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सीरवी समाज डॉट कॉम टीम द्वारा भारत में लॉकडाउन की घड़ी मे समाज में एक अच्छी पहल कर हर शनिवार को दीवान सबाह से सीधा संवाद किया
Posted By : Posted By Manohar Mysore on 01 Jun 2020, 04:15:00

सिरवी समाज डांट काम की टीम को बहुत बहुत बधाई जिन्होंने भारत में लॉकडाउन की घडी में समाज में एक अच्छी पहल करके हर शनिवार को दिवान साहब से सीधा संवाद करके अन छुए पहलुओं को दिवान साहब के श्री मुख से सुनने को मिल रहा है इसी कड़ी में गत शनिवार को एक अच्छी बात यह भी हुईं की आरती में खिलजी के स्थान पर आसूर शब्द बोला जायेगा।ये प्रस्ताव MP से CA भगवान जी लछेटा ,अध्यक्ष सीरवी समाज ट्रस्ट इंदौर वालों के द्बारा लाया गया था इसके ऊपर दिवान साहब ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए मोखीक स्वीकृति दे दी गई बहुत अच्छा हुआ हमारे मन में भी बहुत दिनों से बदलाव की इच्छा थी

उसी तरह दो और बदलाव की जरूरत है हो सकता है में गलत भी हो सकता हु।

1-जब हमारे यहां माताजी अम्बापुर से लेकर बिलाड़ा तक पथारे साथ में नन्दी(पोठीया) था नन्दी यानी धर्म माताजी ने हमेशा धर्म को साथ लेकर चलते थे धर्म का उपदेश देते थे आज बिलाड़ा में भी मन्दीर में जाने से पहले नन्दी की स्थापना है। नन्दी का दर्शन कर मन्दीर में जाते हैं नन्दी यानी धर्म। धर्म यानी शिव । शिवजी के दर्शन कर मन्दीर में जाते हैं बिलाड़ा की भांति हर गांव की बडेर में भी नन्दी की स्थापना होनी चाहिए।साऊथ में भी हर बडेर में नन्दी की स्थापना होनी चाहिए बडेर में माताजी री पुजा तो करते है परन्तु धर्म को धारण नहीं करते है माताजी री पुजा करने से धन तो समाज में बहुत आ गया है। पर धर्म छुट गया है धर्म के अभाव में धन का दुरूपयोग किया जा रहा है इसलिए धर्म की यानी नन्दी ( पोठीया) की स्थापना हर बडेर में करनी चाहिएं

2-हम हर बडेर के मुल में सिंह वाहिनी दुर्गा की पूजा करते हैं व स्थापना करते है मेरे विचार में ये ग़लत है क्योंकि माताजी हमारे यहां पधारे थे तब वृधा (डोकरी) के रुप में पधारे थे और डोकरी के रुप में ही अन्तर ध्यान हुए थे इसी रूप में रहे इसलिए हमें भी इसी रूप में पुजा करनी चाहिए।मुल में इसी रूप की स्थापना करनी चाहिए।हे ये दोनों एक ही पर जींस रुप में पधारे थे उसी रुप में पुजा करनी चाहिए। जैसे राम ,कृष्ण ,बाबा राम देव, अन्य जाती में तेजाजी महाराज हो और अनेक विष्णु के अवतार हुए हो उन सभी को उसी अवतार में पुजा जाता है दुर्गा के भी बहुत अवतार हुए जीस जीस रुप में पधारे थे उसी रुप में पुजा करते हैं हम सिरवी ही एक ऐसे हैं जो डोकरी के रूप में अवतार लिया परन्तु सिंह वाहिनी दुर्गा की पूजा करते हैं स्थापना करते हैं हम बडेर में बेठ कर कभी ध्यान करते हैं तो ऐसा लगता है कि हमारे माताजी है कोन सिंह वाहिनी दुर्गा या डोकरी के रुप में माताजी किसका ध्यान करें असमझ की स्थीती बन जाती है मेरे विचार में तो डोकरी के रुप में ही स्थापना करनी चाहिए इस पर भी समाज में मन्थन करना चाहिए पहले मुगलों के शासन में मुर्ती स्थापना नहीं करते थे पाट व गादी की स्थापना करते अब तो मुर्ती स्थापना करते हैं तो ऐसे में डोकरी के रुप में ही स्थापना करनी चाहिए

सूखा राम चोयल