सीरवी समाज - ब्लॉग

तेरी समाजसेवा मेरी समाजसेवा से अच्छी कैसे :- प्रस्तुति :- राज राठौर, बेल्लारी, कर्णाटक
Posted By : Posted By on 02 Aug 2019, 03:38:02

सीरवी कौम को पीछे धकेलने में सीरवी का योगदान:

आज की चर्चा का विषय यही है,हो सकता है कई बुद्दिजीवी महानुभावो को अटपटा और कुछ को बुरा लगे परन्तु आज इस विषय पर थोडा गौर कर लिया जाए. आज अपने सीरवी समाज के बढेर व उससे जुड़े संगठन,मंडली और पता नही क्या क्या सभाएं बन चुकी / बन रहेे हैं ।
लगभग सभी इतने हाईटेक हैं कि बिरादरी का सारा उत्थान कीबोर्ड के द्वारा सोशल प्लेटफार्म पर ही कर दे रहे हैं.
किधर भी निकल जाओ किसी न किसी सीरवी संगठन के पदाधिकारी से आप टकरा जाओगे. कोई मंत्री कोई सचिव कोई अध्यक्ष कोई उपाध्यक्ष तरह तरह के पदाधिकारी मगर कार्यकता कोई नहीं.. अगर है भी तो कार्य मगर कर्ता सिर्फ नाम के, जीमण जीमाने , स्वागत करवाने ,जयकारे लगवाने ।
आजकल काबिल नहीं होने के बावजूद भी कोई भी पदाधिकारी बन सकता बशर्ते काबिलियत से ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत हो, और जब आर्थिक रूप से मजबूत हो तो समर्थक तो पहले से तैयार (चापलूसी किश्म के लोग) फिर एक स्मार्ट फ़ोन हो जिसके थ्रू ज्यादा कुछ नहीं करना बस फोटो खीचकर सोशल प्लेटफार्म पर चिपका दो, I am with फलाना साहब , selfi with ढिमका जी |
असल में जो है वो दिखने में feeling ashamed होने वाले अपने Leval को बड़ा करने के लिए बड़ी हस्तियों से दूर की रिश्तेदारी निकालने की काबिलियत भी रखते हों.
इन बेचारो ने आजकल अपने कंधो पर दो दो जिम्मेदारियां उठा रखी हैं, बिरादरी का उत्थान करने के साथ साथ ये धर्मभीरु युवा देश और धर्म की भी रक्षा कर रहे हैं (only on social platform अगर सीरवी हो तो यह लाइक करो, देखते कितने हिन्दू है कमेंट करो, पागल हो तो Share करो)( it is good if doing #FROM social platform for needful pplz)
आजकल समाजी अपनी संस्कृति को थोथी संस्कृति में बदलने को आमादा हैं , इनमे से बहुतेरे ठेकेदार ऐसे भी हैं जो शहरी पृष्ठभूमि से हैं और अपनी असली संस्कृति की जड़ो से कटे हुए हैं वो रात दिन हां \"सा\" ना \" सा\" समाज -समाज चिल्लाया करते हैं (फौरा मान सम्मान) जबकि जड़ो से जुड़ा हुआ समाजी सबका सम्मान करता है, कोई भेदभाव नहीं रखते । एक ग्रामीण समाजी जो खेती किसानी या पशुपालन से जुड़ा हुआ है उसको अपने बिरादर (चाहे एक बीघे जमीन वाला हो या सौ बीघा का मालिक ) के यहाँ अपनापन महसूस होता है ना कि किसी तथाकथित सेठ के यहाँ (दक्षिणी दिखावा समाजी). लेकिन अफ़सोस कि बात ये है कि इनमे से अधिकतर ठेकेदार आज मनुवादियों के #मानसिक गुलाम हैं और पाखंडियो के शंख बनकर बज रहे हैं और अपने संगठनों के साथ साथ समाज को भी खोखला करने में लगे हैं.
अब देखिये इन बढेर वाइज संगठनो के सामाजिक उत्थान कार्यक्रम.
हकीक़त ये है कि जिस प्रकार भारत में विभिन्न पार्टिया खुद को दूसरी से बेहतर बताती हैं वही हाल इन संगठनों का भी है.. समाज से ज्यादा इनमे एक दुसरे को नीचा दिखने की और खुद को बड़ा ठेकेदार दिखाने की होड़ रहती है ।
अपना सीरवी समाज इतना सीधा है कि ये नहीं पूछ पाते कि बुद्दिजियों जब आप खुद एक नहीं हो सकते तो समाज को क्या खाक एक करोगे.
दरअसल बहुत से पदासीन महानुभ समाज उत्थान के बजाय विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के स्वार्थी नेताओ की हांजी हांजी , अंधभक्ति में व्यस्त रहते हैं समाज के बहाने खुद को चमकाने की किसी की कोशिश छुपी हुई नहीं है.

कोई इन ठेकेदारों से सवाल करने वाला हो कि आप क्या करते हैं? आपका विज़न तो बताईये.. क्या आपके पास भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे सीरवी आबादी की शैक्षिक, सामाजिक स्थिति के आंकड़े हैं?

क्या आपको समाज की वास्तविक समस्याएं पता भी हैं?अगर है तो समाधान के लिए क्या कदम उठाये ?
कोई समाजी के साथ सामाजिक अन्याय होता है तो क्या पदाधिकारियों को कुछ ठोस कदम नहीं उठाने चाहिए.. उठाएंगे कैसे खारा कौन पड़े की मानसिकता में जकड़े जो है फिर भले अन्याय होते रहे ।
समाज उत्थान कार्यक्रम में उत्थान बस इन्ही का होता है..
कोई समाजी खुद के दम पर कुछ करता है तो उसको सम्मानित करने की नौटंकी खूब करते हैं ये लोग, जब वो प्रतिभा संघर्ष कर रही होती है तो ये सो रहे होते हैं और वो दम तोड़ दे तो कोई नहीं हाँ वो आगे आ जाये तो इन्हें राजनीती चमकाने का मौका मिल जाता है..
और उसके बाद उस प्रतिभा को सम्मानित करने की खबर को ये लोग फेसबुक पर और अख़बार में ऐसे फैलायेंगे मानो वो उपलब्धि उस प्रतिभा की नहीं बल्कि इनकी है..
अरे क्या समाज में कमी है प्रतिभाओ की आप उन्हें आगे लाने के लिए क्या कर रहे हो? या सिर्फ समाज के पैसे फूंककर बड़े बड़े सम्मलेन करके उनमे एक दुसरे को मालाये पहनाते रहोगे और सम्मानित करने का ढोंग करते रहोगे.

कुछ दिनों पहले ही 2 नए बढ़ेरो की खबर सोशल मीडिया पर पढ़ी , फिर दो बढ़ेरो के संगठन / पदाधिकारी , चलो बढेर तो सही, पर सामाजिकता ?
कार्यकर्ता कोई बनना नहीं चाहता क्योंकि इनके पास कोई विज़न ही नहीं होता कि करना क्या है ये सभी नेता बनना चाहते हैं.
बस अपने संगठन के नाम से एक फेसबुक पेज बनाओ एक ग्रुप बनाओ ये लो हो गया काम बन गए नेता जी ज्यादा करो तो एक वेबसाइट बनवालो. सीरवी समाज की कितनी आबादी इन्टरनेट यूज़ करती है इस सम्बन्ध में इनके पास कोई जानकारी नहीं. और जो यूज़ करते क्या वो वाकई सोशल प्लेटफार्म पर सामाजिकता में दिलचस्पी लेते है ?
समाज को माध्यम बना कर अपने अपने एजेंडा चलाने वाले ये लोग समाज को भ्रमित करने में लगे रहते हैं। जितनी जल्दी जागो उतना अच्छा.
ऐसा नहीं है कि समाज के लिए काम करने वाले लोग नहीं हैं, बहुत हैं जिनका लक्ष्य समाज के हर तबके को एक समान मान सामाजिकता के हर कार्य को जिम्मेदारी करना होता है ,वो महज दिखावा नहीं बल्कि काम करते हैं.
बहुत से लोग बिना किसी प्रचार या प्रसिद्धि के लालच के काम करते है
हमे 100-50 संगठनों की भीड़ नहीं चाहिए हमे एक संगठन चाहिए जो समस्त भारत की एक आवाज़ बन सके। पर अफ़सोस राष्ट्रिय स्तर का एक संगठन जो समाज को बेहतर दिशा दे सकता तो वो तो पंगु हो चूका है ।
ऐसे राष्ट्रिय स्तर के संगठन का निर्माण हो जिसमे काबिल लोग हों जिन्हें समाज की समस्यायों और जरुरतो का ज्ञान हो.. जिनके पास समाज के लिए एक विज़न हो. जो अपनी रोटिया ना सेककर बिरादरी के लिए सत्ता से कुछ हासिल करने का दम रखते हों.

यह भी है जैसे लोग होंगे वैसे लीडर होंगे ,जब तक बेवकूफ बनते रहोगे वो बनाते रहेंगे. अब जागने का वक़्त है जागो
जो आपका ठेकेदार बनने का दम भरे उसकी जवाबदेही तय करो तभी इस समाज की हालत बदलेगी.