सीरवी समाज - ब्लॉग

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Posted By : Posted By seervi on 12 Sep 2019, 03:18:20
सीरवी समाज की अच्छाईयां - सबसे जुदा

सीरवी समाज की अच्छाईयां बताने के लिए समाज की उत्तपत्ति के बारे में बताने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
सीरवी समाज की अच्छाईयां तो सीरवी समाज के कुल में पैदा हुए व्यक्ति के व्यवहार से पता चल जाती है
सीरवी समाज में कई ऐसी अच्छाईयां हे जो हमने कभी किसी समाज में न देखी होगी न सुनी होगी ।
" समाज की विशेषताये "
1) सरल व्यवहार - सीरवी बंधू का व्यवहार इतना सरल है कि दुनिया के किसी भी कोने में बैठा हो दुसरो के मान में अपने लिए जगह बना ही लेता है ।
2) सहायता - आज जमीन से उठा सीरवी ,समाज की सहायता के लिए ऑफिस खोल रहा है । परिवार के पालन , चिकित्सा का क्षेत्र , खेलकूद में या पढ़ाई के क्षेत्र में समाज से पैसा एकत्रित करके समाज की मदद के लिए आगे आया है ।
3) मेहनती - मेहनत का नाम सुन कर
ही किसान का चेहरा आँखों से गुजर जाता है । सीरवी तो जमीन से खड़ा हुआ है ,जमीन से खड़ा होना मतलब अन्न पैदा करना , चाहे कोई भी मौसम हो सर्दी , बारिश या कड़कती धुप सीरवी किसान खून पसीना एक करके परिवार का पालन पोषण करता हे ।सीरवी समाज की मेहनत का परिणाम ही आज उन्नति का शिख..
Posted By : Posted By seervi on 11 Sep 2019, 04:36:28
विचार मेरे विचारो में - पाक्षिक आलेख - सीरवी समाज की अच्छाईया - सबसे जुदा सबसे अलग

भारत देश में अनेको धर्म है l सभी धर्मो के लोगो में आपसी सोहार्द व् भाईचारा है l यहाँ समाज जातिगत पहलुओ पर विभक्त है l जिसमे से एक जाती का उल्लेख लोग बड़े गर्व भाव से करते है l और वो जाती है खारड़िया सीरवी -
सीरवी जाती पुरातन काल से ही अपनी विशिष्टताओ और प्रेम शान्ति के लिए जाना जाता है l सीरवी समाज के लोग बेहद ही सुशील तथा शांतिप्रिय होते है तथा सदेव ही दीं दुखी लोगो की सहायता व् मदद के लिए तत्पर रहते है l यही कारण है की आज देश विदेश में कही न कही सीरवी समाज के चेरिटेबल ट्रस्ट जरुर मिलते है l
मैं यहाँ सीरवी समाज की कुछ ऐसी ही अच्छाइयो का उल्लेख करने जा रहा हु -
1. परम्पराओ और रीती रिवाजो के प्रति पूर्ण सम्मान इस आधुनिकतावाद में भी सीरवी समाज अपनी परम्पराव और रीती रिवाजो के निर्वहन बेहद ही शालीन तरीके से करता है l जैसे शादी विवाह पारंपरिक पोशाक में करना छोटे नवजातो के जड़ोलिए की रस्म इत्यादि l
2. दूसरी जातियों का सम्मान करना - माँ आईजी के पथ का अनुसरण करते हुए सीरवी समाज के द्वारा द..
Posted By : Posted By seervi on 11 Sep 2019, 04:35:17
संदेश को पढो /गढो /और आगे बढो.....

फेसबुक से प्राप्त पोस्ट...

गौत्र.....??

पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता |

आइए जाने क्यूँ ?

अब एक बात ध्यान दें की स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है ।

इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र). इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही !
और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है ।

१. xx गुणसूत्र

xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है . तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है ।

२. xy गुणसूत्र

xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है ।

तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्यू की y गुणस..
Posted By : Posted By seervi on 10 Sep 2019, 13:21:21
Banwarilal was a samosa seller in an Indian town. He used to sell 500 samosas everyday on a cart in his locality. People liked his samosas for last 30 years, because he cared for hygiene in preparation and selling, would use good quality oil and other ingredients, provide free chutneys with samosas. He would throw all unsold samosas to poor people, cow, dogs etc and did not sell unsold stale samosas to people next day.

Banwari earned good reputation and enough money from samosa selling and he never faced downfall in his sale in last 30 years. He was able to fund his son's MBA education in a famous private college in Noida out of his earnings.

Recently his son Rohit completed his MBA and came back home as he could not get appropriate placement. Rohit started taking interest in his father's samosa business. He had not been involved in his father's business earlier as he considered that to be an inferior job.

During MBA, Rohit read a lot on recession. He read that it is coming up in global economy and how it will affect job prospects, increase unemployment etc. So he thought that he should advise his father of the risks in the business of samosa selling on account of recession.

He told his father that recession may cause fall in sale of samosas, so he should prepare for cost cutting to maintain the profit.

Banwari was glad that his son knows so much about business and taking interest in his business. He agreed to follow advice of his son.

Next day, Rohit suggested using 20% used cooking oil and 80% fresh. People did not notice the change in the taste and 500 samosas were sold.

Rohit was motivated by the profit made by this savings. Next day he suggested increased share of used oil to 30% and reduce the quantity of free chutney.

That day, only 400 samosas were sold and 100 samosas were thrown to poor people and dogs.

Rohit told his father that recession has really set in as predicted by him, so more cost cutting is to be done and they would not throw stale samosas but would fry them again next day and sell them. Quantity of used oil will also be increased to 40% and to make only 400 samosas to avoid wastage.

Next day 400 samosas were sold but customers were not feeling good old taste. But Rohit told his father about savings because of his smart planning. Father told him that he may be knowing better, being educated.

Next day Rohit decided to us..
Posted By : Posted By on 09 Sep 2019, 06:10:04
ये कहानी देखने के बाद खुद को रोक नहीं पाया पोस्ट करने से

बस परिस्थितया थोड़ी भिन्न रही है
पूरी कहानी पढियेगा...
वो विधवा थी पर श्रृंगार ऐसा कर के रखती थी कि पूछो मत। बिंदी के सिवाय सब कुछ लगाती थी। पूरी कॉलोनी में उनके चर्चे थे। उनका एक बेटा भी था जो अभी नौंवी कक्षा में था । पति रेलवे में थे उनके गुजर जाने के बाद रेलवे ने उन्हें एक छोटी से नौकरी दे दी थी । उनके जलवे अलग ही थे । 1980 के दशक में बॉय कटिंग रखती थी । सभी कालोनी की आंटियां उन्हें 'परकटी' कहती थी । 'गोपाल' भी उस समय नया नया जवान हुआ था । अभी 16 साल का ही था । लेकिन घर बसाने के सपने देखने शुरू कर दिए थे । गोपाल का आधा दिन आईने के सामने गुजरता था और बाकि आधा परकटी आंटी की गली के चक्कर काटने में।
गोपाल का नव व्यस्क मस्तिष्क इस मामले में काम नहीं करता था कि समाज क्या कहेगा ? यदि उसके दिल की बात किसी को मालूम हो गई तो ? उसे किसी की परवाह नहीं थी । परकटी आंटी को दिन में एक बार देखना उसका जूनून था ।
उस दिन बारिश अच्छी हुई थी । गोपाल स्कूल से लौट रहा था । साइकिल पर ख्वाबो में गुम उसे पता ही नहीं लगा कि अगले मोड़ पर कीचड़ क..
Posted By : Posted By seervi on 09 Sep 2019, 05:49:31
विचार मेरे विचारो में - आलेख - सीरवी समाज सबसे जुदा

सीरवी जाती का आज से लगभग 800 वर्ष पूर्व हुआ है l सीरवी जाती मुख्यत: राजस्थान प्रदेश के मारवाड़ व् गोडवाड़ क्षेत्र में कम संख्या है l
सीरवी जाती खारड़िया राजपूतो के वंशज है, खारड़िया राजपूत पहले जालोर के साका के नाम से प्रसिद्द थे l फिर बदलते समय के साथ वहा की परिस्थितिया अनुकूल न होने के कारण उन्होंने वहा से पलायन कर पाली व् जोधपुर जिलो के गाँवों में आकर बस गए l ये लोग यहाँ पर पूर्व में बसे जनवो के साथ सीर साझे में खेती करने लग गए l फिर यह खेती इनका मुख्य व्यवसाय बन गया l
आज समय के साथ सीरवी समाज के लोगो ने अपने विकास व् समाज विकास के लिए यहाँ से अपने व्यवसाय के कारण दक्षिण भारत में है l सीरवी समाज के लोग देवी श्री आई माता के अनुयायी है और इनके ही उपासक है l आई माता के मंदिर को "बढेर" कहा जाता है l आज के इस आधुनिक युग में भी सीरवी समाज के लोग अपने रीती रिवाज संसकारो को नहीं भूले है वो आज भी अपने सारे प्रसंग, त्यौहार, उत्सव, अपने रीती रिवाजो से करते है l
आज सीरवी समाज के लोगो ने अपने परिश्रम कला व् अथक प्रयासों से हर क्षेत..
Posted By : Posted By seervi on 09 Sep 2019, 05:42:32
विचार मेरे विचारो में - आलेख - सीरवी समाज सबसे जुदा
सीरवी एक जाती है जो आज से लगभग 800 वर्ष पूर्व अलग ह्जोकर राजस्थान के मारवाड़ और गोड्वाड क्षेत्र में रह रही थी ल कालांतर में यह जाती राजस्थान के जोधपुर और पाली जिले में कम संख्या में पायी जाती है
सीरवी समाज के इतिहास का बहुत कम प्रमाण उपलब्ध है lखारादिया राजपूतो का शाशन जालोर पर था व् राजा कान्हडदेव चौहान वंशीय थे उन्ही के वंश 24 गौत्रीय खारड़िया सीरवी कहलाये l
अत: वैशाख सुद 5 विक्रम संवत 1368 को खारड़िया राजपूतो ने साका किया l जो इतिहास में जालोर के साका के नाम से प्रसिद्द है l
खारड़िया राजपूतो ने 600 बेलगाडीयो में अपना सामान लादकर पाली व् जोधपुर जिले की तरफ प्रस्थान किया और लूनी नदी के आस पास के क्षेत्र में जहा सिचाई के पानी की पर्याप्त सुविधा थी, वहा बस गए l ये लोग यहाँ पर पूर्व में बसे जनवो के साथ सीर साझे में खेती करने के कारण सीरवी कहलाये l खारड़िया राजपूतो ने तलवार का मोह त्याग कर वर्षो से बंजर पड़ी भूमि को अपने हाथो से हल चलाकर उपजाऊ बनाया l फिर यही खेती इनका मुख्या व्यवसाय बन गया l जिस जिस खेत्र में उपजाऊ जमीन व् ..
Posted By : Posted By seervi on 07 Sep 2019, 05:39:19
आलेख:-सीरवी समाज की अच्छाइयां-सबसे जुदा ।

प्रत्येक समाज की अपनी कुछ अच्छाइयां अर्थात विशेषताएं होती है तो कुछ अपनी कमियां भी।
सीरवी समाज भी एक ऐसा ही समाज है जिसके अतीत में झांके तो अच्छाइयां ही अच्छाइयां नजर आती है। यह सही है कि वक्त के साथ समाज की अच्छाईयों पर ग्रहण भी लगा है औऱ समाज की वे खूबसूरत प्रतिमान औऱ सामाजिक आदर्श मूल्य अर्थात अच्छाइयां छिन्न-भिन्न भी हुई है लेकिन आज भी सीरवी समाज में बहुत-सी अच्छाइयां है जो सबसे जुदा है।
सीरवी समाज की अच्छाइयां पर प्रकाश डालने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि वास्तव में अच्छाइयां है क्या ?
मानव समाज में अच्छाइयां का अपना एक स्तर है जो सामाजिक,धार्मिक औऱ भौगोलिक परिस्थितियों के साथ अपना एक अलग अस्तित्व है।एक समाज के आदर्श प्रतिमान उस समाज के लिए अच्छाइयां है तो अन्य समाज के लिए वे बुराइयां है।एक धर्म के कुछ नियम उनके लिए अच्छाइयां है तो वही अन्य धर्म के लिए उनका कोई मूल्य नही है अर्थात वे बुराइयां है।
इसी प्रकार से एक क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगो के सामाजिक प्रतिमान औऱ मानवीय मूल्य उन..
Posted By : Posted By seervi on 05 Sep 2019, 03:24:11
राष्ट्र निर्माण और शिक्षक ।
भारत के महान विचारक,चिंतक,शिक्षक,लेखक औऱ श्रेष्ठ प्रशासक के रूप में विख्यात महापुरुष चाणक्य ने शिक्षक समाज के संदर्भ में कहा था कि,"शिक्षक गौरव घोषित तब होगा,जब ये राष्ट्र गौरवशाली होगा,औऱ ये राष्ट्र गौरवशाली तब होगा,जब ये राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों एवं परम्पराओ का निर्वाह करने में सफल एवं सक्षम होगा और ये राष्ट्र सफल एवं सक्षम तब होगा,जब शिक्षक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा और शिक्षक सफल तब कहा जायेगा,जब वह राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में सफल हो। यदि व्यक्ति राष्ट्रभाव से शून्य है,राष्ट्र भाव से हीन है,अपनी राष्ट्रीयता के प्रति सजग नही है तो ये शिक्षक की असफलता है।"
महान शिक्षक चाणक्य के विचार को हृदय की गहराई से मंथन-चिंतन करने की जरूरत है।इस विचार में राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका को बहुत ही सुंदर ढंग से परिभाषित किया गया है औऱ राष्ट्र के प्रति उसके उत्तरदायित्व को बताया गया है।
शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर मेरे मन के विचार आप सभी बुद्धिजीवियों ..
Posted By : Posted By seervi on 03 Sep 2019, 06:06:11
सीरवी समाज की अच्छाइयां सबसे जुदा -------------------------------------------
सीर कियो जद सीरवी सो जाणे संसार ,सीरवी समाज बहुत ही सरल ,सुलझी हुई व शांति प्रिय कौम है!आपस में हिलमिल कर रहना ,सादा जीवन उच्च विचार ,चाहे खेती हो या व्यापार अपनी मेहनत व हूनर के बल पर बनाई है अपनी अलग पहचान ! सेवाभाव,मेहनतकश व ईमानदारी इस समाज की अच्छी खूबियां है ,लेकिन जो सबसे अच्छी खूबी है वह है परिस्थिति के अनुसार सामंजस्य-चाहे शादी ब्याह का समारोह हो या फिर कोई अन्य फंक्शन उनमें लोग अपनी हैसियत के अनुसार सम्पन्न कर लेते है तो उसमें कोई शिकवा शिकायत नहीं करते हैं!विवाह की रस्में बड़े ही सादगीपूर्ण ढंग से सम्पन्न कर दी जाती है,सामने वाले समधी यानि वरपक्ष की ओर से कोई विशेष डिमांड नहीं होती है!जब कि अन्य कौमो छोटी मोटी जातियों में हम अक्सर देखते है कि इन अवसरों पर अजीब अजीब मांगे रख दी जाती है जो मजबूरी में लड़की के पिता को हैसियत न होते हुए भी पूरी करनी पड़ती है!ऐसा खाना होना चाहिए ,बारातियों का स्वागत ऐसा होना चाहिए,दुल्हें के लिये व और भी फलाना ठीमका तरह तरह की अजीबोगरीब मांगे रख देते है जो पूरी न ह..
Posted By : Posted By seervi on 30 Aug 2019, 05:05:16
इन्फॉर्मेशन और बदलाव:

मानव जीवन की एक अभिलाषा रही है ज्ञान अर्जित करना , ज्ञान यानी नॉलेज जानकारी गर्भसार...


ज्ञान विषय वस्तु की वो जड़ जो हमें सत्य से मुलाकात करवाती है....

बात कर रहे है ज्ञान की..
इन्फॉर्मेशन आते ही हमारे अंदर परिवर्तन आने शुरू हो जाते हैं जो जटिल केमिकल का निर्माण करते हैं....

मतलब ज्ञान (इन्फॉर्मेशन) आने के साथ हमारे शरीर में परिवर्तन आते है। परिवर्तन निर्माण करते है क्या सोचते हैं वो बनाने में। यह कैसे होता है इसे एक उदाहरण से समझते हैं -

मान लीजिए की आप को कहा जाए आप सपने में भाग रहे है और आपके पीछे शेर पडा हुआ है। एक लपक और आपकी मृत्यु (वैसे सपने में कोई भी अपने आप को मरता हुआ नहीं देख सकता) निकट , फटाक से आपकी नींद खुल जाती हैऔर आप महसूस करते हैं पैर थके हुए सर पर पसीना ब्लड प्रेशर हाई।

भौतिक रूप से देखें तो आप के साथ ऐसा कुछ हुआ नहीं , तो फिर शरीर में आए बदलाव किसने किए ?

वो आपकी इन्फॉर्मेशन है....

ज्ञान सकारात्मक हो सकता है नकारात्मक भी...
पर बदलाव होते है ज्ञान से..

उस बदलाव से आपका व्यवहार निश्..
Posted By : Posted By seervi on 29 Aug 2019, 07:44:55
देश का बटवारा हुआ, सबने अपने अपने हिसाब से माँगा, खोया, पाया l
प्रकृति ने हमारा पलायन किया, हमने भी माँगा, खोया और पाया l

क्या खोया और क्या पाया शायद इस लेख से समझ आये - मुझे तो आया l
सिंध का बंटवारा पंजाब और बंगाल से अलग है !

सिंध को हमसे बिछड़े 70 बरस हुए !
सिंधियों की जो पीढ़ी बंटवारे के दौरान इस पार आई थी
उनमें से ज्यादातर अब इस दुनिया में नहीं हैं .
बचे-खुचे कुछ बूढ़ों की धुंधली यादों के सिवा अब सिंध सिर्फ हमारे राष्ट्रगान में रह गया है .
इन 70 सालों में हमें यह एहसास ही नहीं हुआ
कि हमने सिंध को खो दिया है .
इस बीच सिंधियों की दो पीढ़ियां आ गई है
पर सिंध और सिंधियों के पलायन के बारे में हम अब भी ज्यादा कुछ नहीं जानते .

बंटवारे का सबसे ज्यादा असर जिन तीन कौमों पर पड़ा
उनमें पंजाबी ,बंगाली और सिंधी थे .
मगर बंटवारे का सारा साहित्य फिल्में और तस्वीरें पंजाब और बंगाल की कहानियां से भरी है .
मंटो के अफसानों से भीष्म साहनी की 'तमस' तक बंटवारे के साहित्य मे पंजाब और बंगाल की कहानियां हैं .
सिंध उनमें कहीं नहीं है.
पंजाबी और बंगालियों के मुकाब..
Posted By : Posted By seervi on 29 Aug 2019, 04:59:30
जब में लिखने बैठता हु, सोचने बैठता हु की क्या लिखू - तब सबसे पहले मेरे मन में ख़याल आता है की मेरे लेखन का दायरा कितना होना चाहिए l सीरवी समाज के आदरणीय गणमान्य नागरिको हर सोच का एक दायरा होता है, आजकल हम सोशल मीडिया पर विभिन्न तरीके के विचारो से रूबरू होते है, प्रत्येक विचार को जब हम पढ़ते है तब हम उसे मन ही मन अपने दायरे में समाहित कर के समझने की कोशिश करते है, प्रत्येक विचार अपने समझने वाले को अलग अलग मानसिकता से ग्रसित करता है, इसमें उस विचार की मूल अवधारण भी कभी कभी गायब हो जाती है, क्यूंकि पाठक की मानसिकता उस विचार में वही देखती है जो वह देखना चाहती है l अर्थार्थ सभी का अपना अपना एक सही होता है और उसी मुताबिक़ मानसिकता भी होती हैहर द्रश्य या लिखित उसी मानसिकता के प्रभाव को इंगित करते हुए समझने में आती है l
मेरे परम मित्र श्री हीराराम गहलोत जो की पेशे से अध्यापक है शिक्षाविद है के द्वारा अभी हाल ही में एक बहुत ही प्रेरणादायक लेख सामने आया है जिसके अनुसार यह चिंता जाहिर की गयी है की "आखिर हमारी यह सोच कब बदलेगी? क्या हम ऐसी घटिया मानसिकता से समाज का उत्थान कर पा..
Posted By : Posted By seervi on 28 Aug 2019, 03:10:57
शिक्षा हमे अपनी मुश्किलों से आगे देखना सिखाती हैं

शिक्षा का मुलभुत महत्व व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास में निहित हैं , और जहा विकास के पथ गमन की बात हो चुनोतिया और मुश्किलें रूपी रुकावते ठोकर के रूप में जरूर आती हैं ; शिक्षा प्राप्त व्यक्ति इन ठोकरों को कैसे पार करना या कैसे बचना हैं उसको समझता ही नहीं बल्कि दूसरो के लिए भी वो ठोकर से बचने का मार्गदर्शन करता हैं !

आदिकाल से अभी तक किये गए अविष्कारों में शिक्षा ही केंद्र रही हैं जिसने नित नए प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया और मानव को जंगलो से निकाल कर उसको मोहन जोदड़ो समृद्ध सभ्यता से भी आगे स्मार्ट सिटी में रहने तक का सफर दिखवाया ! पुराने ज़माने की दैनिक जीवन की कठिनाओ को हम शिक्षा रूपी कुल्हाड़ी से काट पाए और जीवन में नए चीजों की तरफ देख पाए | यह क्रम शिक्षा के उद्गमन से निरंतरता लिए हुए हैं !

शिक्षा से हम क्या प्राप्त करते हैं ? समग्र बुद्धि ! जो की चेतना देती हैं और चेतना से ही अपने आस पास के आवरण की आभा महसूस होती हैं , इसी आभास से उचित निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती हैं और इस प्रकार लिया गय..
Posted By : Posted By seervi on 25 Aug 2019, 13:16:32
शिक्षा का महत्व सदियों पुराना है । शिक्षा ग्रहण करना यानि अपने आप को निखारना । अपनी कुशाग्रता बढाना , चंचलता बढाना होता है । शिक्षा ग्रहण करने से हम सामाजिक साहित्यों का अध्ययन कर सकते है, लेखाजोखा रख सकते है, लेनदेन का सही हिसाब रख सकते है और भी अनगिनत फायदे है , कहते भी है और सत्य भी है कि पढेलिखे को चार आंखें होती है ।
भारतीय संविधानानुसार हर एक को शिक्षा देना हमारा कर्तव्य है और शिक्षा ग्रहण करना हर बालक का अधिकार है और यह फर्ज हमे पुरा करने का अवश्य प्रयत्न करना ही चाहिए । उसके साथ साथ हमे अपने बच्चों को धार्मिक , मानवीय शिक्षाओं से भी रूबरु करवाना चाहिए । जहां विद्यालयीन शिक्षा उसे पढना लिखना सिखाती है , वहीं धार्मिक, और मानवीय शिक्षा उसे संस्कारों के प्रति जागरूक करती है, आडंबरों व अंधविश्वासों से दूर करती है , अपने आप को वैचारिक मजबूती मिलती हैं। और भी अनगिनत लाभ है शिक्षा पाने के ।
हमे यह सबसे पहले सोचना है कि बच्चों को मातृभाषा मे दी जानेवाली शिक्षा सबसे ज्यादा असरदायक रहती है , अपनत्व रहता है , अन्य भाषाओं की सिखावट की तरह उसको अपनी मातृ..
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