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राष्ट्र निर्माण और शिक्षक । - प्रस्तुति - हीराराम चौधरी अध्यापक राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,सोडावास(पाली)
Posted By : Posted By seervi on 05 Sep 2019, 03:24:11

राष्ट्र निर्माण और शिक्षक ।
भारत के महान विचारक,चिंतक,शिक्षक,लेखक औऱ श्रेष्ठ प्रशासक के रूप में विख्यात महापुरुष चाणक्य ने शिक्षक समाज के संदर्भ में कहा था कि,"शिक्षक गौरव घोषित तब होगा,जब ये राष्ट्र गौरवशाली होगा,औऱ ये राष्ट्र गौरवशाली तब होगा,जब ये राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों एवं परम्पराओ का निर्वाह करने में सफल एवं सक्षम होगा और ये राष्ट्र सफल एवं सक्षम तब होगा,जब शिक्षक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा और शिक्षक सफल तब कहा जायेगा,जब वह राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में सफल हो। यदि व्यक्ति राष्ट्रभाव से शून्य है,राष्ट्र भाव से हीन है,अपनी राष्ट्रीयता के प्रति सजग नही है तो ये शिक्षक की असफलता है।"
महान शिक्षक चाणक्य के विचार को हृदय की गहराई से मंथन-चिंतन करने की जरूरत है।इस विचार में राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका को बहुत ही सुंदर ढंग से परिभाषित किया गया है औऱ राष्ट्र के प्रति उसके उत्तरदायित्व को बताया गया है।
शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर मेरे मन के विचार आप सभी बुद्धिजीवियों एवं शिक्षाविद जनों के साथ साझा कर रहा हूँ।
सर्वप्रथम मेरे जैसे छोटे से शिक्षक का उन सभी शिक्षाविदों, शिक्षक बंधुजन-बहनों औऱ शिक्षाप्रेमियो को शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत हार्दिक बधाई औऱ सभी के उज्ज्वल,निरोगमय औऱ प्रगतिमय जीवन की अनेकानेक शुभकामनाए।
सभी शिक्षकों को अर्पित यह पंक्तियां,
"आदर्शो की मिसाल बनकर,
बाल जीवन संवारता शिक्षक।
सदाबहार फूल-सा खिलकर,
महकता औऱ महकाता शिक्षक।
नित नए प्रेरक आयाम लेकर,
हर पल भव्य बनाता शिक्षक।
संचित धन का ज्ञान हमे देकर,
खुशियां खूब मनाता शिक्षक।।"
सच्चे अर्थों में शिक्षक एक माली-बागवान की तरह होता है,जिस तरह से माली-बागवान एक उद्यान की हरियाली-खुशहाली के लिए अपना सर्वोत्तम कर्तव्य कर्म करता है,जब उद्यान विकसित हो जाता है औऱ सर्वत्र हरियाली ही हरियाली,महकते फूल से महक जाता है औऱ खुशहाली नजर आती है तो वह बहुत खुश होता है,उसकी खुशी का कोई पारावार नही होता है।ऐसा ही एक शिक्षक होता है,एक सच्चा शिक्षक अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पण करता है औऱ उसके शिष्य सफलता के शिखर पर पहुंचते है ,तब सबसे ज्यादा खुशी उस शिक्षक को होती है।विद्यार्थी के घर-परिवार,सगे-संबंधियों से भी ज्यादा प्रसन्नता उस शिक्षक या उस विद्यालय के शिक्षकों को होती है,जिन्होंने अपना सर्वोत्तम प्रयास कर अपना दायित्व निभाया।शिक्षक के लिए सबसे बड़ी गौरवपूर्ण उपलब्धि यही है कि उनके शिष्य राष्ट्र के मूल्यों औऱ परम्पराओ को आत्मसात कर अपना जीवन जिए औऱ अपने सद्कार्यों से उनका नाम रोशन करे।
चाणक्य राष्ट्र के महान शिक्षक,विचारक,चिंतक औऱ लेखक थे,उनके विचार जीवन को दिशा प्रदान करते है,जीवन शैली को बदलने में नई सोच पैदा करते है।मैं स्वयं एक शिक्षक के रूप में उनके विचारों को आत्मसात कर जीवन जीने में विश्वास रखता हूँ।
एक शिक्षक के रूप में राष्ट्र निर्माण संदर्भ में शिक्षक अपनी महत्ती भूमिका का निर्वाह कैसे करे?
एक शिक्षक आज के इस तकनीकी युग में अपने शिष्यों को कैसे गढ़े?
एक शिक्षक आज के इस स्मार्ट दुनियां में अपने शिष्यों को भारतीय मानक मूल्यों औऱ परम्पराओ की समझ कैसे विकसित करें?
ऐसे अनगिनत प्रश्न है,जिनका समाधान शिक्षक समाज को ही खोजना है।
चाणक्य के विचार आज भी महत्वपूर्ण है औऱ शिक्षक समाज को नई राह दिखाने में समर्थ है लेकिन प्राचीन शिक्षा व्यवस्था औऱ आज वर्तमान की शिक्षा व्यवस्था में बहुत अंतर आ गया है।प्राचीन शिक्षा का मूल उद्देश्य बालक को जीवन निर्माण की शिक्षा देने के विराट लक्ष्य पर केंद्रित था औऱ आज शिक्षा का उद्देश्य एक विराट लक्ष्य पर केंद्रित न होकर,शिक्षक को अनेक दायित्व से गुजरना पड़ता है।बालक का सर्वागीण विकास कैसे हो?इसके लिए विद्यालय प्रयोगशाला की तरह बन रहे है।एक शिक्षक बालक को जीवन निर्माण की शिक्षा देने के साथ-साथ,उसके पाठ्यक्रम को पूर्ण करना, पोषाहार व्यवस्था का प्रबंध करना,अन्नपूर्णा दुग्ध योजना, चुनाव,मतदाता सूची निर्माण,जनगणना कार्य,निजी स्कूलों का पर्यवेक्षण,जनसहभागिता,स्वास्थ्य परीक्षण,बालिकाओ के लिए सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का क्रियान्वयन इत्यादि अनेक कार्य करने होते है। एक शिक्षक अपने दायित्व का निर्वाह पूर्ण ईमानदारी से करता है। सरकारी औऱ विभागीय आदेशो की पालना करना उसका परम दायित्व है,वह इसकी अवहेलना कदापि नही करता है।
एक शिक्षक राष्ट्र निर्माण में अपने मूल कार्य अध्यापन के साथ-साथ अनेक कार्यो में अपना सर्वोत्तम योगदान करके अपनी महत्ती भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
एक राष्ट्र के नव निर्माण में शिक्षक अपने उत्तरदायित्व के प्रति पहले भी सजग था,आज भी शिक्षक अपना दायित्व निभा रहा है।
एक शिक्षक के रूप में राष्ट्र निर्माण में हम सभी शिक्षक बंधुजन-बहनों को राष्ट्र निर्माण में सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं को भार या बोझ न समझकर हम अपने कर्तव्यों औऱ उत्तरदायित्व को पूर्ण निष्ठा औऱ समर्पण भाव से निभाए।जिस विद्यालय-महाविद्यालय या संस्थान में हम अपनी नौकरी कर रहे हो,उसके प्रति अपना सर्वोत्तम अर्पण करें।ईमानदारी औऱ कर्तव्यनिष्ठा से अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करे।अपना राष्ट्र पुनः विश्वगुरु बने,इसके लिए शिक्षक को अपना सर्वश्रेष्ठ देना ही होगा।हम सभी शिक्षक अपने उत्तरदायित्व को गहराई से समझे औऱ अपने पेशे की तुलना किसी अन्य पेशे से न कर,राष्ट्र निर्माण का जो विराट ध्येय हमारे समक्ष है ,उसे पूर्ण करे।एक शिक्षक ही राष्ट्र के सुनागरिक गढ़ने का कार्य करता है।एक शिक्षक ही राष्ट्र के प्रत्येक क्षेत्र आर्थिक,सामाजिक,राजनैतिक,प्रशासनिक,बैंकिंग,
अंतरिक्ष,शिक्षा-स्वास्थ्य,कला,संगीत इत्यादि में सर्वश्रेष्ठ योगदान करता है।एक शिक्षक की सही शिक्षा से ही राष्ट्र का सही नेतृत्व खड़ा होता है।एक शिक्षक की शिक्षा से राष्ट्र की सीमाओं पर जवान अपना जीवन राष्ट्र के प्रति न्यौछावर करने के लिए तत्पर होता है।
हम शिक्षकों को अपने अधिकार से ज्यादा कर्तव्य को महत्ता देनी होगी। हम सभी शिक्षक इस राष्ट्र को विश्व की एक महाशक्ति बनाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ कर्तव्यकर्म करे।एक शिक्षक राष्ट्र के नव निर्माण का कुशल शिल्पकार है।शिक्षक अपने प्रदत्त ज्ञान से देश की दिशा औऱ दशा दोनो को बदलने में सक्षम है।एक शिक्षक अपने आपको एक ज्योतिर्मय दीपक समझे,जहां भी जाय एक ज्योतिर्मय दीपक की तरह अपने ज्ञान रूपी दिव्य प्रकाश से अशिक्षा रूपी अंधेरे को मिटाए औऱ शिक्षा का उजियारा करे।एक शिक्षक अपने पेशे के अंतर्निहित भाव को गहराई से समझे और राष्ट्र निर्माण में अपना सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य कर्म करे।
एक शिक्षक अपने आपको एक वैतनिक कर्मचारी न समझकर राष्ट्र के नव-निर्माण का कर्णधार समझे।
अपने समक्ष आए अबोध बालक को अपना सर्वश्रेष्ठ ज्ञान अर्पित करे,उसे संस्कारित करे औऱ स्वयं एक अभिभावक की भूमिका का निर्वहन करे।
एक शिक्षक स्वयं उच्च व्यक्तित्व मूल्यों की प्रतिमूर्ति बने,जिसके आदर्श औऱ मूल्य बच्चे आत्मसात करे।आज के इस तकनीकी युग मे अपने आपको अपडेट भी करे औऱ बच्चों को नव शैक्षिक प्रविधियों से ज्ञान कराए औऱ उन्हें तकनीकी के सदुपयोग-दुरुपयोग की सही ज्ञान दे।शिक्षक बच्चों पर एक अभिभावक की तरह ध्यान रखे।यदि हम सब अपना उत्तरदायित्व पूर्ण निष्ठा और समर्पण भाव से कर पायेंगे तो वह दिन दूर नही है,जब अपना राष्ट्र पुनः विश्वगुरु के स्थान को सुशोभित कर पायेगा।
अंत में शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के सभी शिक्षकों को सादर अभिनंदन-वंदन-नमन करते हुए एक भाव अर्पित कर रहा हूँ।
"शिक्षक के बिन ये दुनियां क्या,
कुछ भी नही,बस अंधकार यहाँ।
शत-शत नमन उन शिक्षकों को,
जिनके कारण रोशन जहाँ।।"
शिक्षक दिवस की सभी शिक्षक बंधुजन-बहनों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ।
आपका अपना
हीराराम चौधरी
अध्यापक
राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,सोडावास(पाली)