सीरवी समाज - ब्लॉग

उड़ते पल-बदलता समाज, प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी (राठौड़) सुपुत्र श्री रतनलालजी राठौड़ जनासनी - साँगावास { मैसूर - कर्नाटक }
Posted By : Raju Seervi Posted By on 28 Feb 2020, 00:55:22

उड़ते पल-बदलता समाज

आकाश में उड़ते रुई के बादल की तरह बड़ी तेजी से समय भाग रहा है। ना हम बादलों को पकड़ पाते हैं, और ना ही समय को। समय के साथ प्रकृति में बदलाव आता गया है। प्रकृति के बदलाव के साथ मानव भी बदलता गया है। मानव के बदलाव के साथ चीजें बदली। प्राकृतिक जल, रुपयों के मोल बिक रहा है। हर चीज जो हमें प्रकृति से उपलब्ध थी, अब मूल्य चुकाकर मिल रही है। इन सबके परिवर्तन से समाज में भी परिवर्तन आ रहा है। समाज में आपसी होड़ लग रही है। हर कोई कुर्सी से चिपका जा रहा है। पद की लालसा, लोलुपता ने मनुष्य को अंधा बना दिया है। समाज चंद सिक्कों पर नाच रहा है। उड़ते पलों के साथ मनुष्य में बदलाव आ गया है, सोच में परिवर्तन आया है। कुटुम्ब की जगह एकल रहना पसंद करते है। चार बच्चों की जगह - \"हम दो, हमारे दो\" की सोच हो गई हैं। भावनाओं की जगह प्रैक्टिकल लेता जा रहा है। मनुष्य सभ्यता की आड़ में शराबी एवं हिंसक बन रहा है। इन सभी का प्रभाव समाज पर पड़ रहा है। हाँ, कुछ अच्छी बातें भी समाज में हो रही है। महिलाओं की उन्नति को समाज ने स्वीकार लिया है परन्तु मन के अंह ने उन्हें अपने से निचे ही स्थान दिया है। आज उड़ते पलों के साथ महिलायें पुरुषों की बराबरी कर रही हैं, पर हर क्षेत्र में वे पुरुषों के बराबर ही हैं, चाहे कोई भी नौकरी हो या व्यापार हो। यहाँ तक की हवाई जहाज उड़ाने से लेकर सुरक्षा के क्षेत्र एवं सैन्य बल या शोध (अनुसंधान) हो, हर जगह वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। समाज शिक्षा के क्षेत्र को स्वीकारा है। इसलिए हर समाज में लड़का हो या लड़की, पढाई पर जोर देता नजर आ रहा है। हर पल कीमती होने के कारण समाज के रस्मों, रिवाजों में भी फरक आ गया है। पहले शादियाँ का उत्सव पंद्रह दिनों तक चलता था, आज दो दिन के अंदर शादी की रस्में पूरी की जाती है। अपने ही समाज के अंदर शादी होती थी। अब उसका विस्तार हो गया है। उदाहरण के तौर पर हमारे समाज के लड़के/लड़कियाँ अन्य जातियाँ में विवाह करने लग गए, कहीं तो लड़कियां गैर समुदाय के लड़कों के साथ भाग रही, पहलें औरतें केवल घर बार सम्हालती थी, अब वह नौकरी भी कर रही हैं। समय के साथ समाज में आये कुछ बदलाव अच्छें हैं तो कुछ बुरे। जो भी हो, इस मशीनीकरण की दौड़ में समाज भी तेजी से आये परिवर्तन को स्वीकार कर रहा हैं। समाज ही वो नींव है जो देश के युवा नौजवानों की आधारशिला है। इसलिये समाज में सुधार आवश्यक है। उड़ते पलों की दौड़ के साथ चलना अच्छी बात है मगर अंधाधुध दौड़ खतरनाक होती है, इसलिये अच्छी तरह सोच समझकर ही आधुनिकता को अपनायें।

प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी (राठौड़) सुपुत्र श्री रतनलालजी राठौड़ जनासनी - साँगावास { मैसूर - कर्नाटक }
संपादक :- सीरवी समाज डॉट कॉम