
देश का बटवारा हुआ, सबने अपने अपने हिसाब से माँगा, खोया, पाया l
प्रकृति ने हमारा पलायन किया, हमने भी माँगा, खोया और पाया l
क्या खोया और क्या पाया शायद इस लेख से समझ आये - मुझे तो आया l
सिंध का बंटवारा पंजाब और बंगाल से अलग है !
सिंध को हमसे बिछड़े 70 बरस हुए !
सिंधियों की जो पीढ़ी बंटवारे के दौरान इस पार आई थी
उनमें से ज्यादातर अब इस दुनिया में नहीं हैं .
बचे-खुचे कुछ बूढ़ों की धुंधली यादों के सिवा अब सिंध सिर्फ हमारे राष्ट्रगान में रह गया है .
इन 70 सालों में हमें यह एहसास ही नहीं हुआ
कि हमने सिंध को खो दिया है .
इस बीच सिंधियों की दो पीढ़ियां आ गई है
पर सिंध और सिंधियों के पलायन के बारे में हम अब भी ज्यादा कुछ नहीं जानते .
बंटवारे का सबसे ज्यादा असर जिन तीन कौमों पर पड़ा
उनमें पंजाबी ,बंगाली और सिंधी थे .
मगर बंटवारे का सारा साहित्य फिल्में और तस्वीरें पंजाब और बंगाल की कहानियां से भरी है .
मंटो के अफसानों से भीष्म साहनी की 'तमस' तक बंटवारे के साहित्य मे पंजाब और बंगाल की कहानियां हैं .
सिंध उनमें कहीं नहीं है.
पंजाबी और बंगालियों के मुकाब..