सीरवी समाज - ब्लॉग

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Posted By : seervi on 07 Nov 2019, 04:38:01
प्रिय स्वजातीय बंधुओं,

जैसा कि हम सभी जानते है कि वर्तमान समय टेक्नाँलोजी का समय है जहाँ सभी लोग अपनी पर्सनल लाइफ में व्यस्त है| सभी के अपने अपने काम है| और सभी उन्हे पूरा करने में प्रयत्नशील है| इन सबके साथ साथ हमारे कुछ साथी भी है| जैसे मित्र गण, भाई-बंधु और परिवार के सदस्य इत्यादि | जो हमारी जिन्दगी के लिए बहुत जरूरी है| इनके साथ हम अपनी खुशियाँ बाँटते है| तथा ये सभी हमारे दुखः में भी साथ रहते है| इन सभी से हमारी लाइफ बहुत सरल और आनन्दमय हो जाती है| और इन सभी के बीच एक बंधन और होता है| जिसे समाज कहते है| समाज भी एक तरह का परिवार ही है| जो हमारे सुख और दुखः में हमारे साथ रहती है|

परन्तु आज के व्यस्ततम् समय में अब समाज का महत्व कम होता जा रहा है| जिसका प्रमुख कारण आज का ग्लोबलाइजेशन है| वर्तमान समय में लोगो का सीमाक्षेत्र व्यापक हो गया है| इस व्यापक क्षेत्र में समाज के लिए पर्याप्त समय निकालना आसान नही रह गया है|

समाज का महत्व कम होने का दूसरा प्रमुख कारण संयुक्त परिवारो का टूटना तथा एकल परिवारो का बढ़ना है| क्योकि संयुक्त परिवारो में घर के बुजुर्ग लोग सामा..
Posted By : Posted By seervi on 11 Oct 2019, 08:09:06
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।

सरल-सा अर्थ है, 'हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। मेरे देवता हो।'

बचपन से प्रायः सबने पढ़ी है। छोटी और सरल है इसलिए रटा दी गई है। बस त्वमेव माता भर बोल दो, सामने वाला तोते की तरह पूरा श्लोक सुना देता है।

मैंने 'अपने रटे हुए' कम से कम 50 मित्रों से पूछा होगा, 'द्रविणं' का क्या अर्थ है? संयोग देखिए एक भी न बता पाया। अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द 'द्रविणं' पर सोच में पड़ गए।

द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति। द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता। आखिर 'लक्ष्मी' भी कहीं टिकती है क्या!

कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका 'वरीयता क्रम'। ज़रा देखिए तो! समझिए तो!

सबसे पहले माता क्योंकि वह है तो फिर संसार में किसी की जरूरत ही नहीं। इसलिए हे प्रभु! ..
Posted By : Posted By seervi on 04 Oct 2019, 08:28:52
?जय आईजी?
?सादर वन्दे?
आज के परिपेक्ष मे अगर देखा जाये तो नाता प्रथा गलत नही है । हिन्दुस्तान के बहुत से समाजो मे पहले नाता प्रथा का प्रचलन नही था । उस समय नारी का सम्मान अवलौकिक ही था । नारी भोग्या नही समझी जाती थी ।अनायास ही विधवा होनेपर उम्रभर सांसारिक सुखो से वंचित रहना पडता था, सुहागिन का सौभाग्य नही मिलता था, ताने मारे जाते थे, शुभकार्यो पर सही स्थान नही मिलता था , और लज्जाहीन तत्वों से बचकर रहना पडता था, सही होकर भी कुदृष्टि का बोझ उन अबलाओं को झेलना पडता था इत्यादि इत्यादि ।

मगर आज की नारी शिक्षित हो रही है , अब अबला नही सबला बन रही है, महत्वपूर्ण कार्यो मे हाथ बंटा रही है अतः आज के आधुनिक युग मे स्त्री नाता प्रथा को मै सही मानता हूं ।

देश की बहुत सी जातियों मे हाटा-पाटा प्रथा है , कहीं पर मामा की बेटी से शादी की परम्परा है तो हमारी समाज मे होनेवाले दामाद की बहन, या उनके परिवार या रिशते की लडकी से शादी करने को ही हाटा-पाटा कहा जाता है ।

बडे बुजुर्गों ने जब यह परम्परा डाली होगी तब उनका मानस आपसी घनिष्ठता बढाना ही रहा होग..
Posted By : Posted By seervi on 30 Sep 2019, 03:52:26
......समाज में शिक्षित स्त्री- और पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव ............

एक स्त्री ही तो हैं ,जो एक अंश का निर्माण करती है ,उसी अंश से एक परिवार का निर्माण होता हैं और परिवार से समाज का और समाज से ही एक राष्ट्र का निर्माण होता है ।
परंतु पुरुष प्रधान होने के कारण स्त्री का दर्जा समाज में पुरुष से नीचे रखा गया है अब समाज में स्त्री शिक्षित हो या अशिक्षित उसकी कोई तुलना नहीं करना चाहिए बल्कि समाज में स्त्री को समानता का अधिकार होना चाहिए ।
फिर भी विषय शिक्षित स्त्री का हे -
अब यदि समाज जनता हे की स्त्री से एक अंश का निर्माण होता है तो स्त्री को शिक्षित करना भी जरुरी होना चाहिए यदि स्त्री शिक्षित होगी तो ही शिक्षित परिवार ,समाज और शक्षित राष्ट्र का निर्माण होगा लेकिन कुछ अंधविश्वास के कारण स्त्री को झुकना ही पड़ता है अब सवाल उठता है कि कैसे स्त्री को अंधविश्वास के कारण झुकना पड़ता है ।
एक परिवार में दो जुड़वाँ बच्चे पैदा होते है तो एक लड़का है और एक लड़की , अब जुड़वाँ बच्चो की परवरिश एक जैसी होती है क्योंकि समाज इसे भगवान का आशीर्वाद मानते है ,लेकिन जैसे ज..
Posted By : Posted By seervi on 29 Sep 2019, 04:33:53
मेरे समाज में आज भी घूँघट निकालने के लिए बाध्य किया जाता है ना सिर्फ गाँव में बल्कि बड़े शहरों में भी आज की पढ़ी लिखी नए विचारो की लडकिय हाथ भर का घूँघट निकाल रही है, आखिर में गुलामी का भार कब तक उठाएगी ? हमारे समाज की पढ़ी लिखी लडकिया जो नए जमाने के साथ कदम मिला कर आगे बढ़ना चाहती है उन्हें ये रुढ़िवादी विचारधारा वापस उसी कीचड में घसीट रही है जब लडकिया ये सब बंदिशे भाव झेल नहीं पाती और घटती है तथा उनके माँ बाप उन्हें कुछ ऐसी महिलाओं का उदाहरण देकर हिम्मत बंधाते है चुप चाप जी रही है अफ़सोस की बात है की आज के लड़के जो खुद को हॉलीवुड की दुनिया के करीबी मानते है वो भी इसका विरोध नहीं करते, जो अच्छे से जानते है की घूँघट एक कुप्रथा (अनाचार) है और एक गुलामी की निशानी है, बदलाव के लिए बड़ी बड़ी बाते नहीं बड़ा जिगर होना चाहिए l लडकियों को खुद अपनी स्थिति बदलनी होगी बिना किसी रुकावट में उसके लिए किसी ना किसी को तो पहल करनी ही पड़ेगी l
इस पर समाज विचार करे

नैनाराम बर्फा (नेमीचंद बर्फा)
महेश्वरम, हेदराबाद, तेलंगाना
9739631455..
Posted By : Posted By seervi on 29 Sep 2019, 04:31:54
आलेख:-समाज में शिक्षित स्त्री औऱ पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव:-
अपना देश विश्व में अपने सांस्कृतिक विरासत के उच्च आदर्श मूल्यों के लिए प्रसिद्ध है।इस देश के आदर्श मूल्य,परम्पराए औऱ सामाजिक प्रतिमान एक अनमोल धरोहर की तरह है।इस देश में मूल्य,परम्पराए औऱ सामाजिक प्रतिमान आनुवांशिक गुणों की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होते आए है। यह सही है कि समय के साथ उनमें कुछ परिवर्तन भी आए है।इस आलेख "समाज में शिक्षित स्त्री और पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव" के मूल में जानने से पहले हमें स्त्री की शैक्षिक स्थिति औऱ पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों को जानना जरूरीहै।
प्राचीन काल में शिक्षा का अभाव था।शिक्षा में भी नारी शिक्षा बहुत ही कम थी।वैदिक काल में नर-नारी को समान अधिकार थे औऱ उनके आदर्श भी थे।नारियों को पढ़ने की आजादी थी औऱ वे शास्त्रार्थ में भी भाग लेती है।मैत्रयी औऱ गार्गी इनके उदाहरण है। वैदिक काल के उत्तरार्द्ध औऱ मध्यकाल में नारी शिक्षा पर ग्रहण लग गया औऱ नारी को तत्कालीन परिस्थितियों के कारण घर की चार दीवारी में कैद ..
Posted By : Posted By seervi on 25 Sep 2019, 12:54:26
समाज में शिक्षित स्त्री ओर पारंपरिक मूल्यों पर प्रभाव ? विचार मेरे विचारों में ?
नारी का शिक्षित होना न केवल एक परिवार के लिए बल्कि हमारे समाज व हमारे राष्ट्र के लिए भी परमावश्यक है | परिवार में यदि स्त्री पड़ी लिखी है तो वह परिवार का उचित मार्ग दर्शन कर सकती है | परिवार को आगे बढ़ाने में अपनी शिक्षा के बल पर वह परिवार की आर्थिक रूप से मदत कर सकती है | सामाजिक कार्यों में अपना सहयोग दे सकती है | समाज के विकास में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान कर सामाजिक विकास को गति प्रदान कर सकती है | वर्तमान समय में एसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ नारी अपनी भूमिका न निभाती हो | शिक्षा, साहित्य, व्यवसाय, खेल, राजनीति हर क्षेत्र में नारी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हुई एक मिसाल कायम कर रही है |
? शिक्षित नारी सबपे भारी
हमेशा निभाती अपनी जिम्मेदारी
कभी ना दिखाती कोई लाचारी
शिक्षित नारी कभी ना हारी ?
स्त्री यदि पड़ी लिखी है तो वह स्वयं तो आत्म निर्भर बनती है साथ ही उसके दोनों परिवार भी आत्मनिर्भर बनते है प्राचीन कल से लेकर वर्तमान समय तक नारी की महत्ता को ठुकराया नहीं जा सकता | प्राच..
Posted By : Posted By seervi on 22 Sep 2019, 04:33:51
युवा किसी भी समाज के कर्णधार हैं, वे उसके भावी निर्माता हैं। चाहे वह नेता या शासक के रूप में हों , चाहे डॉक्टर, इन्जीनियर, वैज्ञानिक, साहित्यकार व कलाकार के रूप में हों। इन सभी रूपों में उनके ऊपर अपनी सभ्यता, संस्कृति, कला एवम् ज्ञान की परम्पराओं को मानवीय संवेदनाओं के साथ आगे ले जाने का गहरा दायित्व होता है। पर इसके विपरीत अगर वही युवा वर्ग उन परम्परागत विरासतों का वाहक बनने से इनकार कर दे तो निश्चिततः किसी भी राष्ट्र का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।

युवा शब्द अपने आप में ही उर्जा और आन्दोलन का प्रतीक है। युवा को किसी राष्ट्र की नीव तो नहीं कहा जा सकता पर यह वह दीवार अवश्य है जिस पर राष्ट्र की भावी छतों को सम्हालने का दायित्व है। जब तक यह ऊर्जा और आन्दोलन सकारात्मक रूप में है तब तक तो ठीक है, पर ज्यों ही इसका नकारात्मक रूप में इस्तेमाल होने लगता है वह विध्वंसात्मक बन जाती है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर किन कारणों से युवा उर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है? वस्तुतः इसके पीछे जहाँ एक ओर अपनी संस्कृति और जीवन मूल्यों से दूर हटना है, ..
Posted By : Posted By seervi on 19 Sep 2019, 12:25:17
प्रिय स्वजनो
सादर वन्दे ।
सीरवी समाज मे नारी शिक्षा प्रगति पथ पर है , हर मां बाप अपनी बेटी को पढाना चाहता है, पढाता है ।

नारी शिक्षा के बारे मे सत्य कहा गया है कि एक बालिका के पढऩे से सात पीढियों को फायदा होता है । जब लडकी पढती है तो पुरा परिवार उसको सम्मान देता है , घर परिवार मोहल्ले मे उसका मान होता है , जितनी गहनता से बेटियां शिक्षा ग्रहण करने मे मन लगाती है उतना बेटे नही लगाते ।?

समाज मे बेटियों का शैक्षणिक स्तर सुधरा है मगर माध्यमिक विद्यालयों से आगे मार्ग अवरूद्ध हो जाता है , मसलन अन्य गांव या बडे शहरों के कॉलेजों मे जाना, सगाई सगपण की तैयारियां , जवानी की दहलीज पर बढते कदम ।
उच्छ शिक्षा मे फिलहाल सीरवी समाज जितना प्रगतिशील होना चाहिए था उसके अनुपात मे बहुत कम है ,, इसके बहुत ही कारण है जैसै कम उम्र मे सगाई , अदलाबदली के सगपण , भाई-भतीज या अन्य के बदले मे उसकी सगाई , कॉलेजों मे अध्ययन हेतु अन्यो शहरो मे जाना,, कुच्छ नाममात्र लडकियों के पैर फिसलना और इसी तरह के बहुत से कारण है जो बेटियों को उच्च व उच्चतम शिक्षा मे रोडा बनते है ।

..
Posted By : Posted By seervi on 15 Sep 2019, 12:41:14
विचार मेरे विचारो में - आलेख - सीरवी समाज की अच्छाईया - सबसे जुदा

समाज के सोशल मीडिया प्रारूप ने प्रिंट मीडिया के साहित्यिक प्रारूप में एक अरसे से मंदी को एक बार पुन: ताज़ी हवा का झोंखा दिया है, जिसे मेरी समझ में सीरवी समाज के सभी शिक्षाविदो को संज्ञान में लेना चाहिए l सीरवी समाज डॉट कॉम के संचालक संस्थापक और सम्पादक को इस हेतु ह्रदय से साधुवाद l

देश काल परिस्थिति विचारो का समागम अपने अन्तर्निहित अनेकानेक भावो से वस्तु विषय की कल्पना परिकल्पना प्रस्तुत करता रहता है, किसी जमाने में समाज के शिक्षाविदो द्वारा सीरवी सन्देश पत्रिका के माध्यम से समाज के साहित्यिक विचारों को सामने लाया जाता रहा है किन्तु वर्तमान में सोशल मीडिया के त्वरित सूचना आदान प्रदान की सुविधा ने एकबारगी समाज के साहित्यिक विचारों को लगाम देकर चुराए गए विचारों से सामाजिक साह्यित्यिक चेतना को छिलम छिल कर दिया l सीरवी समाज डॉट कॉम के - विचार मेरे विचारो में - प्रारूप की जानकारी हालांकि काफी देर पश्चात मुझे ज्ञात हुई, किन्तु निबंधात्मक आलेख की इस शुरुआत प्रशंशनीय है - वर्तमान आलेख ..
Posted By : Posted By seervi on 15 Sep 2019, 12:35:45
जय आईजी ।
सादर वन्दे ।
सीरवी समाज हमारा समाज है इसलिए इसके गुणगान करता हूं ,, नही,, बल्कि इस समाज की संस्कृति , सहनशीलता ,, दानत्व , अपनत्व,, मिलनसारिता,, ईमानदारी ,, सहकारिता की पुरी कायल है अन्य समाज ।

अकारण और बिना मेहनत के लेना सीरवी समाज के लिये वर्ज्य है । सीरवी समाज अपनी सादगीपूर्ण जीवन, मेहनतकश श्रम, ईमानदारी पुर्ण कर्तव्य और आस्था मे पुर्ण विश्वास और समर्पण की वजह से ही आज प्रगतवान है और तेज गति से प्रयासरत भी है , सीरवी समाज आज अन्य समाजों के लिये एक आदर्श बन रहा है, अन्य समाजों के लोग आज सीरवी समाज से प्रेरणा ले रहे है ।

मगर आज भी समाज का लक्ष्य पुरा नही हुआ है , समाज की सोच विशाल है, चंचलता से परिपुर्ण कर रहे है ,, आगे बढने की ललक और प्रतिस्पर्धात्मक युग मे भी अपने पांव जमाये ही नही है बल्कि और मजबूती प्रदान कर रहा है ।अन्य विजातिय सामाजिक लोग हमारी नकल करने लगे है और हमारे पदचिन्हों पर चलकर सफल हो रहे है , और यह भी सीरवी समाज के लिये गर्व की बात है कि हम उनके लिये प्रेरणास्त्रोत बन रहे है क्योंकि हमने देना ही सीखा है ,, याचकता से को..
Posted By : Posted By seervi on 15 Sep 2019, 07:05:39
??सीरवी समाज की अच्छाइया सबसे जुदा ??
हम सभी जानते है की समाज के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है | समाज हमारे जीवन का एक अटूट हिस्सा है | हमारे कई क्रियाकलाप समाज पर ही निर्भर करते है देखा जाए तो समाज हमारे लिए एक दर्पण का कार्य करता है जिसमें हम अपने प्रतिबिंब को देख सकते है | समाज में संघटन होता है, अनुशासन होता है, नैतिक मूल्य होते है | परम्पराए व रीती रिवाज़ होते है | एक विकसित समाज से ही एक विकसित राष्ट्र की कल्पना की जाती है | एक विकसित समाज राष्ट्र को उन्नति के उच्च शिखर तक पहुँचाता है | अपने कर्तव्यो व अपने दायित्वो का उचित निर्वहन करते हुए पुरे राष्ट्र में अपनी पहचान बनाता है | ऐसी ही एक पहचान बनाई है हमारे सीरवी समाज ने | सीरवी समाज की अछाईयो ने पुरे भारत वर्ष को मोहित कर दिया है | एक ऐसा समाज जिसका व्यवसाय मात्र अब खेती करना नहीं रह गया है, बल्कि हमारे समाज ने अपने कार्यों के बल पर, हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है | चाहे वह खेलकूद से सबंधित हो, व्यवसाय से संबंधित हो या शिक्षा से सम्बंधित हो | हर क्षेत्र में सीरवी समाज ने अपने शक्ति पुंज को दर्शया है |
सीरवी ..
Posted By : Posted By seervi on 15 Sep 2019, 04:15:07
विचार मेरे विचारो में - आलेख - सीरवी समाज की अच्छाईया - सबसे जुदा सबसे अलग
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो अपने जीवन पर्यंत विभिन्न गतिविधियों में संलग्न रहता है, जैसे दैनिक क्रियाये, मेल-मिलाप, जीवन निर्वाह हेतु कृषि, रोजगार, व्यापार इत्यादि तथा माता पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहिन आदि रूपों में समाज में रहकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है l समाज व् मानव दोनों का अस्तित्व एक दुसरे पर निर्भर करता है l सुख-दुःख मानव जीवन रूपी सिक्के के दो पहलु है, एक अच्छा समाज मानव को इन्ही सब उतार चढावो से उबारने में सहयोग करता है l संस्कृति, लोगो का मोलिकता से जुड़ाव, पारस्परिक सद्भावना, शिष्टता, आध्यात्म, सहायता, प्रवृति, सहजता, उदारता आदि एक अच्छे समाज की विशेषताए है तथा इन्ही सब विशेषताओं को समाहित करता सीरवी समाज आज अपनी अच्छाइयो के फलस्वरूप प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है l
सीरवी समाज के इतिहास के अबरे में सभी जानते है प्रारम्भिक रूप में कृषक जाती के रूप में उभरा यह समाज आज विभिन्न क्षेत्रो जैसे शिक्षा, चिकित्सा, खेल, व्यापार, अभियांत्रिकी, सिविल सेवा आदि में अपना योग..
Posted By : Posted By seervi on 13 Sep 2019, 05:49:03
सीरवी समाज की अच्छाईयां.. सबसे जुदा। -----------------------------

वैसे तो कुदरत के कानून जैसे दिन के साथ रात की तरह अच्छाईयों के साथ बुराईयां विद्यमान रहती है। फिर भी एक सकारात्मक दृष्टिकोण की उपज है इस बार का यह शीर्षक..साधुवाद।

हमारा ध्यान भी आजकल सभी की बुराइयों की तरफ पहले जाता है इसलिए अच्छाईयां इतनी नजर नही आती लेकिन सभी में बहुत सारी अच्छाईयां होती है।
स्वार्थ के माहौल के कारण हम उसका जिक्र कम करते है अतः हमें उसका अहसास होना कम हो गया है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, सबका अपना एक समाज है। सभी समाजों की तरह सीरवी समाज में भी बहुत सी अच्छाईयां है, और वो भी सबसे अलग, कुछ इस तरह...

1. साथ- मन से सच्चे बनाम अच्छे लोग एक दूसरे का सहयोग करते हुए साझे में मेहनतकश कृषिकार्य करते हुए साथ रहने लगे। इसी कारण वो सीरवी कहलाएं। साथ रहना अपने आप में बहुत बडा गुण था जो आज की एक बहुत बडी अच्छाई है। सीरवी समाज के जीवन की यह सच्चाई है।

और इसी एक प्रबल गुण के कारण हम और समाजों से भी हिल मिल रहते हुए जीवन यापन करते है। अर्थात ईश्वर के बनाएं सभी एक जीवात्मा संविधान का हम पालन ..
Posted By : Posted By seervi on 12 Sep 2019, 03:19:23
एक गांव मे अंधे पति-पत्नी रहते थे । इनके यहाँ एक सुन्दर बेटा पैदा हुआ। पर वो अंधा नही था।

एक बार पत्नी रोटी बना रही थी। उस समय बिल्ली रसोई में घुस कर बनाई रोटियां खा गई।
बिल्ली की रसोईं मे आने की रोज की आदत बन गई इस कारण दोनों को कई दिनों तक भूखा सोना पड़ा।
एक दिन किसी प्रकार से मालूम पड़ा कि रोटियाँ बिल्ली खा जाती है।
अब पत्नी जब रोटी बनाती उस समय पति दरवाजे के पास बाँस का फटका लेकर जमीन पर पटकता।
इससे बिल्ली का आना बंद हो गया।
जब लङका बङा हुआ और उसकी शादी हुई।
बहू जब पहली बार रोटी बना रही थी तो उसका पति बाँस का फटका लेकर बैठ गया औऱ फट फट करने लगा।

कई दिन बीत जाने के बाद पत्नी ने उससे पूछा कि तुम रोज रसोई के दरवाजे पर बैठ कर बाँस का फटका क्यों पीटते हो?
पति ने जवाब दिया कि
ये हमारे घर की परम्परा (रिवाज) है इसलिए मैं ऐसा कर रहा हूँ।

कहानी का सार:
माँ बाप तो अंधे थे, जो बिल्ली को देख नहीं पाते थे, उनकी मजबूरी थी इसलिये फटका लगाते थे। पर बेटा तो आँख का अंधा नही था पर अकल का अंधा था,
इसलिये वह भी वैसा करता था जैसा माँ-बाप करते थे।

ऐसी ही दशा आज के अपन..
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