सीरवी समाज - ब्लॉग

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Posted By : Posted By seervi on 12 Aug 2019, 03:51:19
एक बार महालक्ष्मी भगवान से किसी बात पर नाराज हो गयी और उन्होंने अपना विरोध प्रकट किया तो प्रभु ने उनसे पूछा की महालक्ष्मी बताये आपको क्या चाहिए तो महालक्ष्मी ने कहा कि प्रभु मुझे अभी ही एक वरदान दीजिये , तो प्रभु ने उन्हें वरदान दिया कि जाइये महालक्ष्मी आप जब चाहे ,जिसे चाहे ,जो चाहे दे सकती है ,पर याद रखिए कि उसे छिनने का अधिकार मेरे पास होगा। जब माँ सरस्वती को ये बात पता चली तो उन्होंने भी भगवान की स्त्तुति की पुरे मन से उनकी आराधना की तो भगवान उनसे प्रसन्न हुए और बोले सरस्वती आपको क्या चाहिए तो माँ सरस्वती ने कहा कि प्रभु मुझे भी एक वरदान चाहिए तो भगवान मुस्कुराये और उन्होंने माँ सरस्वती को वरदान दिया कि जाइये सरस्वती आप भी जिसे चाहे जो चाहे दे सकती है,पर उसे छिनने का अधिकार मेरे पास नहीं होगा। कहने का मतलब हम दुनिया में धन दौलत कमाते हे तो धन दौलत आनी जानी है,लेकिन आपका हुनर ,कला और आपका ज्ञान आपसे कोई नहीं छीन सकता ।कहने का मतलब जब मन लगा कर ज्ञान ग्रहण किया जाये तो उसे छीनने का अधिकार स्वयं भगवान विष्णु के पास भी नहीं होता है ,लेकिन पैसा तो हाथ का मेल ..
Posted By : Posted By seervi on 12 Jun 2021, 10:50:49
मृत्युभोज
जब भी मृत्युभोज को बंद करने की बात होती है तो बहुत से लोग या हमारे बुजुर्गइस बात को लेकर बहुत से प्रश्न खड़े कर देते है कि क्या आपत्ति हैं मर्त्युभोज से
और सही भी हे की भला क्या आपत्ति है समाज के लोगो को मर्त्युभोज से
जिन लोगों को मर्त्युभोज से आपत्ति नहीं है वे लोग कहते हे की तुम लोग मर्त्युभोज बंद करने के बजाय अपना जन्मदिन मत मनाओ,होटलो में खाना मत खाओ,घूमने में पैसा खर्च मत करो या शादी में भी खर्च मत करो ऐसे बहुत से प्रश्न खड़े कर दिए जाते हैं
लेकिन एक प्रश्न यह भी हे की जन्मदिन साल में एक दिन का होटलो में खाना महीनो में कभी ,घूमने में पैसा खर्च ज्यादा तर फॅमिली के साथ ही होता है और शादी भी 2 या 3 दिन की पहले के समय में शादी 8,10 या 15 दिन की भी होती थी,लेकिन अब समय की कमी होने के कारण शादिया भी सिमट कर 3 ,2 या 1 दिन की ही रह गयी है । अब बात आती है मृत्युभोज की मृत्युभोज 1 दिन का ,2 दिन का ,3 दिन का ,4 दिन का ,5 दिन का 6 दिन का , 7 दिन का ,8 दिन का ,9दिन का , 10 दिन का ,11 दिन का नहीं 12 दिन का होता है और सबसे बड़ा खर्च भी मर्त्युभोज में ही होता होगा । प्रश्न तो यहाँ होना चाहिए की यदि शा..
Posted By : Posted By seervi on 11 Aug 2019, 05:21:45
झूठ बोलते वक्त हमारे दिमाग में आखिर चलता क्या है? आप पढ़िये एवम जानिये अपने दिमाग का कोनसा हिस्सा कैसे काम करता हैं

कहा जाता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है, मतलब यही है कि झूठ बोलने वाले गलत काम करने वाले के मन में चोर छुपा हुआ रहता है, जो उसे कोई न कोई गलती करने पर मजबूर कर देता है। इसी गलती को पकड़कर इतने सालों से पुलिस, जासूस, सीआईडी वाले अपना काम निकाल रहे हैं। दरअसल जब भी हम किसी भी बात को छुपाने की कोशिश करते हैं तो हमारे दिमाग में एक खास किस्म का केमिकल लोचा होने लगता है।

दरअसल किसी भी तथ्य को छुपाने के लिये झूठ का सहारा लेना ही पड़ता है।

मगर इंसानी दिमाग खुद को धोखा नहीं दे सकता है। बस इसी वजह से झूठ बोलने पर दिमाग में एक खास हिस्से में अलग तरह के संकेत उत्पन्न होने लगते हैं। वैसे इंसानी दिमाग इस कायानात की अब तक की सबसे अनोखी चीज है। इस जटिल उत्तक की पहेली को ना कोई सुलझा सका है और ना ही किसी मशीन में इतनी काबिलियत है कि वह विधाता के बनाए इस सुपरकंप्यूटर से आगे निकल पाए।


जिस तरह से कम्प्यूटर की हार्ड ड्राइव काम करती है, ठीक उसी तरह हम..
Posted By : Posted By seervi on 09 Aug 2019, 05:49:05
मान्यता के आधार पर अगर देखा जाये तो दुनिया में दो प्रकार के लोग होते है – एक आस्तिक और दुसरे नास्तिक । नास्तिक होना भी तब तक बुरा नही है जब तक कि आप दुसरे की भावनाओं को ठेस ना पहुचायें । आस्तिक लोगों में एक अलग ही प्रकार की शक्ति होती है, जिसे श्रृद्धा और विश्वास की शक्ति कहा जा सकता है । फिर चाहे वो किसी भी ईश्वर, मजहब या देवी – देवता को मानते हो । अगर आपके पास ईश्वर विश्वास की ताकत है तो आप इस दुनिया के सबसे खुशहाल व्यक्ति हो सकते है । क्योंकि जिसको ईश्वर में विश्वास होता है, उसी को ईश्वर की प्रेरणा होती है ।

पहली कहानी

आत्मा का संकेत – ईश्वर की प्रेरणा

एक बार एक बुढ़िया माथे पर कपड़े व गहनों की गठरी और साथ में छोटी सी बेटी को लेकर एक गाँव से दुसरे गाँव जा रही थी । चलते चलते वह कुछ ही दूर पहुँची होगी कि पीछे से एक घुड़सवार आया ।
घुड़सवार को अकेला देख बुढ़िया ख़ुशी से बोली – “ बेटा ! आज बहुत धुप है और गर्मी भी बहुत है, यदि तुझे कोई आपत्ति ना हो तो इस गठरी और मेरी बेटी को अपने घोड़े पर बिठाकर अगले गाँव छोड़ देगा ?”
घुड़सवार बोला – “ ना माई ! इतना वजन मेरा घोड़ा नहीं सं..
Posted By : Posted By seervi on 06 Aug 2019, 11:35:55
मैं बहुत आनंदित हुआ कि युवकों और विद्यार्थियों के बीच थोड़ी सी बात कहने को मिलेगी। युवकों के लिए जो सबसे पहली बात मुझे खयाल में आती है वह यह है, और फिर उस पर ही मैं और कुछ बातें विस्तार से आज आपसे कहूंगा।

जो बूढ़े हैं उनके पीछे दुनिया होती है, उनके लिए अतीत होता है, जो बीत गया वही होता है। बच्चे भविष्य की कल्पना और कामना करते हैं, बूढ़े अतीत की चिंता और विचार करते हैं। जवान के लिए न तो भविष्य होता है और न अतीत होता है, उसे केवल वर्तमान होता है। यदि आप युवक हैं तो आप केवल वर्तमान में जीने की सामथ्र्य से ही युवक होते हैं। यदि आपके मन में भी पीछे का चिंतन चलता है तो आपने बूढ़ा होना शुरू कर दिया। अगर अभी भी भविष्य की कल्पनाएं आपके मन में चलती हैं तो अभी आप बच्चे हैं।

युवा अवस्था बीच का एक संतुलन बिंदु है। मन की ऐसी अवस्था है, जब न कोई भविष्य होता है, और न कोई अतीत होता है। जब हम ठीक-ठीक वर्तमान में जीते हैं तो चित्त युवा होता है, यंग होता है, ताजा होता है, जीवित होता है, लिविंग होता है। सच यह है कि वर्तमान के अतिरिक्त और किसी की कोई सत्ता नहीं है। न तो अतीत की कोई सत्ता है, ..
Posted By : Posted By seervi on 04 Aug 2019, 05:23:43
🔹समाज सेवक बनना और नाराज होना दोनों चीजें साथ नहीं चल सकती है।
कारण समाज सेवा छोड़ो या नाराज होना छोड़ो...!

🔸मुझे मालूम था इसलिए में नहीं आया?

🔹मेरा फोटो नहीं छपा इस लिए में नही आया

🔸मेरा निमंत्रण पत्रिका में नाम नहीं था इस लिए में नहीं आया

🔹मुझे उसमे कुछ मिलने वाला नहीं था इसलिए में नहीं आया।

🔸मुझे कोई पद नहीं मिला इसलिए में नहीं आया।

🔹मुझे कोई सुनता नहीं है
इसलिए में नहीं आया

🔸मुझे स्टेज पे नहीं बिठाया इसलिए में नहीं आया।

🔹मेरा सम्मान नहीं किया इसलिए में नहीं आया।

🔸मुझे बोलने का मौका नहीं दिया इसलिए में नहीं आया

🔹कमेटी,अध्यक्ष मंत्री मेरे विरोधी है इसलिए में नहीं आया

🔸मेरे विचार सुझाव को बहुमत से उड़ा दीया जाता है इसलिए में नहीं आया।

🔹बार बार आर्थिक बोझ मुझ पर डाल दिया जाता है इसलिए में नहीं आया

🔸सभी काम मुझे सौंपा जाता है इसलिए में नहीं आया।

🔹नेता गण अपनी मनमानी करते है इसलिए में नहीं आया

🔸हिसाब देते नहीं है कोई सुझाव लेते नहीं है इसलिए में नहीं आया।

🔹टाइम नहीं मिल रहा इसलिए में नहीं आय..
Posted By : Posted By seervi on 03 Aug 2019, 06:32:37
गायत्री निवास
बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर वापस आ शालू खिन्न मन से टैरेस पर जाकर बैठ गई.

सुहावना मौसम, हल्के बादल और पक्षियों का मधुर गान कुछ भी उसके मन को वह सुकून नहीं दे पा रहे थे, जो वो अपने पिछले शहर के घर में छोड़ आई थी.

शालू की इधर-उधर दौड़ती सरसरी नज़रें थोड़ी दूर एक पेड़ की ओट में खड़ी बुढ़िया पर ठहर गईं.

‘ओह! फिर वही बुढ़िया, क्यों इस तरह से उसके घर की ओर ताकती है?’

शालू की उदासी बेचैनी में तब्दील हो गई, मन में शंकाएं पनपने लगीं. इससे पहले भी शालू उस बुढ़िया को तीन-चार बार नोटिस कर चुकी थी.
दो महीने हो गए थे शालू को पूना से गुड़गांव शिफ्ट हुए, मगर अभी तक एडजस्ट नहीं हो पाई थी.

पति सुधीर का बड़े ही शॉर्ट नोटिस पर तबादला हुआ था, वो तो आते ही अपने काम और ऑफ़िशियल टूर में व्यस्त हो गए. छोटी शैली का तो पहली क्लास में आराम से एडमिशन हो गया, मगर सोनू को बड़ी मुश्किल से पांचवीं क्लास के मिड सेशन में एडमिशन मिला. वो दोनों भी धीरे-धीरे रूटीन में आ रहे थे, लेकिन शालू, उसकी स्थिति तो जड़ से उखाड़कर दूसरी ज़मीन पर रोपे गए पेड़ जैसी हो गई थी, जो अभी भी नई ज़मीन नहीं पकड़ पा रहा थ..
Posted By : Posted By seervi on 03 Aug 2019, 05:22:22
रात मैं पत्नी के साथ होटल में रुका था। सुबह दस बजे मैं नाश्ता करने गया। क्योंकि नाश्ता का समय साढ़े दस बजे तक ही होता है, इसलिए होटल वालों ने बताया कि जिसे जो कुछ लेना है, वो साढ़े दस बजे तक ले ले। इसके बाद बुफे बंद कर दिया जाएगा।
कोई भी आदमी नाश्ता में क्या और कितना खा सकता है? पर क्योंकि नाश्ताबंदी का फरमान आ चुका था इसलिए मैंने देखा कि लोग फटाफट अपनी कुर्सी से उठे और कोई पूरी प्लेट फल भर कर ला रहा है, कोई चार ऑमलेट का ऑर्डर कर रहा है। कोई इडली, डोसा उठा लाया तो एक आदमी दो-तीन गिलास जूस के उठा लाया। कोई बहुत से टोस्ट प्लेट में भर लाया और साथ में शहद, मक्खन और सरसो की सॉस भी।
मैं चुपचाप अपनी जगह पर बैठ कर ये सब देखता रहा ।
एक-दो मांएं अपने बच्चों के मुंह में खाना ठूंस रही थीं। कह रही थीं कि फटाफट खा लो, अब ये रेस्त्रां बंद हो जाएगा।
जो लोग होटल में ठहरते हैं, आमतौर पर उनके लिए नाश्ता मुफ्त होता है। मतलब होटल के किराए में सुबह का नाश्ता शामिल होता है। मैंने बहुत बार बहुत से लोगों को देखा है कि वो कोशिश करते हैं कि सुबह देर से नाश्ता करने पहुंचें और थोड़ा अधिक खा ल..
Posted By : Posted By on 02 Aug 2019, 03:38:02
सीरवी कौम को पीछे धकेलने में सीरवी का योगदान:

आज की चर्चा का विषय यही है,हो सकता है कई बुद्दिजीवी महानुभावो को अटपटा और कुछ को बुरा लगे परन्तु आज इस विषय पर थोडा गौर कर लिया जाए. आज अपने सीरवी समाज के बढेर व उससे जुड़े संगठन,मंडली और पता नही क्या क्या सभाएं बन चुकी / बन रहेे हैं ।
लगभग सभी इतने हाईटेक हैं कि बिरादरी का सारा उत्थान कीबोर्ड के द्वारा सोशल प्लेटफार्म पर ही कर दे रहे हैं.
किधर भी निकल जाओ किसी न किसी सीरवी संगठन के पदाधिकारी से आप टकरा जाओगे. कोई मंत्री कोई सचिव कोई अध्यक्ष कोई उपाध्यक्ष तरह तरह के पदाधिकारी मगर कार्यकता कोई नहीं.. अगर है भी तो कार्य मगर कर्ता सिर्फ नाम के, जीमण जीमाने , स्वागत करवाने ,जयकारे लगवाने ।
आजकल काबिल नहीं होने के बावजूद भी कोई भी पदाधिकारी बन सकता बशर्ते काबिलियत से ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत हो, और जब आर्थिक रूप से मजबूत हो तो समर्थक तो पहले से तैयार (चापलूसी किश्म के लोग) फिर एक स्मार्ट फ़ोन हो जिसके थ्रू ज्यादा कुछ नहीं करना बस फोटो खीचकर सोशल प्लेटफार्म पर चिपका दो, I am with फलाना साहब , selfi with ढिमका जी |
असल में जो ह..
Posted By : Posted By seervi on 02 Aug 2019, 03:19:20
किरलियान फोटोग्राफी ने मनुष्‍य के सामने कुछ वैज्ञानिक तथ्‍य उजागर किये हैं। किरलियान ने मरते हुए आदमी के फोटो लिए, उसके शरीर से ऊर्जा के छल्‍ले बाहर लगातार विसर्जित हो रहे थे, और वो मरने के तीन दिन बाद तक भी होते रहे। मरने के तीन दिन बाद जिसे हिन्‍दू तीसरा मनाता है।

अब तो वह जलाने के बाद औपचारिक तौर पर उसकी हड्डियाँ उठाना ही तीसरा हो गया। यानि अभी जिसे हम मरा समझते हैं वो मरा नहीं है। आज नहीं कल वैज्ञानिक कहते हैं तीन दिन बाद भी मनुष्‍य को जीवित कर सकेगें।

और एक मजेदार घटना किरलियान के फोटो में देखने को मिली। की जब आप क्रोध की अवस्‍था में होते हो तो तब वह ऊर्जा के छल्‍ले आपके शरीर से निकल रहे होते हैं। यानि क्रोध भी एक छोटी मृत्‍यु तुल्‍य है।

एक बात और किरलियान ने अपनी फोटो से सिद्ध की कि मरने से ठीक छह महीने पहले ऊर्जा के छल्‍ले मनुष्‍य के शरीर से निकलने लग जाते हैं। यानि मरने की प्रक्रिया छ: माह पहले शुरू हो जाती है, जैसे मनुष्‍य का शरीर मां के पेट में नौ महीने विकसित होने में लेता है वैसे ही उसे मिटने के लिए छ: माह का समय चाहिए। फिर तो दुर्घटना ज..
Posted By : Posted By seervi on 01 Aug 2019, 04:22:33
आप स्वयं अपने भाग्य की निर्माता हो।
किसी ने कहा है कि ,
\"इरादा पक्का हो बंदे तो मंजिल तेरी दूर नही।
वह तुझसे दूर नही और तू उससे दूर नही।।\"
यह सच है कि हम जीवन में ठान ले तो असंभव को भी संभव कर जाते है।बस जरूरत इस बात की रहती है कि जीवन मे हम नेक इरादों से आगे बढ़े और अपनी कमियों के विश्लेषण कर उसमें सुधार करे।विद्यार्थी जीवन सम्पूर्ण जीवन काल का श्रेयष्कर समय होता है।यह जीवन निर्माण की आधारशिला भी होती है।यदि हर विद्यार्थी अपने इस समय का प्रयोग सही एवं सटीक तथा लयबद्ध कर ले तो सफलता मिलना आसान हो जाता है।
प्रत्येक विद्यार्थी चाहे वह बालक हो या बालिका अपने जीवन को संवारना चाहते है या सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अपने आपको देखना चाहते है।
अपने जीवन में कुछ आदर्श बनाये और उन आदर्शो को अपने जीवन का अहम हिस्सा मानते हुए जीवन जिये।
मैं इस आलेख में कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का जिक्र कर रहा हूँ जिन्हें आप आत्मचिंतन-मंथन करे और अपने जीवन मे बड़ी ईमानदारी से अपनाये तो सफलता निश्चित रूप से आपके साथ होगी।
1.विचारों में शुद्धता :-
विचार व्यक्ति के व्यक्तित..
Posted By : Posted By seervi on 01 Aug 2019, 03:48:00
एक मेजर के नेतृत्व में 15 जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी
बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती

लेकिन रात का समय था आपस कोई बस्ती भी नहीं थी
लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी
लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था.
भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गया खैर ताला तोडा गया
तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया
जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी

उन्होंने अपने पर्स में से एक हज़ार का नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए.

तीन महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी 15 जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापिस आ रहे थे

रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला ..
Posted By : Posted By seervi on 31 Jul 2019, 06:12:32
जब पति-पत्नी मानसिक रूप से एक दूसरे से घृणा करने लगे, तो वे एक छत के नीचे कब तक और कैसे रह सकते हैं? तलाक बुरा नहीं है, उसकी प्रकिया बुरी है, उसके आगे पीछे का समय असहनीय होता है। फिर लंबी प्रकिया के बाद दोनों परिवार टूट जाते हैं, एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में। इस कहानी के माध्यम से तलाक की प्रकिया को आसान बनाने की प्रयास किया गया है। किसी ने ठीक ही कहा है –

“खुशी बाँटने के लिए हजारों लोग आपको मिल जाएंगे, लेकिन दुःख में आप के साथ आसूँ बहाने वाले शायद ही मिल पायें।”

दोस्तों प्रतिदिन हम आप ज्योहीं अखबार के पन्ने पलटते हैं पाते हैं अखबार का दो से तीन पेज घरेलू हिंसा के खबरों से पटा रहता है, कहीं पति ने पत्नी का क़त्ल किया, कहीं पत्नी ने पति का। कहीं दोनों परिवार एक दूसरे पर केस डाल दिया, तो कहीं पत्नीं अपने बच्चों समेत ट्रेन से कट गई। ज्यादातर मामले पति पत्नी के संबंधों से जुड़ा रहता है, चाहे कारण दहेज हो या अन्य। टीवी न्यूज चैनल भी इसी तरह की ख़बरें दिखाते रहते हैं। आप समझ लीजिए ये घटनाएं अचानक नहीं होती, इसकी पृष्ठभूमि कई महीने या साल पहले लिखी गयी हो..
Posted By : Posted By seervi on 31 Jul 2019, 05:50:21
नयी पीढ़ी में रिश्तों के मायने और संस्कार !
रिश्तों की अपनी अहमियत होती है और जरूरी है कि हम उस रिश्ते की मर्यादा को समझे और अपने आने वाली पीढ़ी (माँ बाप अपने बच्चो के लिए )को भी समझाएं। ईट-पत्थरों की दीवारों में जब रिश्तों का एहसास पनपता है तभी वह घर कहलाता है।
आज की high profile और भागदौड भरी जिंदगी में हम रिश्तों की अहमियत को भूलते जा रहे हैं। हमारी busy लाइफ हमे रिश्तों से दूर कर रही है। इसका उसर बच्चो पर भी पडता है। तभी तो आज के बच्चे रिश्तों की अहमियत को बहुत कम समझते है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसके जन्म से ही उसके साथ कई रिश्ते जुड जाते हैं। लेकिन इन रिश्तों में से कितने ऎसे होते हैं जिन्हें वे निभा पातें हैं।
ऎसा इसलिए नहीं कि बच्चों को उन रिश्तों की अहमियत का नहीं पता बल्कि इसलिए कि क्योंकि माँ बाप खुद उन रिश्तों से दूर हैं।
बच्चों में संस्कार की नींव माता-पिता द्वारा ही रखी जाती है। अगर माता-पिता ही रिश्तों को तवज्जो नही देते तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही।

आज समाज संयुक्त परिवार का प्रचलन घटता जा रहा है

संयुक्त परिवार में बच्चा दादा-दाद..
Posted By : Posted By seervi on 30 Jul 2019, 05:02:28
ये कैसा इश्क

ट्रैन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में मेरे सामने की सीट पर बैठी लड़की ने मुझसे पूछा" हैलो, क्या आपके पास इस मोबाइल की पिन है??"

उसने अपने बैग से एक फोन निकाला था, और नया सिम कार्ड उसमें डालना चाहती थी। लेकिन सिम स्लॉट खोलने के लिए पिन की जरूरत पड़ती है जो उसके पास नहीं थी। मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और सीट के नीचे से अपना बैग निकालकर उसके टूल बॉक्स से पिन ढूंढकर लड़की को दे दी। लड़की ने थैंक्स कहते हुए पिन ले ली और सिम डालकर पिन मुझे वापिस कर दी।

थोड़ी देर बाद वो फिर से इधर उधर ताकने लगी, मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने पूछ लिया"कोई परेशानी??"

वो बोली सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने मोबाइल मांगा, उसने दिया। मैंने उसे कहा कि सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। और एक्टिव होने के बाद आईडी वेरिफिकेशन होगा उसके बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकेंगी।

लड़की ने पूछा, आईडी वेरिफिकेशन क्यों??

मैंने कहा" आजकल सिम वेरिफिकेशन के बाद एक्टिव होती है, जिस नाम से ये सिम उठाई गई है उसका ब्यौरा पूछा जाएगा बता देना"

लड़की बुदबुदाई "ओह्ह"

मैंने दिलासा देते ..
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