।।मेरा समाज ,मेरा गौरव।।
"तमसो मा ज्योतिर्गमय"
#कलम की ताकत औऱ परिवर्तन#
सीरवी समाज विकास सेवा समिति द्वारा जारी सामाजिक सुधारों के दिशा निर्देशों के प्रति मेरे निजी विचार
#"सामाजिक एकता औऱ समरसता" तथा सीरवी समाज#
दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। –
सीरवी कौम एक ऐसी कौम है जिसके हर जन में "सीर"का मूल भाव समाया है। सीर का मूल अर्थ साझा है।साझा अर्थात एक दूसरे का सहयोग लेकर आगे बढ़ना। एक दूसरे की भावनाओ की कद्र करना।एक दूसरे के सुख-दुःख में साथ देना। यह कार्य हमारे पुरखों ने बड़ी दिलेरी से किया है। जब पुरातन तरीके से खेती की जाती थी,आज की तरह वे वैज्ञानिक संसाधनों या उपकरणों से युक्त नही थे। वे बैलों से खेती करते थे, पशुपालन करते थे औऱ अपनी आजीविका चलाते थे। वे कठोर मेहनती थे। उस समय संयुक्त परिवार प्रथा थी,घर-परिवार में गजब का अनुशासन औऱ मर्यादाएं थी। सब अपनी मर्यादाओं और सीमाओं से वाकिफ थे। घर-परिवार का एक ही मुखिया होता था, उनका सब कड़ाई से पालना करते थे। उस समय बहुत बड़े-बड़े कुटुंब थे। ऐसे परिवार को गवारी बोलते थे। उस गवारी की बड़ी पेठ होती थी। घर-परिवार में प्रेम-सौहार्द्ध का वातावरण होता था। समाज के लोग प्रेम-सौहार्द्ध को प्रथम वरीयता देते है। यदि किसी कारणवश परिवार में विवाद की स्थिति पैदा हो जाती थी तो वे किसी मांगलिक अवसर या सामाजिक कार्य के अवसर पर समाज के लोग उनको आपस में साथ मे बैठाते थे, उनमें आप..
सीरवी कौम एक ऐसी कौम है जिसके हर जन में "सीर"का मूल भाव समाया है।सीर का मूल अर्थ साझा है।साझा अर्थात एक दूसरे का सहयोग लेकर आगे बढ़ना।एक दूसरे की भावनाओ की कद्र करना।एक दूसरे के सुख-दुःख में साथ देना।यह कार्य हमारे पुरखों ने बड़ी दिलेरी से किया है।जब पुरातन तरीके से खेती की जाती थी,आज की तरह वे वैज्ञानिक संसाधनों या उपकरणों से युक्त नही थे।वे बैलों से खेती करते थे,पशुपालन करते थे औऱ अपनी आजीविका चलाते थे।वे कठोर मेहनती थे।उस समय संयुक्त परिवार प्रथा थी,घर-परिवार में गजब का अनुशासन औऱ मर्यादाएं थी।सब अपनी मर्यादाओं और सीमाओं से वाकिफ थे।घर-परिवार का एक ही मुखिया होता था,उनका सब कड़ाई से पालना करते थे।उस समय बहुत बड़े-बड़े कुटुंब थे।ऐसे परिवार को गवारी बोलते थे।उस गवारी की बड़ी पेठ होती थी।घर-परिवार में प्रेम-सौहार्द्ध का वातावरण होता था।समाज के लोग प्रेम-सौहार्द्ध को प्रथम वरीयता देते है।यदि किसी कारणवश परिवार में विवाद की स्थिति पैदा हो जाती थी तो वे किसी मांगलिक अवसर या सामाजिक कार्य के अवसर पर समाज के लोग उनको आपस में साथ मे बैठाते थे,उनमें आपस में प..
जीवन में ज्ञान और प्रेरणा कहीं से भी एवं किसी से भी मिल सकती है। मित्रों आज मैंने एक कविता पढ़ी , पढकर लगा कि प्रकृति ऐसे अंनत कारणों से भरी हुई है, जो हमें सिखाती है कि जीवन हरपल आनंद से सराबोर है। नदियों का कल कल करता संगीत, झूमते गाते पेङ, एवं छोटे छोटे जीव हमें सिखाते हैं कि जीवन को ऐसे जियो कि जीवन का हर पल खुशियों की सौगात बन जाये।
जहा तक मेने पढ़ा है समाज की अवधारणा किताबो में लेखको ने बड़ी ही क्लिस्ठ भाषा में समझाई, एक आम मस्तिस्क इतनी कठिन भाषा को समझ कर वास्तविकता के धरातल को समझने में अपना जीवन व्यतीत नहीं करता, उसके लिए समाज एक समूह है, जहा उसके आस पास उसके अपने उसे जानने वाले या जान सकने वाले मनुष्यों का जमावड़ा हो l कई मायनों में जब मेने देखा की जिसे में समाज मानती हु उस समाज की व्यापाकता के न नियम होते है न निर्देश, मेरी जैसी कामकाजी महिला के लिए मेरा घर, परिवार, चौक चोराहे से होते हुए बस स्टैंड, बस और मेरा कामकाजी क्षेत्र मेरा समाज है l यह समाज के अलग अलग स्त्रोत है और इस में अभिनय करने वाले चेहरे भले ही अलग अलग हो किन्तु मानसिकता लगभग एक जैसी होती है, फिर किसी ने मुझे यह महसूस कराया की समाज को हम किसी दायरे में नहीं बाट सकते l यह धरती हमारा मानव समाज है, यह देश हमारा रास्ट्रीय समाज है, यह राज्य हमारा भोगोलिक समाज है, यह जिला हमारा प्रशाशनिक समाज है, यह नगर गाँव हमारा आश्रय समाज है, यह परिवार मेरी सुरक्षा का समाज है l इस सभी समाजो में अपने अस्तित्व को ढूंडते हुए मुझे अपने जीवन की तमाम उपल..