस पछे लहजो बदळ जावे ।सबने आपरी बोली ने लहजो हकरो लागे ।अपाणी मारवाड़ी बोली सगळा मे फैलियोडी है ।जटे नी पूगी गाडी वटे भी पुगिया मारवाडी ।
आपा कमावण कारज मारवाड़ छोड परदेशा में बस गिया ।परदेश री बोली भाषा ने भी अपणे जरुरत रे मुजब सीखणी पडसी , बोलणो पडसी ।पण आपाने अपणी भाषा अरु संस्कृति ने नी भूलणो है ।केई मिनख आपरे मायड भाषा में बोलण सू शरम करे अरु विलायत री भाषा बोलण मे गरभ करे ।मायड भाषा बोलण वाळो ने गिंवार हमजे ।मायड भाषा रो निरादर करणो , मां बाप रो निरादर करणो सरीखो है ।जको आपरी भाषा तजे वाने केवे भांड , निज भाषो भाखता आवे जिणने लाज ।दे..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 17 Jun 2020, 10:38:42
किसी ने खूब कहा कि एक क्रांति की शुरुआत खुद के घर से होती हैं खुद से होती हैं । चलो सबसे पहले मैं ही बहिष्कार करता हूं
" मैं दुर्गाराम सीरवी यह शपथ लेता हूँ कि मैं किसी भी प्रकार का चाइना के समान नहीं खरीदूंगा।"
कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना जैसे-
" आपके पास फोन भी चाइना का है "
"आपके घर में चाइना के सामान है "
" आम आदमी ही क्यो बहिष्कार करे। "
"सरकारे कब करेंगी "
ऐसी हजारों बातों को भारतीय सेना के सम्मान में एक तरफ रख दीजिए।सेना सर्वोपरि ही हमारी।
अरे ! भाई हमे किसी से कोई मतलब नही है।
हमे खुद से शुरुआत करनी है बाकी का काम स्वत: ही होगा।
एक बात बताओ," भारतीय सेना का जवान हमारी भारतीय सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं भाई। भारत माता की सेवा करते हुए सेना के जवान इतना नही सोचते भाई तो हम चीनी सामानों का बहिष्कार करने में क्यों सोचें।

देखो भाई "भारतीय सेना के वीर जवानो को सच्ची श्रद्धांजलि देनी हैं मुझे,मैंने तो शुरुआत कर दी हैं।"

।। जय हिद। वंदेमातरम ।।
प्रस्तुति :- दुर्गाराम सीरवी कोयम्बटूर तमिलनाडु..
Posted By : Posted By Manohar Seervi on 17 Jun 2020, 06:28:08
संस्कृति की सौरभ---
हम नारियल क्यों अर्पित करते हैं?
भारतीय संस्कृति में मंदिर के लिए सबसे लोकप्रिय भेंट 'नारियल 'है।देवी-देवताओं की पूजा-स्तुति करने के लिए नैवेद्य के साथ नारियल चढ़ाने की भी परम्परा है।विवाह और पर्वों पर,नयी गाङी,घर-मकान,सङक,पुल ,दुकान का उपयोग करने से पूर्व भी नारियल भेंट किया जाता है। जल से भरा एक कलश लेकर उस पर आम के पत्ते सजाये जाते है और उस पर एक नारियल रखा जाता है ।इससे महत्वपूर्ण अवसरों,पर्व-उत्सवों पर पूजा भी की जाती है ।नारियल (श्री फल)भेंट कर साधु-संतों और अतिथियों का बहुमान भी किया जाता है ।भगवान को प्रसन्न करने या अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हवन करते समय यज्ञ की अग्नि में भी नारियल को अर्पित किया जाता हैऔर नारियल को फोङा जाता है तथा भगवान के सामने रखा जाता है ।जिसे बाद में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है ।सूखे नारियल के ऊपर के गुच्छे को छोड़कर,उसका रेशा उतार दिया जाता है ।नारियल के ऊपर के निशान एक प्राणी के सिर जैसे दिखाई देते है ।नारियल फोङना अहं को समाप्त करने का प्रतीक है ।अन्दर का रस जो हमारी वासनाओं का प्रतीक ..
Posted By : Manohar Seervi on 12 Jun 2020, 10:56:29
हम मंदिर में घन्टी (टंकोर)क्यों बजाते हैं?
अक्सर छोटे बङे सभी मंदिरों में प्रवेश द्वार के पास ऊँचाई पर एक या अधिक घंटियाॅ (टंकोर)लटकी रहती हैं ।मन में श्रद्धा-भक्ति और आस्था का भाव लेकर श्रद्धालु मंदिर-प्रवेश करते ही घंटी (टंकोर) बजाता है और फिर भगवान के दर्शन,पूजा-पाठ और प्रार्थना स्तुति के लिए आगे बढ़ता है ।साथ में आए छोटे बच्चों को उछलकर या ऊपर उठाए जाने के पश्चात् घंटी बजाकर खूब आनंद मिलता है ।आखिर हम घंटी क्यों बजाते हैं?क्या यह भगवान को जगाने के लिए है?परन्तु भगवान तो कभी सोते नहीं ।क्या इससे हम भगवान को अपने आने की सूचना देते हैं?उनको यह बताने की आवश्यकता नहीं,क्योंकि वे तो सर्वज्ञ है ।तो क्या यह भगवान के क्षेत्र में जाने की अनुमति लेने का एक ढंग है?यह तो अपने ही घर में आना है,जिसके लिए प्रवेश की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं ।भगवान तो हर समय सदा हमारा स्वागत करते हैं ।फिर हम घंटी क्यों बजाते हैं? घंटी बजाने से जो ध्वनि निकलती है,वह शुभ समझी जाती है ।यह ऊँकी ध्वनि उत्पन्न करती है,जो ईश्वर का सर्व व्यापक नाम है ।भगवान सर्व-मंगलकारी है ।इस सूक्ष्म दृष..
Posted By : Manohar Seervi Posted By on 04 Jun 2020, 11:51:12
क्या जीवन में जरुरी है गंभीरता ?
कुछ लोग जीवन में हमेशा गंभीर रहते हैं ।चाहे उन्हें ढेरो सफलताएं मिल जाएं पर उनके चेहरे पर थोड़ी सी भी मुस्कान नहीं आती ।ऐसे लोग सोचते हैं कि अगर वे गंभीर नहीं रहेॆंगे तो लोग उन्हें हल्के में लेंगे। मानवीय स्वभाव के अनुसार वे भी हंसना चाहते हैं पर ऊंचा ओहदा व झूठी शान उन्हें ऐसा करने से रोकती है ।
दुनिया में आप कितनी भी भागदौड़ करले पर अंत में आपको लगता है कि सारी जमा पूंजी व्यर्थ है , सबसे जरुरी तो सबके साथ मिल बैठ कर हंसना गुनगुनाना और दूसरों का दर्द बांटना हैं । कुछ लोग जीवन को गंभीरता के साथ गुजार देते हैं और आखिर में उन्हें महसूस होता हैं कि वे कुछ खास नहीं कर पाए।।जीवन में या तो सफलता हासिल की जा सकती है या सार्थकता और जो व्यक्ति सफल होने के साथ साथ सार्थकभी बन जाता है ,वह महान बन जाता है। सफलता सिर्फ आपको खुश कर सकती है परसार्थकता से आप दूसरों का जीवन भी बदलते है।सार्थक बनने के लिए जीवन में जबरन घुसी हुई गंभीरता को कम करना होगा । हंसते हंसते दूसरों को भी हंसाना होगा । हर परेशानी में मुस्कराने वाला व्यक्ति मन से ग..
Posted By : Manohar Seervi Posted By on 10 May 2020, 11:17:09
सीरवी समाजबंधू आर्थिक रूप से अन्य कई समाजों के मुकाबले संपन्न है अर्थात धनि है, धनवान है, ज्ञानी है, दानी है, बुद्धिमान है, चारित्रसम्पन्न है, सुस्वभावी है, शिक्षित (एज्युकेटेड) है, मिलनसार है, ईमानदार है, व्यापार में होशियार है, मेहनती है फिर भी समाज दिन-ब-दिन पिछड़ता जा रहा है, अपनी पहचान को, अपने गौरव को खोता जा रहा है... क्यों??? क्योंकि एकता का आभाव है । समाज में एकता की कमी है । एकता से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है । एकता ही समाजोत्थान का आधार है। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकता किन्तु जहाँ एकता नहीं है वह समाज ना प्रगति कर सकता है, ना समृद्धि पा सकता है और ना अपने सम्मान को, अपने गौरव को कायम रख सकता है। सीरवी समाज इसका जीता-जागता उदहारण है । हम समाजबंधु एकसाथ रहते तो है लेकिन क्या हम उन्नत्ति-प्रगति के लिए एक-दूजे का साथ देते है? नहीं ; तो सिर्फ एकसाथ रहने का कोई मतलब नहीं । एकसाथ इस शब्द को कोई अर्थ तभी है जब हम एकसाथ रहे भी और एक-दूजे का साथ दे भी । ऐसी एकता को ही सही मायने में 'एकता' (Unity) कहा जाता है ।

समाज में एकता को क..
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