सीरवी समाज - राज राठौर, बेल्लारी, कर्णाटक - ब्लॉग

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Posted By : Posted By seervi on 22 Sep 2019, 04:33:51
युवा किसी भी समाज के कर्णधार हैं, वे उसके भावी निर्माता हैं। चाहे वह नेता या शासक के रूप में हों , चाहे डॉक्टर, इन्जीनियर, वैज्ञानिक, साहित्यकार व कलाकार के रूप में हों। इन सभी रूपों में उनके ऊपर अपनी सभ्यता, संस्कृति, कला एवम् ज्ञान की परम्पराओं को मानवीय संवेदनाओं के साथ आगे ले जाने का गहरा दायित्व होता है। पर इसके विपरीत अगर वही युवा वर्ग उन परम्परागत विरासतों का वाहक बनने से इनकार कर दे तो निश्चिततः किसी भी राष्ट्र का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

युवा शब्द अपने आप में ही उर्जा और आन्दोलन का प्रतीक है। युवा को किसी राष्ट्र की नीव तो नहीं कहा जा सकता पर यह वह दीवार अवश्य है जिस पर राष्ट्र की भावी छतों को सम्हालने का दायित्व है। जब तक यह ऊर्जा और आन्दोलन सकारात्मक रूप में है तब तक तो ठीक है, पर ज्यों ही इसका नकारात्मक रूप में इस्तेमाल होने लगता है वह विध्वंसात्मक बन जाती है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर किन कारणों से युवा उर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है? वस्तुतः इसके पीछे जहाँ एक ओर अपनी संस्कृति और जीवन मूल्यों से दूर हटना है, ..
Posted By : Posted By on 02 Aug 2019, 03:38:02
सीरवी कौम को पीछे धकेलने में सीरवी का योगदान:

आज की चर्चा का विषय यही है,हो सकता है कई बुद्दिजीवी महानुभावो को अटपटा और कुछ को बुरा लगे परन्तु आज इस विषय पर थोडा गौर कर लिया जाए. आज अपने सीरवी समाज के बढेर व उससे जुड़े संगठन,मंडली और पता नही क्या क्या सभाएं बन चुकी / बन रहेे हैं ।
लगभग सभी इतने हाईटेक हैं कि बिरादरी का सारा उत्थान कीबोर्ड के द्वारा सोशल प्लेटफार्म पर ही कर दे रहे हैं.
किधर भी निकल जाओ किसी न किसी सीरवी संगठन के पदाधिकारी से आप टकरा जाओगे. कोई मंत्री कोई सचिव कोई अध्यक्ष कोई उपाध्यक्ष तरह तरह के पदाधिकारी मगर कार्यकता कोई नहीं.. अगर है भी तो कार्य मगर कर्ता सिर्फ नाम के, जीमण जीमाने , स्वागत करवाने ,जयकारे लगवाने ।
आजकल काबिल नहीं होने के बावजूद भी कोई भी पदाधिकारी बन सकता बशर्ते काबिलियत से ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत हो, और जब आर्थिक रूप से मजबूत हो तो समर्थक तो पहले से तैयार (चापलूसी किश्म के लोग) फिर एक स्मार्ट फ़ोन हो जिसके थ्रू ज्यादा कुछ नहीं करना बस फोटो खीचकर सोशल प्लेटफार्म पर चिपका दो, I am with फलाना साहब , selfi with ढिमका जी |
असल में जो ह..
Posted By : Posted By seervi on 31 Jul 2019, 05:50:21
नयी पीढ़ी में रिश्तों के मायने और संस्कार !
रिश्तों की अपनी अहमियत होती है और जरूरी है कि हम उस रिश्ते की मर्यादा को समझे और अपने आने वाली पीढ़ी (माँ बाप अपने बच्चो के लिए )को भी समझाएं। ईट-पत्थरों की दीवारों में जब रिश्तों का एहसास पनपता है तभी वह घर कहलाता है।
आज की high profile और भागदौड भरी जिंदगी में हम रिश्तों की अहमियत को भूलते जा रहे हैं। हमारी busy लाइफ हमे रिश्तों से दूर कर रही है। इसका उसर बच्चो पर भी पडता है। तभी तो आज के बच्चे रिश्तों की अहमियत को बहुत कम समझते है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसके जन्म से ही उसके साथ कई रिश्ते जुड जाते हैं। लेकिन इन रिश्तों में से कितने ऎसे होते हैं जिन्हें वे निभा पातें हैं।
ऎसा इसलिए नहीं कि बच्चों को उन रिश्तों की अहमियत का नहीं पता बल्कि इसलिए कि क्योंकि माँ बाप खुद उन रिश्तों से दूर हैं।
बच्चों में संस्कार की नींव माता-पिता द्वारा ही रखी जाती है। अगर माता-पिता ही रिश्तों को तवज्जो नही देते तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही।

आज समाज संयुक्त परिवार का प्रचलन घटता जा रहा है

संयुक्त परिवार में बच्चा दादा-दाद..
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