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आलेख:-समाज में शिक्षित स्त्री - और पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव । - प्रतिभागी - 4 - नीता देवड़ा,
Posted By : Posted By seervi on 30 Sep 2019, 03:52:26

......समाज में शिक्षित स्त्री- और पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव ............

एक स्त्री ही तो हैं ,जो एक अंश का निर्माण करती है ,उसी अंश से एक परिवार का निर्माण होता हैं और परिवार से समाज का और समाज से ही एक राष्ट्र का निर्माण होता है ।
परंतु पुरुष प्रधान होने के कारण स्त्री का दर्जा समाज में पुरुष से नीचे रखा गया है अब समाज में स्त्री शिक्षित हो या अशिक्षित उसकी कोई तुलना नहीं करना चाहिए बल्कि समाज में स्त्री को समानता का अधिकार होना चाहिए ।
फिर भी विषय शिक्षित स्त्री का हे -
अब यदि समाज जनता हे की स्त्री से एक अंश का निर्माण होता है तो स्त्री को शिक्षित करना भी जरुरी होना चाहिए यदि स्त्री शिक्षित होगी तो ही शिक्षित परिवार ,समाज और शक्षित राष्ट्र का निर्माण होगा लेकिन कुछ अंधविश्वास के कारण स्त्री को झुकना ही पड़ता है अब सवाल उठता है कि कैसे स्त्री को अंधविश्वास के कारण झुकना पड़ता है ।
एक परिवार में दो जुड़वाँ बच्चे पैदा होते है तो एक लड़का है और एक लड़की , अब जुड़वाँ बच्चो की परवरिश एक जैसी होती है क्योंकि समाज इसे भगवान का आशीर्वाद मानते है ,लेकिन जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हे लड़की को बहुत सारे नियमो का जो समाज या धर्म के द्वारा बनाये जाते हे उसमे धकेल दिया जाता है जैसे पहले जब लड़की को महावारी आती है तो उसको परिवार में लज्जा का पात्र बनना पड़ता है ,उसको किसी भी चीज को छूने नही दिया जाता है बल्कि उसी के साथ पैदा हुआ लड़का उसे उसी उमर में जिम्मेदारियों का अहसास कराया जाता है । जैसे ही उमर बढ़ती है लड़कियों को कुछ धार्मिक गतिविधियों में उपवास की परम्परा अनुसार उनको ढाल दिया जाता है कुछ जरुरी उपवास होते है जो लड़कियों को करने के लिए बाध्य किया जाता है जैसे करवाचौथ ,हरतालिका तीज ,ऋषिपंचमी ये कुछ उपवास ऐसे हे जो लड़कियों को करने के लिए मजबूर किया जाता है ,हमारे हिन्दू धर्म में कुछ पोथिया बनायीं जाती है उसमें लिखा होता है कि जो लड़की शादी के बाद करवाचौथ का उपवास नहीं करेगी तो उसके पति की मौत हो जायेगी और यदि लड़की हरतालिका का उपवास नहीं करेगी तो उसको मक्खी ,अजगर या चींटी और न जाने कितने नाम होते है उनका जनम मिलेगा और तो और एक ऋषिपंचमी का उपवास जिसको करने से लड़की के छुआ छूत में हुए सारे पाप धुल जाते हे अब उसी के साथ जन्मे लड़के को इन सारी बातों का सामना नहीं करना पड़ता है चाहे वो हरतालिका के दिन दारू पी कर घर में आया हो ,चाहे वो करवाचौथ के दिन नॉनवेज खा कर आया हो या चाहे वो ऋषिपंचमी के दिन बहार किसी लड़की भी लड़की के साथ छेड़खानी करके आया हो पर उसका कोई पाप लड़के को नहीं लगता है और नहीं इन पापो को धोने के लिए कोई उपवास बना हे और नहीं कोई धार्मिक पोथीपत्रा बना है । मुझे आज तक समझ नहीं आया की एक ही कुल में एक ही समय में एक ही नक्षत्र में जन्म लेने के बाद लड़के और लड़की में इतना धार्मिक या पारिवारिक भेद क्यों ?? लड़की चाहे कितनी भी शिक्षित क्यों न हो जाये चाहे वो अफसर हो या टीचर हो या डॉक्टर हो लेकिन फिर भी इन धार्मिक रिवाजो के कारण लड़की को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है मेरे हिसाब से स्त्री कितनी भी कितनी भी शिक्षित क्यों न हो जाये पारम्परिक पारिवारिक समस्याऐ लड़की को आगे बढ़ने से रोकती हे । पारिवारिक चलने वाले नियम जिस दिन लड़के और लड़की में फर्क समझना बंद कर देंगे उसी दिन लड़की शिक्षित कहलाएगी अन्यथा लड़की कितनी भी पढ़ लिख जाये वो पारिवारिक समस्याओं के कारण पीछे ही रह जायेगी

आपकी बहन
नीता देवड़ा?