अपने सपने गैरो की वजह से टूटे
चाँद छिपा,सूरज ढला...
पग पग पर अरमान जगा...!
सपने टूटे गैरो की वजह से...
अरमान के नभ में निराशाओ के बादल ने घेरा...
न जाने कब होगा सवेरा...!
खोया सा रहता है दिन सारा...
जागी जागी रहती है रात...
सागर के लहरों की भांति...
छू छू कर फिर चली जाती है...
ऐसे मझधार में मेरी नैया फंसी...
गैरो की वजह से...!
जो सोचा था वो हो ना पाया...
सब सपने टूटे गैरो की वजह से...
वो अरमानों का हवाई महल
यही कही पर गिर गया...!
आखों में जो ख़्वाब दिखे...
आज वो दुसरो की वजह से ख़्वाब रह गए...
सब राहें सब सुनसान लगे...
अब मंजिल भी अनजान लगें...
मन रहता है तनहा तनहा...
सुना सुना लगता है जहान...!
टूट गया सपना मेरा...
बिखर गई आस मेरी...
आखो में सपने खो गए...
सब प्यास नजर आते है...!
अपने हुए पराये लेकिन...
गैर ना हो सके...
गैरो की बस्ती में कैसे अपनी नाव खड़ी...!!!
नितिन परिहार पुत्र चुतराराम जी
बेरा आसन की भडेट जेलवा बिलाड़ा
बीए बीएड
वर्तमान आरएएस अध्ययन्तर