सीरवी समाज - ब्लॉग

आलेख:-समाज में शिक्षित स्त्री - और पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव । - प्रतिभागी - 3 - हीराराम चौधरी(गहलोत) अधयापक राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय सोडावास(पाली) निवासी:-सोनाई मांझी(पाली)
Posted By : Posted By seervi on 29 Sep 2019, 04:31:54

आलेख:-समाज में शिक्षित स्त्री औऱ पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव:-
अपना देश विश्व में अपने सांस्कृतिक विरासत के उच्च आदर्श मूल्यों के लिए प्रसिद्ध है।इस देश के आदर्श मूल्य,परम्पराए औऱ सामाजिक प्रतिमान एक अनमोल धरोहर की तरह है।इस देश में मूल्य,परम्पराए औऱ सामाजिक प्रतिमान आनुवांशिक गुणों की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होते आए है। यह सही है कि समय के साथ उनमें कुछ परिवर्तन भी आए है।इस आलेख "समाज में शिक्षित स्त्री और पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव" के मूल में जानने से पहले हमें स्त्री की शैक्षिक स्थिति औऱ पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों को जानना जरूरीहै।
प्राचीन काल में शिक्षा का अभाव था।शिक्षा में भी नारी शिक्षा बहुत ही कम थी।वैदिक काल में नर-नारी को समान अधिकार थे औऱ उनके आदर्श भी थे।नारियों को पढ़ने की आजादी थी औऱ वे शास्त्रार्थ में भी भाग लेती है।मैत्रयी औऱ गार्गी इनके उदाहरण है। वैदिक काल के उत्तरार्द्ध औऱ मध्यकाल में नारी शिक्षा पर ग्रहण लग गया औऱ नारी को तत्कालीन परिस्थितियों के कारण घर की चार दीवारी में कैद बन कर रहना पड़ा। इसी काल में नारी शिक्षा का अवसान सबसे ज्यादा हुआ।समाज में पर्दा प्रथा,बाल विवाह,सती प्रथा औऱ जौहर प्रथा का प्रचलन होने लगा।इन प्रथाओं ने स्त्री शिक्षा के सभी रास्ते बंद कर दिए।इसके बाद 19 वी सदी में भारत में भक्ति आंदोलन का शुभारंभ हुआ औऱ आध्यात्मिक ज्ञान,भक्ति औऱ शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने लगा।समाजसुधारकों ने नारी की दयनीय स्थिति पर चिंता प्रकट की औऱ उन्होंने नारी शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। नारी शिक्षा के अवरोधों को हटाने की शुरुआत होने लगी। स्वामी दयानंद सरस्वती ,राजाराम मोहन राय,स्वामी विवेकानंद जैसे महान संतो-विचारको ने स्त्री की सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए शिक्षा पर बल दिया। कालांतर में नारी शिक्षा में बढ़ोतरी होने लगी।इसके लिए सरकारों ने भी प्रयास किए।भारत सरकार के "2009 के निशुल्क औऱ अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम" से बालिका शिक्षा को नव गति मिली।आज लगभग हर समाज में बालिका को कक्षा 8 तक तो पढ़ाया ही जाता है।सरकार की नारी शिक्षा के उन्नयन हेतु लागू की गई विभिन्न योजनाओं जैसे साइकिल योजना,छात्रवृति योजना,कस्तूरबा गाँधी आवासीय विद्यालय,निशुल्क बालिका शिक्षा इत्यादि ने नारी शिक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
सीरवी समाज में भी नारी शिक्षा में असाधारण वृद्धि हुई।समाज की बालिकाएं उच्च पदों पर पदस्थापित हो रही है।आज समाज की बेटियां कॉपरेटिव इंस्पेक्टर,डॉक्टर,इंजीनियर,प्रधानाचार्य,अध्यापिका औऱ फौज में भी अपनी सेवाएं दे रही है और अपने कर्तव्य से सीरवी समाज को गौरवान्वित कर रही है।
"शिक्षित स्त्री और पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर प्रभाव" के इस आलेख में पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों के बारे में भी जानना आवश्यक है।
पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों से तात्पर्य उन मानक आदर्श मूल्यों से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से हस्तांतरित होते आए है।
वे सामाजिक प्रतिमान औऱ मूल्य जो एक समाज को अलग से अपने आपको प्रतिष्ठित कराता है।ऐसे मूल्य समाज की पहचान बन जाते है औऱ उनसे समाज का गौरव बढ़ता है। सीरवी समाज के भी अपने पारम्परिक पारिवारिक मूल्य है जिस पर हम सबको गर्व है। सीरवी समाज के पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों में सादगी,सरलता,सहिष्णुता,सहकारिता,ईमानदारी ,बड़ो का आदर,विश्वसनीयता,कर्तव्यपरायणता,सत्य औऱ मधुरभाषी इत्यादि है जिससे हम सबको गर्व है।
स्त्री चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित उसका पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों को निभाने में अहम भूमिका रही है।एक शिशु के लिए माँ प्रथम शिक्षिका होती है,उसी के आंचल से संस्कारों का अंकुरण होता है। एक माँ के हाथ में बच्चे को महामानव बनाने की ताकत होती है।वह अपने बच्चे को वे सम्पूर्ण आदर्श मूल्यों की सीख देती है जो उसका गौरव बढ़ाये।वह समाज-राष्ट्र का सुनागरिक बने। अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन निष्ठापूर्वक करे।
समय के पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों में भी बदलाव देखने को मिला है,आधुनिक समाज में एक शिक्षित स्त्री पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों को आगे बढ़ाने में बेहतर तरीके से अपनी भूमिका निभा रही है।मैं यहाँ कुछ महत्वपूर्ण पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों पर शिक्षित स्त्री का प्रभाव को उल्लेखित कर रहा हूँ।
१.संस्कारो का बीजारोपण:- नारी को इस ब्रह्मांड के विधाता की प्रतिनिधि कहा गया है। नारी जीवन दायिनी है। नारी अपने बच्चे को जन्म देने के बाद उसे पोषित करने में अपना सर्वस्व अर्पण करती है।उसका कार्य उसे बड़े करने तक ही सीमित नही रहता है,वह उसे बोलना सिखाती है। नारी चाहे अनपढ़ हो या पढ़ी लिखी ,वह अपने बच्चे को अच्छे ढंग से संस्कारित करती है।पढ़ी लिखी स्त्री अपने बच्चे को कुछ नया प्रदान कर जाती है।वह उसके स्वास्थ्य का ख्याल एक अलग ढंग से कर देती है।शिक्षित स्त्री अपने बच्चे को प्रारम्भिक काल से ही शुद्ध भाषायी ज्ञान के साथ उसे अभिवादन करने के नए तरीके सीखा देती है। माँ के द्वारा दिए गए संस्कार एक नींव की तरह होते है जो बच्चे को अच्छे इंसान बनने की दिशा तय करते है।
एक शिक्षित स्त्री अपने बच्चे को जीवन के प्रारम्भिक काल में ही अच्छे व बुरे का भेद करना सीखा देती है।वह अपने बच्चे को बड़ो के आदर करने की सीख देती है,वह बड़ो के सामने किस तरह से पेश आए, यह सिखाती है।वह अपने बच्चे को अपने सहपाठियों के साथ अच्छे व्यवहार की सीख देती है।वह अपने बच्चे को जीवन के प्रारंभिक काल में ही सदाचार की सीख देती है।वह उन्हें सिखाती है कि जीवन में कदापि चोरी नही करनी है।ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।ईमानदार व्यक्ति समाज- राष्ट्र में यश पाता है।ऐसे उच्च मानव मूल्यों का बीजारोपण वह अपने बच्चे को जीवन के बाल अवस्था में ही कर देती है।माँ बालक की प्रथम गुरु होती है। यदि गुरु स्वयं शिक्षित हो तो पर कहना ही क्या !
एक शिक्षित स्त्री बालक की प्राथमिक शिक्षा को सुदृढ़ता प्रदान करने में अहम भूमिका निभा सकती है।जिस बालक की प्राथमिक शिक्षा अच्छी हो ,वह बालक आगे चलकर जीवन में सफल जरूर होता है।ऐसा बालक पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों के साथ अपना जीवन जीता है औऱ समाज का नाम रोशन करता है।
२.रहन-सहन और खान-पान:- सामाजिक पारम्परिक मूल्यों में खान-पान तथा रहन-सहन का भी अपना अलग महत्व है।हर समाज का रहन-सहन औऱ खान-पान कुछ ऐसी विशेषता लिए होता है जो उसको नई पहचान दिलाता है।एक स्त्री की इस पारम्परिक सामाजिक औऱ पारिवारिक मूल्यों में अपनी विशेष भूमिका निभाती है। सीरवी समाज का भी अपना एक अलग तरह का रहन-सहन औऱ खान-पान है।प्राचीन समय में पुरुष व नारी की अपनी अलग वेश भूषा रही है।आदमी धोती-अंगरखी पहनते थे औऱ स्त्री घाघरा-ओना,बच्चियां लहंगा-चुनरी पहनती थी।आज भी समाज के पुरुष या स्त्री जो अपनी पारम्परिक वेश भूषा पहनकर जाते है तो अनजान व्यक्ति भी पहचान कर लेता है कि क्या आप मारवाड़ी हो या क्या आप सीरवी हो? सीरवी समाज का रहन-सहन बहुत ही सादगी भरा तथा खान-पान एकदम सरल औऱ शुद्ध शाकाहारी के रूप में रहा है।
एक माँ अपने बच्चे को रहन-सहन औऱ खान-पान का ढंग सिखाती है।खाने के तरीके भी माँ ही सिखाती है।वह अपनी संतान को मांसाहारी खाने से परहेज करने की सीख देती है।आज के इस भौतिकवादी युग में सीरवी समाज के पारम्परिक खान-पान तथा रहन-सहन के तरीके बदल गए है।एक शिक्षित स्त्री ने इसे औऱ अधिक आधुनिक बना दिया है।यह हमारी लौकिक संस्कृति से मेल नही खाती है।शिक्षित स्त्री ने अपने पारम्परिक वेश भूषा को बदल कर रख दिया है,यह एक अच्छा प्रभाव नही है।यह सब शिक्षित स्त्री के कारण ही हो रहा है।आज भी अनपढ़ माताओं औऱ बहिनों को बच्चियों की यह आधुनिक वेषभूषा रास नही आती है लेकिन वे स्वयं लाचार हो जाती है क्योकि आज यह बदलाव ग्रामो तक पहुंच गया है,जो हमारे सामाजिक-पारिवारिक पारम्परिक मूल्यों का अवमूल्यन की तरह है।यह सब शिक्षा के प्रचार-प्रसार से ही हुआ है।
सीरवी समाज आर्थिक रूप से सम्पन्न हो रहा है, यह सब हमारे बंधुजन-बहनों के पुरुषार्थ,ईमानदारी औऱ कर्तव्यपरायणता का परिणाम है।यह समाज की प्रगति का द्योतक है लेकिन हम आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ हम अपने परम्परागत खान-पान औऱ रहन-सहन को भूलते जा रहे है,यह शुभ नही है।आज मेट्रोपोलिटन शहरों में रहने वाले हमारे बंधुजन होटल संस्कृति के खान-पान की ओर आकृषित हो रहे है,होटल संस्कृति के खान-पान में जो बढ़ोतरी हो रही है,उससे हमारे पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों की क्षति हो रही है।समाज में माँस-मदिरा के सेवन को उचित नही समझा जाता है,श्री आई पंथ के 11 मंगलकारी जीवन के नियमों में दूसरे ही नियम में इसका स्पष्टता से उल्लेख है कि,"दुसरो तो मद्य-माँस छुड़ाई।"
बड़े दुःख का विषय की हमारी युवा पीढ़ी अपने ही समाज के नियमों की धज्जियां उड़ा रही है। यह एक
चिन्ता का विषय है।
समाज में आज भी पढ़ी-लिखी बहुत-सी माताएं औऱ बहिनें है जो समाज के पारम्परिक मूल्यों को आत्मसात कर जीवन जी रही है और अपनी संतानों को भी ऐसे ही जीवन जीने की सीख दे रही है।मै उन सभी का हृदय से अभिनंदन-वंदन-नमन करता हूँ।
3.पारिवारिक संबंधों का बंधन:- एक नारी चाहे वह अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी पारिवारिक संबंधो की सबसे अहम धुरी होती है।एक परिवार के सदस्यों में संबंधो में माधुर्य -समरसता औऱ एकात्मकता का अटूट बंधन नारी की समझ-बुद्धि पर निर्भर करती है।इन पारिवारिक संबंधो के माधुर्य-समरसता को जानने के लिए हमें अपने समाज के प्राचीन संयुक्त परिवार व्यवस्था के अटूट बंधनो को जानना जरूरी है।संयुक्त परिवार व्यवस्था में एक नही दो या तीन पीढ़ियों के परिवार साथ-साथ रहते थे औऱ उस परिवार में सभी औरते सबसे बुजुर्ग महिला को मुखिया मानकर उनके निर्देशो की पालना करती थी औऱ परिवार के सभी सदस्य एक ही चूल्हे से बने भोजन से पलते थे,परिवार के सदस्यों के बीच उच्च कोटि का माधुर्य-समरसता देखने को मिलती थी।निरक्षर होते हुए भी सबसे बड़े परिवार के सदस्यों में कही कड़वाहट नही होती थी।पारिवारिक सदस्यों के बीच गजब का अनुशासन औऱ माधुर्य देखने को मिलता था।सम्पूर्ण परिवार आत्मिक स्नेह की मजबूत डोर से बंधा रहता था। आज हम नजारा कुछ उल्टा ही देख रहे है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार से जहाँ बौद्धिकता का विस्तार होना चाहिए तथा परिवार में सुख-समृद्धि का सुवास होना चाहिए। वहाँ हम एकल परिवार के सदस्यों में भी वैसा आत्मिक स्नेह का बंधन नही देख पा रहे है।यह दोष हम शिक्षा को दे नही सकते है लेकिन जब पढ़ी-लिखी नारी अपने आपको पारिवारिक मान्यताओं औऱ परम्पराओ से आजाद होना चाहती है औऱ परिवार में भी अपना अलग परिवार बनाने की जिद्द कर देती है औऱ आज हम वास्तविक रूप से ऐसा होता देख रहे है,तब हमें चिंतित होना लाजमी है।आज हम देख रहे है कि जिनकी एकाएक संतान है,वे भी अपने माता-पिता से अलग रहती है या परिवार में उनको जो महत्ता प्राप्त होनी वह नही मिल रहा है।यह व्यापक स्तर में भले न हो लेकिन जिस तरह से अपनी समाज जिसके मूल में "सीर" हो,वहाँ इस तरह के परिवार के जन्म होने को मंगलकारी नही माना जा सकता है।शिक्षित माताओं-बहिनों को चाहिए कि वे समाज के पारम्परिक मूल्यों के उच्च मानकों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करने में बड़े व उदार मन से महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। शिक्षित स्त्री सकारात्मक सोच से आगे बढ़े औऱ पारिवारिक संबंधो में मिश्री जैसा माधुर्य लाए।वह पारिवारिक बंधनो को अवरोध नही समझे,उसे अनुशासित ढंग से निभाने में गर्व करे।आज समाज के शैक्षिक स्तर में अच्छा सुधार आया है,नारी शिक्षा में भी वृद्धि हुई है जो समाज के लिए बहुत ही शुभ है।एक शिक्षित स्त्री के पास पारिवारिक संबंधों की बड़ी समझ होती है। अब शिक्षित स्त्रियों की अग्नि परीक्षा है कि वे अपनी शिक्षा से पारिवारिक संबंधो में माधुर्य-समरसता औऱ एकात्मकता को मजबूती प्रदान करे ।शिक्षित स्त्रियां अपने विवेक से परिवार को बिखरने से बचाए।यदि वे अपने मिशन में कामयाब हो जाएगी तो वे अपना नही बल्कि सम्पूर्ण नारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में एक रोल मॉडल की भूमिका में होगी।इसके विपरीत ऐसा नही हो पाया तो नारी शिक्षा में स्वयं बाधा बन जाएगी।आज इस युग में नारी उच्च शिक्षा में शिक्षित स्त्रियों के व्यवहार-आचरण कही न कही अवरोध पैदा करता है।हम बालिका शिक्षा के सदा हिमायती रहे है तथा इसके लिए अभिभावकों को भी प्रेरित करते आए है।हमने बालिकाओ को यह हिदायतें भी दी है कि वे अपने माता-पिता को विश्वास देवे कि आपकी बेटियां आपके मान-सम्मान को कदापि ठेस नही पहुंचाएगी।ऐसा कर आप अपने सपनो को नव ऊँचाई प्रदान कर सकती हो।
४.वैवाहिक परम्परा औऱ दाम्पत्य जीवन:-सीरवी समाज में वैवाहिक परम्पराए सबसे अलग है ,जिसमें पाट-बैठाने से लेकर हस्त-मिलाप तथा अग्नि के सात-फैरो की अपनी परम्पराए है।इस परम्पराओ के निर्वहन में स्त्री की भूमिका सबसे अहम रही है। प्राचीन काल में एक बालिका अपने संबंधों में कदापि अपनी राय नही देती थी,उसके लिए मात-पिता की स्वीकृति ही उसकी अपनी सहमति थी। वह मात-पिता की इच्छा को ही अपनी इच्छा मानकर जीवन जी लेती थी।वह अपने दुःखों का रोना नही रोती थी,बल्कि ढृढ इरादों से अपने पति का मजबूती से साथ देती थी।वह अपने आपको उच्च चारित्रिक मूल्यों औऱ मर्यादाओं से सीता-सावित्री बनकर जीवन निर्वाह करती थी।
समय के साथ-साथ वैवाहिक परम्पराए में भी बदलाव आया औऱ वैवाहिक संबंधों में खुलापन आया औऱ बालिका के संबंध में उसकी राय भी ली जाने लगी है,यह समय के साथ होना आवश्यक भी है औऱ समाज ने इसे बड़े -उदार मन से अपनाया है।समाज ने वैवाहिक परम्पराओ में बहुत-सी आधुनिकताओं को भी अपनाया है।यहाँ तक उचित है।हर मात-पिता की ख्वाहिश होती है कि उसकी बच्ची जहाँ भी जाए, वहाँ खुशमिजाज होकर अपना आनंददायी जीवन जिए।हर मात-पिता अपनी संतान की खुशी के लिए शानोशौकत से उनका विवाह करते है,उनको ऐसा करना भी चाहिए लेकिन हम सबको पीड़ा-वेदना तब होती है,जब उनके शाही शादी के बाद उनके दाम्पत्य संबंधो में माधुर्य नही होता है औऱ संबंध विच्छेद हो जाते है।आज शिक्षित नव विवाहित दम्पतियों के बीच जो कड़वाहट देखने को मिलती है औऱ उनकी तुच्छ मानसिकता से परिवार बिखर रहे है,वे हम सबके लिए पीड़ा देने वाली है।समाज की शिक्षित बालिकाओ को सामाजिक परम्पराओ की समझ नही है,उन्हें समाज के उच्च प्रतिमानों का ज्ञान नही है।शिक्षित बालिकाओ को समाज के उच्च आदर्श मूल्यों को आत्मसात कर अपना जीवन जीना चाहिए औऱ समाज की परम्पराओ और मान्यताओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर महत्ती भूमिका निभानी चाहिए।वह ऐसा करके ही समाज मे यश व गौरव प्राप्त कर सकती है।समाज की मान्यताओं औऱ परम्पराओ को कुचल कर जीवन जीने वाली बालिकाएं अपने ही हाथों अपने भविष्य को बर्बाद कर जाती है। एक शिक्षित स्त्री को आज की इस आधुनिक स्मार्ट मोबाइल दुनिया से विचलित न होकर बेहतर ढंग से पारम्परिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखने में अपनी महत्ती भूमिका निभाए।पारिवारिक संबंधो में बिखराव स्मार्ट मोबाइल के दुरुपयोग से बढ़ रहे है।वे इन खतरों से स्वयं भी सजग रहे औऱ परिवार-समाज के सदस्यों को भी सजग रहने की सीख देवे। यह शिक्षित स्त्री के लिए एक चुनौती है।इस चुनौती को सहजता से स्वीकार कर परिवार-समाज को नई दिशा प्रदान करे।
समाज की सभी शिक्षित बहिनों-बालिकाओ से मेरा निवेदन है कि वे समाज की परम्पराओ औऱ मूल्यों की समझ रखे तथा उन उच्च आदर्श मूल्यों औऱ परम्पराओ-मान्यताओं को बड़े दिल से अपनाए औऱ उस पर दृढ़ता से न केवल चले बल्कि अपने समाज के आदर्श मूल्यों औऱ प्रतिमानों को प्रचार-प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।
५.सामाजिक गायन-नृत्य परम्परा:- सीरवी समाज के विभिन्न उत्सव-आयोजनों पर गायन की अपनी परम्पराए है।स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले गीतों में एक गजब का दर्शन है, उनके गीतों में दिल को छू लेने वाली संवेदनाएं है औऱ मनोरंजन भी है। शिशु के जन्म के बाद सूर्य पूजन अर्थात माथा धौवन परम्परा के अपने गीत,विवाह के विभिन्न अवसरों के गीत,बालिका के वैवाहिक विदाई गीत,जमाई के ससुराल आने पर स्वागत गीत,मायरा के गीत ,रात्रि जागरण के गीत तथा बुजुर्ग व्यक्ति की मृत्यु पर गाए जाने वाले गीत,12 दिन के हरिजस गीत इत्यादि गीतों में जो दर्शन,ज्ञान,भाव औऱ मनोरंजन है,उनकी प्रशंसा में शब्द भी बौने हो जाते है। अनपढ़ नारियों ने हमारी सामाजिक-लोकशाही गायन व नृत्य परम्परा को आज दिन तक बनाये रखने का अनूठा प्रयास किया है।वे सभी बधाई की पात्र है।आज की शिक्षित बालिकाओ को हमारी परंपरागत गायन एवम नृत्य परम्परा में रुचि कम है। वे वर्षों से चली आ रही हमारी नृत्य शैली को भी भूलती जा रही है।आज विवाह जैसे मांगलिक कार्यक्रम पर परम्परागत गीत गायब हो रहे है,उनका स्थान फिल्मी गीतों औऱ DJ के धूम धड़ाम गीतों ने ले लिया है।आज फूहड़ गीतों पर नृत्य करती युवा पीढ़ी हमारे सामाजिक उच्च आदर्श प्रतिमानों को जमींदोज कर रही है।यह समाज के लिए मंगलकारी नही है।
आज जगह-जगह DJ के धूम -धड़ाम गीतों के विरुद्ध आवाज मुखर होने लगी है।हमने अपने ग्राम सोनाई मांझी में सर्वसहमति से वैवाहिक या उत्सव कार्यक्रम पर DJ लाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है।समाज को अपने परम्परागत आदर्श मूल्यों औऱ प्रतिमानों को बचाने के लिए यदि कड़े कदम उठाने की जरूरत पड़े,तो उठाना परम आवश्यक है।
सीरवी समाज की पारिवारिक परम्पराओ को हम उक्त सीमित बिंदुओं में ही आलेखित नही कर सकते है।सीरवी समाज की परम्पराए शिशु के जन्म से मरण तक विभिन्न अवस्थाओं में समाज के व्यक्तियों की जीवन शैली के ऐसी बहुत-सी छोटी-छोटी पारिवारिक परम्पराए जैसे जन्म के नामकरण संस्कार से लेकर दाह संस्कार तक के संस्कारों की परम्पराए,मायरा परम्परा,उत्सव जैसे दीपावली,रक्षाबंधन,होली,नवरात्री पर्व,ऊब छठ,तीज त्यौहार,अमर सुहाग के लिए सुहागिन स्त्रियों का करवा चौथ मनाने की परम्पराए, भाइयों के मंगलमय जीवन के लिए बहिनों द्वारा किए जाने वाले वीरफुली उपवास ये सभी परम्पराए समाज में सदियों से चली आ रही है। स्त्रियों ने उक्त सामाजिक-पारिवारिक परम्पराओ को आज दिनतक बनाये रखा है।
अब शिक्षित स्त्रियों की जिम्मेदारी है कि वे समाज की श्रेष्ठ सामाजिक परम्पराओ-मान्यताओं को आने वाली पीढ़ी तक हस्तांतरित करने में अपनी महत्ती भूमिका निभाए।
मेरे इस आलेख में कही भी ऐसा नही है कि मैं नारी शिक्षा का विरोधी हूँ।मैं समाज की शिक्षित नारियों को उनकी शैक्षिक समझ औऱ बुद्धिमता से अपने समाज के उच्च आदर्श मूल्यों औऱ प्रतिमानों को आत्मसात कर जीवन जीने तथा अपने पारम्परिक पारिवारिक मूल्यों को इस पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक हस्तांतरण के उत्तरदायित्व का बोध करा रहा हूँ।जब प्राचीन काल मे समाज की अनपढ़ नारियों ने अपने बुद्धि-विवेक से सामाजिक आदर्श मूल्यों एवं परम्पराओ का हम तक हस्तांतरण कर दिखाया है तो क्या आप शिक्षित होकर ऐसा नही कर पायेंगी? यह जिम्मेदारी हम सबकी है कि हम अपने पारिवारिक परम्पराओ को निभाने में गर्व करे न कि ग्लानि।
समाज की शिक्षित बहिनें और बालिकाएं सामाजिक परम्पराओ को अपनाने को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करे।वे इसे अपना परम उत्तरदायित्व समझे।वे अपनी कार्यशैली से यह दिखाए कि हर एक शिक्षित नारी का समाज-राष्ट्र की परम्पराओ के प्रति अगाध स्नेह है औऱ सांस्कृतिक मूल्यों -परम्पराओ को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरण करने के उत्तरदायित्व का बोध भी है। शिक्षित बहिनें-बालिकाएं अपने इस विराट लक्ष्य में कामयाब हो जाएगी तो समाज-राष्ट्र के सांस्कृतिक विरासत के आदर्श मूल्यों औऱ प्रतिमानों को अनमोल धरोहर के रूप में आने वाली पीढ़ी को बोध कराने समर्थ हो जाएगी।
शिक्षित स्त्री की जिम्मेदारी बड़ी है।एक शिक्षित नारी एक नही अपनी उच्च आचरण एवं जीवन शैली से दो-दो परिवारों को रोशन करती है।
मेरा समाज के हर अभिभावक से करबद्ध निवेदन है कि वे अपनी बालिकाओ को भी बालक की तरह उच्च शिक्षा दिलाए औऱ समाज को बालिका शैक्षिक दृष्टि से उन्नत करे। नर-नारी मनुज जीवन रूपी सुंदर रथ के दो पहिए है।हम एक पहिए को मजबूत कर अपना सफर तय नही कर सकते है। एक पंछी अपने दो सुंदर व मजबूत पंखों से ही आसमान में उड़ान भरता है उसी तरह नर-नारी मनुज के दो सुंदर पंख है,हम एक पंख को काटकर अर्थात नारी को शिक्षा के उसके अधिकार से वंचित कर समाज-राष्ट्र का विकास करने में सफल नही हो सकते है।हम सबकी संयुक्त जिम्मेदारी है कि हम सब समाज की बालिका शिक्षा के उन्नयन में योगदान करे औऱ बालिका शिक्षा के उन्नयन हेतु सेमिनार-संगोष्ठियों का आयोजन कर अभियान चलाए।युवा पीढ़ी को समाज के उच्च आदर्श मानक मूल्यों से अवगत कराएं तथा स्मार्ट मोबाइल दुनिया के खतरों से सजग रहने की सीख देवे।
समाज की जो बहने-बालिकाएं वर्तमान में पढ़ रही है,उनसे निवेदन है कि वे अपने यौवन काल में अपने मन-मस्तिष्क में कुंठित भावनाओ को पनपने न दे।ये कुंठित भावनाएं मनुज रूपी सुंदर फसल को खरपतवार बन नष्ट-विनष्ट कर जाती है। इससे अपने आपको सजग रखे,अपने माता-पिता के मान -सम्मान औऱ उनके अरमानों को ठेस न पहुंचे,ऐसे असामाजिक कृत्य न करे।एक शिक्षित स्त्री की समझ बड़ी होती है,उसे अच्छे व बुरे का ज्ञान होना जरूरी है। मन को संयमित रखे औऱ भावावेश में आकर ऐसे निर्णय नहीं लेवे जो सामाजिक परम्पराओ और आदर्श प्रतिमानों के विरुद्ध हो। वे स्वयं शिक्षित बनकर समाज में ऐसे अच्छे सामाजिक कार्य करे जिससे दुसरो को प्रेरणा मिले।वे शिक्षित बनकर सामाजिक परम्पराओ औऱ मान्यताओं की रक्षक औऱ प्रचारिका बने।
अंत में मेरा सभी शिक्षित बहिनों-बालिकाओ से एक आह्वान:-
"आह्वान तुम्हारा है, हे शिक्षित नारियों।
आत्मसात करो सामाजिक परम्पराओ को।।
बना दो जीवन अपना खुशमिजाज।
सबसे ज्यादा इसी की जरूरत है आज।।"
सभी बुद्धिजीवी पाठकों का मेरा हृदय से सादर अभिनंदन-वंदन-नमन।
जय माँ श्री आईजी सा।
सभी के मंगलमय एवं गरिमामय जीवन की शुभकामनाओं के साथ।
आपका अपना
हीराराम चौधरी(गहलोत)
अधयापक
राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय सोडावास(पाली)
निवासी:-सोनाई मांझी(पाली)
मोबाइल नंबर 9610370191