#सामाजिक एकता औऱ समरसता# - हीराराम गहलोत, साभार - Seervi Govt. Employee (E) ग्रुप
सीरवी कौम एक ऐसी कौम है जिसके हर जन में "सीर"का मूल भाव समाया है।सीर का मूल अर्थ साझा है।साझा अर्थात एक दूसरे का सहयोग लेकर आगे बढ़ना।एक दूसरे की भावनाओ की कद्र करना।एक दूसरे के सुख-दुःख में साथ देना।यह कार्य हमारे पुरखों ने बड़ी दिलेरी से किया है।जब पुरातन तरीके से खेती की जाती थी,आज की तरह वे वैज्ञानिक संसाधनों या उपकरणों से युक्त नही थे।वे बैलों से खेती करते थे,पशुपालन करते थे औऱ अपनी आजीविका चलाते थे।वे कठोर मेहनती थे।उस समय संयुक्त परिवार प्रथा थी,घर-परिवार में गजब का अनुशासन औऱ मर्यादाएं थी।सब अपनी मर्यादाओं और सीमाओं से वाकिफ थे।घर-परिवार का एक ही मुखिया होता था,उनका सब कड़ाई से पालना करते थे।उस समय बहुत बड़े-बड़े कुटुंब थे।ऐसे परिवार को गवारी बोलते थे।उस गवारी की बड़ी पेठ होती थी।घर-परिवार में प्रेम-सौहार्द्ध का वातावरण होता था।समाज के लोग प्रेम-सौहार्द्ध को प्रथम वरीयता देते है।यदि किसी कारणवश परिवार में विवाद की स्थिति पैदा हो जाती थी तो वे किसी मांगलिक अवसर या सामाजिक कार्य के अवसर पर समाज के लोग उनको आपस में साथ मे बैठाते थे,उनमें आपस में प्रेम करा देते थे।यदि कोई ऐसा नही करता अर्थात समाज की बात नही मानता तो उसे समाज से बहिष्कृत कर देते थे।उनके साथ कोई व्यवहार नही करते थे।उसका परिणाम यह होता था कि वह मजबूर होकर समाज की बात को स्वीकार करता था।कितनी गजब थी,उनकी न्याय प्रणाली।
उनके लिए सामाजिक समरसता औऱ एकता पहली प्राथमिकता थी।वक्त के साथ संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन हो गया,उसका स्थान एकल परिवार ने लिया।आज एकल परिवार भी प्रेम-सौहार्द्ध से वंचित है।उन परिवारों में भी समरसता दिखाई नही देती है।आज बेटे की शादी हुई कि बहु जल्दी से जल्दी अपने को आजाद करना चाहती है।आज की युवा पीढ़ी समाज के आदर्श मूल्यों औऱ परम्पराओ को बोझ समझती है।एक स्वच्छंद पंछी की तरह जीवन जीना चाहती है।मात-पिता,दादा-दादी और पारिवारिक रिश्ते उन्हें खारे लगते है।रिश्ते कड़वे लगते है।यह बड़ी पीड़ादायक स्थितियां समाज मे पनप रही है।यह समाज के लिए शुभकारी नही है।
यह सही है कि सीरवी समाज ने अपने पुरखों के आदर्श मूल्यों से ही आज आर्थिक उन्नति की है।हमे गर्व है कि समाज आर्थिक रूप से सबल हुआ है।समाज की सोच भी बदली है।बड़े भामाशाह औऱ कर्णधार सीरवी समाज मे समरसता औऱ एकता लेन के लिए प्रयास कर रहे है।उनके अच्छे परिणाम भी आ रहे है लेकिन हम जब तक समाज को अपनी प्राचीन विरासत नही दे पायेंगे तब तक समाज को व्यापक स्तर पर सामाजिक समरसता औऱ एकात्मकता दिलाने में कामयाब न हो पायेंगे।आज जिस तरह से रिश्ते दरक रहे है औऱ युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है।उसे कैसे बचाया जाय?यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर आप औऱ हम सबको मिल-बैठकर ढूंढना होगा अन्यथा हम सबकुछ खो देंगे।हम सबको खोना नही है बल्कि पाना है।हमे कुछ नही "एक समाज एक विधान"बनाये।उस विधान की पालना माँ श्री आईजी औऱ चारभुजानाथ जी को साक्षी मानकर करे।ऐसा हम कर सकते है।यदि समाज चाहे तो कर सकता है।इसके लिए विस्तृत योजना बनाई जाय औऱ समाज के प्रबुद्ध जनों की एक समिति बनाकर विधान बनाया जाय, यदि ऐसा कर पायेंगे तो समाज के दरकते रिश्ते रोके जा सकते है। युवा पीढ़ी को समाज के आदर्श प्रतिमानों,सामाजिक रीति-रिवाजों औऱ आध्यात्मिक ज्ञान की जरूरत है।इसके लिए व्यापक स्तर पर "सीरवी समाज का युवा औऱ उनका भविष्य" के सेमिनार का आयोजन किया जाय औऱ प्रवास में वडेरो में जो बीज महोत्सव होते है उसमें युवाओं को अलग से अभिप्रेरणात्मक उद्बोधन दिया जाय,इससे निश्चित रूप से बदलाव आयेगा।सीरवी समाज की साम्राज्ञी पत्रिका "सीरवी संदेश" को अच्छे ढंग से भूमिका निभानी चाहिए।पत्रिका चाटुकारिता तक ही नही रहे।ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए।
आइये,आप और हम सभी सीरवी समाज के नव उत्थान-कल्याण के लिए अपना सर्वोत्तम कर्तव्यकर्म करे।अपना सर्वोत्तम अर्पण करें।सभी को मेरा सादर अभिनंदन-वंदन सा।??