सीरवी समाज - ब्लॉग

आलेख:- - नाता प्रथा, हाटा पाटा - समाज के लिए सुविधा या दुविधा । - प्रतिभागी - 1- मगराज करमारामजी सीरवी बिजोवा::रानी::राजस्थान
Posted By : Posted By seervi on 04 Oct 2019, 08:28:52

?जय आईजी?
?सादर वन्दे?
आज के परिपेक्ष मे अगर देखा जाये तो नाता प्रथा गलत नही है । हिन्दुस्तान के बहुत से समाजो मे पहले नाता प्रथा का प्रचलन नही था । उस समय नारी का सम्मान अवलौकिक ही था । नारी भोग्या नही समझी जाती थी ।अनायास ही विधवा होनेपर उम्रभर सांसारिक सुखो से वंचित रहना पडता था, सुहागिन का सौभाग्य नही मिलता था, ताने मारे जाते थे, शुभकार्यो पर सही स्थान नही मिलता था , और लज्जाहीन तत्वों से बचकर रहना पडता था, सही होकर भी कुदृष्टि का बोझ उन अबलाओं को झेलना पडता था इत्यादि इत्यादि ।

मगर आज की नारी शिक्षित हो रही है , अब अबला नही सबला बन रही है, महत्वपूर्ण कार्यो मे हाथ बंटा रही है अतः आज के आधुनिक युग मे स्त्री नाता प्रथा को मै सही मानता हूं ।

देश की बहुत सी जातियों मे हाटा-पाटा प्रथा है , कहीं पर मामा की बेटी से शादी की परम्परा है तो हमारी समाज मे होनेवाले दामाद की बहन, या उनके परिवार या रिशते की लडकी से शादी करने को ही हाटा-पाटा कहा जाता है ।

बडे बुजुर्गों ने जब यह परम्परा डाली होगी तब उनका मानस आपसी घनिष्ठता बढाना ही रहा होगा, एक ही थाली के सभी संबंधी और सब आपस मे रिशतेदार हो , कम से कम खर्चा हो, आपसी मेलजोल बढे, और एकदुसरे के लिये उपयोगी हो ।

मगर
आज के युग मे शिक्षित पुरूष और नारी इसमे घुटन महसूस करने लगे है , आपसी मनमुटाव मे दो घर टूटने लगे है,, संबधियो की आपसी खींचातानी मे पति पत्नि के प्यार की बली दी जाती है नाहक ही,, बच्चो को छोड दिया जाता है , सावत्र माताएं अपनाती नही है,, और बच्चे मां के लाड प्यार से वंचित रह जाते है , और अच्छे मानव नही बन पाते क्योकि अगर दो तीन बच्चो की माता मनमुटाव या खींचातानी, आरोपोप्रत्यारोपो की भेट चढ जाती है तो ,, वह भी अपने भावी पति के साथ पुर्णरूप से घुलमिल नही पाती , लिहाजा संताने भी अपना हक्क नही पा सकती ??

और भी अनेकानेक कारण है जो इस पवित्र रिशतों मे दरार डाल रहे है , स्वछंदता ,, सोशियल मिडिया,, आत्मस्वबलता ,, पसंद ना पसंद,, सहजीवन की उपलब्धियां प्राप्त करना इत्यादि इत्यादि ।

हाटा-पाटा प्रथा सही सामाजिक परिप्रेक्ष्यों को ध्यान मे रखकर ही बनायी थी मगर आजकल कुच्छ दलालों ने भी इसको बदनाम कर दिया है । जब हम समकक्ष समधी से नाता जोडते है और उसकी बेटी लेने को तो तैयार होते है मगर उसी समधी के घर अगर हमारी बेटी की आवश्यकता हो तो देना ही चाहिए , जिनसे हमने सातपिढी का निता जोडा हो तो उस घर पर बेटी देने मे हर्ज ही क्या है??
मगर
आजकल यह प्रथा टुटने की कगार पर ही है , शिक्षित युवा इसे कम ही अपनाते पाये जाते है,, क्योंकि उनका रूझान आत्मस्वालंवन की ओर है और स्वालंबी होना भी समय की मांग है ।

मैने दो शब्द प्रस्तुत किये है ,, कोई गलती हो तो क्षमस्व और भी महानुभाव इस विषय पर सविस्तर जानकारी प्रदान करेंगे ।
आपका भ्राता
मगराज करमारामजी सीरवी
बिजोवा::रानी::राजस्थान