सीरवी समाज - ब्लॉग

सुखी जीवन का आधार एवं मानव का कर्तव्य, प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी सुपुत्र श्री रतनलाल जी राठौड़ जनासनी-मैसूरु
Posted By : Posted By Raju Seervi on 01 Jul 2021, 05:43:58

सुखी जीवन का आधार एवं मानव का कर्तव्य

सुख किसे कहते हैं और वह कैसे प्राप्त होता हैं?..... इस प्रश्न पर विद्वानों के विभिन्न मत हैं।
मनुष्य के पास अथाह धन हो तो वह उससे तमाम मन चाही वस्तुएँ खरीद सकता है। हालांकि कितना भी धन क्यों न हो, उससे जीवन के लिये सुख नहीं खरीदा जा सकता है। स्पष्ट है कि मानव जीवनपर्यन्त जिस सुख की तलाश में व्याकुल रहता है, वह वास्तव में अनमोल होता है। यह सुख असल में कोई वस्तु न होकर एक भाव होता है। चूँकि यह भाव है तो उसे-महसूस भी करना होगा। यहाँ पर प्रश्न उठता है कि आखिर महसूस कैसे हो।
प्रायः यह देखा गया है कि कोई गरीब व्यक्ति किसी धनी व्यक्ति की तुलना में अधिक सुखी रहता है। इसका मुख्य कारण है कि वह छोटी छोटी वस्तुओं में अपने लिये सुख खोज लेता है। स्वास्थ्य भी सुखी जीवन का एक महत्वपूर्ण आधार होता है। एक स्वस्थ व सुखी दिनचर्या तभी बन सकती है जब आपको अच्छा भोजन और सुकून भरी नींद मिले। सुखी रहने के लिए व्यक्ति के मन में संतोष का होना भी अनिवार्य शर्त है। अन्यथा लालसा की अग्नि, सुख को भस्म कर सकती है। अपने जीवन के सुखमय बनाने के लिये हमें अपने क्षमताओं और संसाधनों के आधार पर किसी अन्य से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिये। हमें सदैव यह ध्यान रखना चाहिये कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में विशिष्ट होता है। हम अपने प्रियजनों के साथ बैठकर भी सुख के भागी बन सकते है। हम उन सन्यासियों के जीवन से भी सीख लेनी चाहिये जो तमाम सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर सुख को स्थाई रूप से साध लेता है। हालाँकि यह इतना आसान नहीं है किन्तु हमें सुख और शांति प्राप्त करने के लिए कुछ तो अभ्यास करना ही पड़ेगा। इसके लिये किसी सतगुरु का सत्संगत बहुत आवश्यक है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि किसी महात्मा जी के सत्संग के दौरान लोग ध्यानमग्न हो जाते हैं, उस समय उन्हें दीन- दुनिया का होश नहीं रहता। हमें चौबीस घण्टे में कुछ समय निकालकर ध्यान (मेडिटेशन) अवश्य करना चाहिये। कहा गया है "ध्यानाम् निर्विषय मनः" । निरंतर अभ्यास करने से मन शांति का अनुभव अवश्य होगा।
इस प्रतिसारधीं संसार में अत्यधिक सफलता प्राप्त करने की होड़ में हमने अपना सुख चैन गवाँ दिया है। मनुष्य इस भाग-दौड़ के दलदल में ऐसा फंस जाता है कि उससे निकल पाना कष्टदायी हो जाता है। किंतु धार्मिक जुवान जीने से मनुष्य को अध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। यही शांति सुख की बुनियाद रखती है। सुख का एक स्रोत यह भी है कि जीवन में दूसरों से अधिक अपेक्षायें नहीं रखना चाहिये। स्वयं पर अधिक भरोसा रखना चाहिये। यही सब सूत्र सुखी जीवन का आधार है।
देश में फैली हुई सीरवी समाज की तमाम इकाइयों से हमारा अनुरोध है कि वे अपने अपने क्षेत्र में समय-समय पर धार्मिक कार्यक्रमों व महापुरषों के सत्संगों का आयोजन अवश्य किया करें ताकि हमारे स्वजातीय बंधु जो अधिकांशत: व्यापारिक गतिविधियों में उलझते रहते हैं, उनके मन को आध्यात्मिक शांति प्राप्त हो। मेरी तो यही मनोकामना है।
सभी सखी हो, स्वस्थ और जीवन मूल्यों से मंडित हों विश्व में बंधुत्व आये, मनोकामना है मेरी हर पल निश दिन, निति प्रीति की अन्तः सलिला बहती हो।

प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी सुपुत्र श्री रतनलाल जी राठौड़ जनासनी-मैसूरु
संपादक, सीरवी समाज डॉट कॉम, मैसूरु मो. 9964119041