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निंदा तू न गई मेरे मन से, प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी राठौड़ पुत्र श्री रतनलाल जी राठौड़
Posted By : Raju Seervi Posted By on 01 Mar 2020, 14:22:06

निंदा तू न गई मेरे मन से 

सहारे के बिना जबसे खड़े होने लगे हो तुम  तभी से दॄष्टि में कुछ की, कड़े होने लगे हो तुम अगर आलोचना बढ़कर बड़े करने लगे जब भी समझ लेना कि अब कद में बड़े होने लगे हो तुम। 

बंधुओं उपरोक्त मुक्तक से इस आलेख की शुरुआत करता हूँ। 

व्यक्ति की कीर्ति बढ़ने से विरोधियों तथा आलोचकों की संख्या भी बढ़ती है।  जो लोग यशस्वी व्यक्ति के साथ रहते हैं, पीठ पीछे वह भी उसकी निंदा करते हैं।  प्रसिद्ध प्राप्त करने वाले व्यक्ति के निंदक उसके ऊपर भांति-भांति के आरोप लगाते हैं। कहावत है-बदनाम जो होंगे तो क्या नाम न होगा। 

बदनाम करने वाले यह नहीं सोचते कि वह जिसकी निंदा कर रहे हैं, उसका और भी नाम हो रहा है।  जो लोग कुछ नहीं करते वही लोग, कुछ करने वालो की निंदा करते हैं।  आज हमारे समाज में ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं, जिनके पास सामाजित धरातल पर करने के लिए कुछ भी नहीं है; लेकिन हाथ में मोबाइल है, सोशल मीडिया का सहारा है और टारगेट पर बैठा हुआ एक व्यक्ति है..। बस, यही है उनकी समाज सेवा। 

लोग परेशान रहते हैं कीं समाचार पत्रों में उसका नाम क्यों छपता  है? शासन-प्रशासन, उनके अपने कार्यों में सहयोग क्यों लेता है? यह आदमी जरूरमंदों का सहयोग क्यों करता हैं? सहयोग करने के लिए पैसा कहाँ से लाता हैं? बड़े-बड़े समाजसेवियों और सामाजिक संगठनों से उसका इतना प्रगांढ़ संबंध क्यों है? बड़े-बड़े सम्मान और पुरस्कार उसको क्यों मिलता है? ....... इत्यादि प्रश्न लोगों की बातचीत के विषय होते हैं। 

एक अध्ययन से पता चलता है कि जो भी व्यक्ति अच्छा कार्य करता है अक्सर उसके साथ ऐसा ही  होता है। समाज में बुरे कार्यों का विरोध कम होता है लेकिन अच्छे कार्यों का विरोध सबसे ज्यादा होता है। कारण स्पष्ट है कि बुरा व्यक्ति  अपनी निंदा सहन नहीं कर पाता और निंदक को किसी न किसी रूप में सबक सिखा  ही देता है। 

अच्छे व्यक्ति की भी निंदा लोग पीठ पीछे तो करते हैं, उसके मुंह पर भी करते हैं क्योंकि उससे किसी प्रकार के खतरे की संभावना नहीं होती। मानव की यह प्रवृत्ति किसी विज्ञान की देन नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से ही पीढ़ियों के साथ चली आ रही हैं। ... शायद आगे भी चलती रहेगी। 

मेरे एक मित्र ने मुझसे प्रश्न किया- आपके साथ पुरे सोशल मीडिया पर दो चार लोग एक गैंग बनाकर आपका चरित्र हनन कर रहे हैं, तो क्या आपका व्यक्तित्व उससे प्रभावित नहीं होता? मेरा उत्तर था कि जिन गुणों से आप रुष्ट होते हैं, उन्हीं से मैं प्रभावित होता हूँ।  अपने समाज के लोगों की कुछ सहायता कर सकूँ, अपने संगठन के कार्यों में कुछ मदद कर सकूं, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी। 

मुझे भी नहीं, अच्छे कार्य हर प्रबुद्ध व्यक्ति को अच्छे लगते हैं।  अच्छे व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा अच्छे कार्यों का मूल्यांकन किया जाता है। समय, मेरा भी मूल्यांकन एक दिन जरूर करेगा। मुझे इनके शाब्दिक कटु वचनों से कोई हानि नहीं पहुँचती है क्योंकि हमारी नेकियाँ हमारे व्यक्तित्व का कवच बनकर हमारी रक्षा करती हैं। इससे ईष्यालु और क्रोधी अपना ही मानसिक तथा शारीरिक नुक्सान करता है। 

यदि गहराई के साथ अध्ययन किया जाय तो वार्तालाप के दौरान अधिकतर लोग अपने विरोधी की निंदा करते हुए मिलते हैं। लोकतंत्र में तो सुनियोजित ढंग से पक्ष-विपक्ष परस्पर एक दूसरे की निंदा करते हुए देखे  जाते हैं।  निंदा रस वास्तव में बड़ा आनंददायी होता है।  निंदक, निंदा करके अपने को बड़ा तथा विरोधी को छोटा समझने लगता है। यही प्रवृत्ति  उसे निंदा करने के लिए प्रेरित करती हैं।  निंदा तथा आलोचना को विद्धान लोग महत्वहीन समझते है। वे सदा सद्कार्य में लगे रहते हैं। यही कारण  है की धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि बढ़ती जाती है और सफलता उनके कदम चूमती हैं। मैं अपने निंदक मित्रों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन किया।  हमारे कदम जहाँ भटके, उन लोगों ने अपने निंदा के द्वारा सदा रास्ता दिखाया। 

प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी राठौड़ पुत्र श्री रतनलाल जी राठौड़ जनासनी - साँगावास (मैसूरु-कर्नाटक)