सिरवी समाज डांट काम की टीम को बहुत बहुत बधाई जिन्होंने भारत में लॉकडाउन की घडी में समाज में एक अच्छी पहल करके हर शनिवार को दिवान साहब से सीधा संवाद करके अन छुए पहलुओं को दिवान साहब के श्री मुख से सुनने को मिल रहा है इसी कड़ी में गत शनिवार को एक अच्छी बात यह भी हुईं की आरती में खिलजी के स्थान पर आसूर शब्द बोला जायेगा।ये प्रस्ताव MP से CA भगवान जी लछेटा ,अध्यक्ष सीरवी समाज ट्रस्ट इंदौर वालों के द्बारा लाया गया था इसके ऊपर दिवान साहब ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए मोखीक स्वीकृति दे दी गई बहुत अच्छा हुआ हमारे मन में भी बहुत दिनों से बदलाव की इच्छा थी
सीरवी समाजबंधू आर्थिक रूप से अन्य कई समाजों के मुकाबले संपन्न है अर्थात धनि है, धनवान है, ज्ञानी है, दानी है, बुद्धिमान है, चारित्रसम्पन्न है, सुस्वभावी है, शिक्षित (एज्युकेटेड) है, मिलनसार है, ईमानदार है, व्यापार में होशियार है, मेहनती है फिर भी समाज दिन-ब-दिन पिछड़ता जा रहा है, अपनी पहचान को, अपने गौरव को खोता जा रहा है... क्यों??? क्योंकि एकता का आभाव है । समाज में एकता की कमी है । एकता से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है । एकता ही समाजोत्थान का आधार है। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकता किन्तु जहाँ एकता नहीं है वह समाज ना प्रगति कर सकता है, ना समृद्धि पा सकता है और ना अपने सम्मान को, अपने गौरव को कायम रख सकता है। सीरवी समाज इसका जीता-जागता उदहारण है । हम समाजबंधु एकसाथ रहते तो है लेकिन क्या हम उन्नत्ति-प्रगति के लिए एक-दूजे का साथ देते है? नहीं ; तो सिर्फ एकसाथ रहने का कोई मतलब नहीं । एकसाथ इस शब्द को कोई अर्थ तभी है जब हम एकसाथ रहे भी और एक-दूजे का साथ दे भी । ऐसी एकता को ही सही मायने में 'एकता' (Unity) कहा जाता है ।
घूंघट प्रथा - एक कुप्रथा
कुरितियों एंव रूढिवादी परम्पराओं के अधीन होना कायरता हैं ओर विरोध करना पुरूषार्थ हैं।
बाल कल्याण समिति
समाज को गतिशील, विकासोन्मुख एवं प्रतिशील बनाने के लिए संगठित होना एक आवश्यकता हैं। संगठन विहीन समाज बिना पतवार के नाव जैसी होती है , जिसकी कोई दिशा नहीं होती और न ही कोई उद्देश्य। विश्व के समस्त समाज शास्त्रियों ने समाज और संगठन के बारे में सदैव यही बताया है, कि संगठन समाज का प्राण है। इसी परिप्रेक्ष्य में आगे बढ़ते हुए सीरवीयों के कल्याण हेतु सीरवी समाज को संगठित करने, एकजुट करने का कार्य पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है। विभिन्न स्तरों पर संगठन का निर्माण किया गया है और संगठन को गति प्रदान करने के लिए समर्पित, सेवा भाव से युक्त कार्यकर्ताओं की सेवायें ली जाती है। अखिल भारतीय स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक संगठन को जोड़ने का कार्य चल रहा हैं। संगठन के लोग अपना-अपना कार्य कर रहे है।
आज जमाना कंपीटिशन (प्रतिस्पर्धा) का है देश में कई बच्चे सिर्फ पढ़ाई कर रहे है, कुछ पढ़ाई के साथ में पार्ट टाइम जॉब कर रहे है, तो कछ कंपीटिशन (प्रतियोगीपरीक्षाओं की तैयारी में लगे है पहले का जमाना कुछ और था पहले लोग पढ़ाई या नौकरी को लेकर इतने जागरूक नहीं थे, लेकिन आज समय के साथ साथ सब बदलता जा रहा है। आज युवा जागरूक होता जा रहा है। सबके अन्दर जुनून है, कुछ कर दिखाने की, कुछ बनने की ओर अपने लक्ष्य को हासिल करने की और उसे पूरा करते भी नजर आते है। आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग अपने लक्ष्य को अपने भाग्य के सहारे छोड़ देते है और कुछ लोग पड़ाई को चुनौती मानकर हमेशा मेहनत करते रहते है। लेकिन अगर आपको आगे बढ़ना है और कुछ कर दिखाने का जज्बा अगर आप अपने अन्दर रखते है, तो आप भी अपनी मेहनत और लगन से बन सकते है- अगले टॉपर। ये सोचने की बजाय कि अमुख व्यक्ति इतना आगे निकल गया और अमुख कम्पनी में ऊंच पद पर काम कर रहा है, जरूरी है, ख़ुद को साबित करने की इसके लिए आपको मेहनत करनी होगी और अपने भाग्य को चुनोती देनी होगी ।
निंदा तू न गई मेरे मन से
उड़ते पल-बदलता समाज
हिंदी का थोडा़ आनंद लीजिये ....मुस्कुरायें
मंदिर में दर्शन का महत्त्व ओर प्रयोजन
*एक हो युवाओं और समाज के उद्धेश्य*