सीरवी समाज - ब्लॉग

आलेख:-सीरवी समाज की अच्छाइयां-सबसे जुदा । - प्रतिभागी - 10 - मोनिका चौधरी, वरिष्ठ अध्यापक (विज्ञान) खारिया मीठापुर
Posted By : Posted By seervi on 15 Sep 2019, 12:41:14

विचार मेरे विचारो में - आलेख - सीरवी समाज की अच्छाईया - सबसे जुदा

समाज के सोशल मीडिया प्रारूप ने प्रिंट मीडिया के साहित्यिक प्रारूप में एक अरसे से मंदी को एक बार पुन: ताज़ी हवा का झोंखा दिया है, जिसे मेरी समझ में सीरवी समाज के सभी शिक्षाविदो को संज्ञान में लेना चाहिए l सीरवी समाज डॉट कॉम के संचालक संस्थापक और सम्पादक को इस हेतु ह्रदय से साधुवाद l

देश काल परिस्थिति विचारो का समागम अपने अन्तर्निहित अनेकानेक भावो से वस्तु विषय की कल्पना परिकल्पना प्रस्तुत करता रहता है, किसी जमाने में समाज के शिक्षाविदो द्वारा सीरवी सन्देश पत्रिका के माध्यम से समाज के साहित्यिक विचारों को सामने लाया जाता रहा है किन्तु वर्तमान में सोशल मीडिया के त्वरित सूचना आदान प्रदान की सुविधा ने एकबारगी समाज के साहित्यिक विचारों को लगाम देकर चुराए गए विचारों से सामाजिक साह्यित्यिक चेतना को छिलम छिल कर दिया l सीरवी समाज डॉट कॉम के - विचार मेरे विचारो में - प्रारूप की जानकारी हालांकि काफी देर पश्चात मुझे ज्ञात हुई, किन्तु निबंधात्मक आलेख की इस शुरुआत प्रशंशनीय है - वर्तमान आलेख के अनुसार मेरे विचार निम्न है -

सीरवी समाज की अच्छाईया - सबसे जुदा -
किसी भी सभ्यता के विकास की प्रमुख वजह होती है उस सभ्यता के नियम जिन्हें हम रीती रिवाज के नाम से भी जानते है, नियम ऐसे जो समाज में आने वाले शिशु से लेकर समाज से जाने वाले वृद्ध तक एकसार लागू तो हो ही, साथ ही सदियों तक समसामयिक परिस्थिति में समानांतर रूप से सक्षम हो -
सीरवी समाज की कुछ ऐसी ही विशेषताए जो इसे अन्य किसी भी समाज से जुदा रखने में सक्षम है -

1. जन्म - सीरवी समाज में जन्म, समाज के लचीले और हर परिस्थिति में संवेदनशील नियमावलियो के संस्कारों का तोहफा है, लड़ाकू क्षत्रिय कौम से सफल कृषक कौम का रास्ता तय करते हुए व्यापारिक उपलब्धियों की सिरमौर सीरवी जाती ने शिक्षा और बौद्धिक कौशल जनित रोजगार में अपना दम ख़म उपस्थित सभी जातियों सभ्यताओ को दिखाया भी है और साबित भी किया है, एक बच्चे का जन्म चाहे वह स्त्री हो चाहे पुरुष - सीरवी समाज में कभी भी भेदभाव की नजर से नहीं देखा गया, यह एक पोरानिक संस्कार है जो आज भी विध्ह्मान है, इसलिए जहा अन्य जातियों में भूर्ण के स्त्री होने में कठिनाई समझी जाती है सीरवी समाज में अपनी सभ्यता में स्त्री और पुरुष भ्रूण में कोई भेद नहीं है, दोनों का समाज में स्वागत होता है l सभ्यता के स्वरूप के अनुसार गरीब या अमीर में कोई भेद नहीं है, समाज की जाजम पर सभी समान रूप से निर्वहन हेतु स्वतन्त्र है l

2. म्रत्यु :- सीरवी समाज का सदस्य सम्पूर्ण जीवन काल में समाज के पोरानिक परिवेश और नियमावलियो से बंधा रहता है, जिसके तहत परिवार और समाज हेतु उसके कर्तव्यों की पालना में सभी सहयोगी भाव से सदेव साथ रहते है, उपलब्ध रीती रिवाजो और सामाजिक नियमो के अंतर्गत गरीब से लेकर अमीर तक के लिए निर्वहन हेतु नियम एक ही है, इस हेतु जीवन के अंतिम सफ़र को सर्वाधिक सादगी से पूर्ण करने के समुचित प्रबंध सामाजिक नियमो में विधमान है l भूमि दाग के माध्यम से एवं अग्नि दाग के माध्यम से अलग अलग परिवेश में प्रबंध है, मृत्यु उपरांत परिवार पर किसी भी ऐसी रीती रिवाज की पालना बाध्यकारी नहीं है जिस से उक्त परिवार को मानसिक या आर्थिक बोझ हो, यदि ऐसा कही किसी परिस्थिति या जगह पर है भी तो समाज के नियम इस हेतु उसे बाध्य नहीं करते l सादगी से जीवन और मृत्यु सम्बन्धी संस्कारों के निर्वहन हेतु समाज का कोई भी नियम बाध्यकारी नहीं है l

3. विवाह संस्कार - मूलतः कृषक कौम, संयुक्त परिवार की अवधारण वाली सीरवी जाती में विवाह एक संस्कार के रूप में विधमान है, इस संस्कार में दो परिवारों का आपसी मिलन होता है जिसके माध्यम से सहयोग की भावना एक दुसरे के आर्थिक सामाजिक और जीवन यापन हेतु कार्यो में सहयोगी की भूमिका भी निभाते है, स्त्री और पुरुष का विवाह परिवारों का सामाजिक गठबंधन है, जिसके तहत कृषि व्यापार आदि रोजगार के कार्यो में निरंतर सहयोग बना रहता है, साझे के संस्कारों से निर्मित समाज के सदस्यों की मानसिकता सदेव एक दुसरे पर निर्भरता बनाए रखने के सामजिक नियमो का पालन करते है l वर्तमान समय में भी सबसे सस्ते और सबसे महंगे विवाह संस्कार आयोजन के बावजूद भी सामाजिक समरसता में कोई कमी नहीं है, लोकप्रियता और कुलीन वर्ग में होने के पश्चात भी समाज का सदस्य विवाह संस्कार हेतु अमीर गरीब का भाव नहीं रखता, आज भी समाज की स्त्री शक्ति को सबसे आदर्श और उच्च मूल्यों के संस्कारों से परिपूर्ण माना जाता है l

4. प्रथाए :- सीरवी समाज में सदस्य के रूप में स्त्री और पुरुष और इनके निर्गम के रूप में परिवार को सभ्यता के नियमो (रीती रिवाजो) में असहजता कभी महसूस नहीं होती, इसका मूल कारण है हर कार्य में एक दुसरे के सहयोगी और निर्भरता की सामजिक नियमावली l सीरवी समाज में वर्तमान की सबसे भयानक सामाजिक व्याधि "दहेज़ प्रथा" का नामो निशाँ नहीं है, क्यूंकि सदियों से परंपरागत रूप से स्त्री शक्ति की पूजा करने वाली इस सभ्यता ने स्त्री की महत्ता अपने कर्म के द्वारा समाज में स्थापित की है, इस समाज में स्त्री को परिवार और समाज के आवश्यक अंग के रूप में अंगीकार किया जाता है और सामाजिक सरोकारों में स्त्री को सदेव अग्रणी भूमिका प्रदान की जाती है जिसके कारण दहेज़ जैसी व्याधि ने समाज में अपने पाँव नहीं पसारे, प्रथाओं के रूप में सती प्रथा पूर्व में समाज में विधमान होने के प्रमाण मिले किन्तु वर्तमान में नाता प्रथा और विधवा विवाह को समाज के नियम में उचित स्थान पाटा देखकर स्त्री के यथोचित मानवीय अधिकारों के प्रति समाज के संतुलित नियमो पर कोई विसंगति नहीं है l समाज में स्त्री जीवन पर्यंत अपने अधिकारों और कर्तव्यों के साथ एक व्यक्तित्व के साथ विधमान है इस हेतु समाज में कोई भी बाध्यकारी रीती रिवाज या प्रथा सीरवी समाज में मौजूद नहीं है l

5. जीवन यापन :- सभ्यता के बदलते स्वरूप में क्षत्रिय लड़ाका कौम से कुशल खेतिहर किसान के रूप में अपनी पहचान पाने वाली सीरवी कर्म जनित कौम के सदस्यों ने समूचे मारवाड़ ही नहीं रष्ट्र में भी अपना परचम साबित किया है, संवेदनशीलता के साथ इमानदारी, जवाबदेही और विश्वाश जनित कर्म को सर्वोपरि लक्षणों के रूप में अन्य सभ्यता के समक्ष साबित किया है, बदलती परिस्थितियों में समाज के अस्तित्व को जीवित रखने के हर संभव कारगर संतुलन समाज के लोगो ने बनाए है, सभी अन्य जातियों और धर्मो के नियमो के मध्य सह अस्तित्व की भावना के साथ अपने पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने हेतु किये जा सकने वाले समझोतों को भी समाज हित में साधा है l व्यापारिक जेवण शैली में भी पारंपरिक मूल्यों को संक्रमित होने से बचाए रखने के सम्पूर्ण साधन धर्म और समाज के माध्यम से लक्षित करने के पोरानिक संस्कारों को जीवित रखने के पुरजोर प्रयास हुए है और आज भी जारी है, सामुदायिक भावना से ओत प्रोत होकर रोजगार के माध्यमो में समाज के निर्धन तबके को मुख्य धारा में लाने लायक प्रयोजन हेतु सदैव प्रयासरत रहे है l

6. सामाजिक नियम :- सीरवी समाज में अन्तर्निहित सामजिक पंचायती सिस्टम पोरानिक काल से विधमान है जिसके तहत हर गौत्र या परिवारों के कुनबे के एक प्रतिनिधि के रूप में समाज के सदस्य को सामाजिक नियमो के पालन और निर्वहन हेतु अधिकारों और कर्तव्यों की रुपरेखा के मध्य अपने व्विचार रखने की स्वतंत्रता है, जिसे केंद्रीकृत सिस्टम के द्वारा पञ्च पंचायती के माध्यम से निभाया जाता है और बाध्यकारी की जगह सामाजिक आग्रह के प्रारूप में लागू रखने के यत्न किये जाते है l किसी भी परिस्थिति में निरंकुश सदस्य के भाव विचार और कृत्य को सामजिक अवहेलना नहीं मानकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रूप में भविष्य के परिणामो के लिए लंबित भी किया जाता है, जिसके कारण एकबारगी समाज में व्यथा उत्पन भले ही हो जाए, किन्तु किसी भी अप्रत्याशित निर्णय से होने वाली सामाजिक संरचना को नुक्सान की प्रक्रिया इतनी धीमी हो जाती है की अन्य परिवारों पर इसका प्रबहाव लगभग शुन्य ही रहता है l

7. बौध्हिक कौशल :- सीरवी समाज प्रारम्भ से बौद्धिक सम्पदा के साथ विधमान है, भूमि की किस्म से लेकर उपज की गुणवत्ता और मिटटी के प्रकार से लेकर उपलब्ध पानी के मेल संयोजन के अनुभव में सर्वोपरि साबित रह चुकी सीरवी जाती को इतिहास में सबसे लोकप्रिय समझदार और लाभकारी कृषक जाती में शुमार होने का तमगा हासिल है, समय के साथ व्यापार कर्म में अपनी मेहनत लगन दूरदर्शिता संयम और जवाबदेही की इन्ही संसकारिक आदतों की वजह से महाजन जाती के साथ साझा कर्म में सबसे अग्रणी जाती के रूप में उभरी, और वर्तमान में इसके सदस्यों द्वारा व्यापार कर्म के उल्लेखनीय कीर्तिमान स्थापित है, भविष्य की क्रियाविधियो में समाज का युवा वर्ग शिक्षा जनित रोजगार हेतु देश के सर्वोत्तम शैक्षिक प्रयोजनों में निरंतर अपनी उपलब्धिया बनाए और बढाए जा रहा है, इंसान की सामुदायिक प्रकृति सभ्यता में समूचे समाज के उत्थान में सहयोगी रहती है, ऐसा निरंतर सीरवी समाज की वर्त्तमान पीढ़ी के कर्म और बोद्धिक विस्तार से देखने को मिल रहा है l

8. सामुदायिक भावना :- देश की सबसे अग्रणी कौम जैन बनियों के सानिध्य में रह कर सीरवी जाती के सदस्यों ने सद्भाव, और सर्वधर्म समभाव की अलोकिक चातुर्यता अपने अन्दर विकसित की है, दान धर्म में अग्रणी रहकर सामुदायिक विकास के स्थानों में में भी सबसे अग्रणी बने रहने की अन्तर्निहित भावना हर जाती विशेष के अन्दर नहीं मिलती, जिसे भी प्रयोजन हो स्वहित से सामुदायिक हित में परिवर्तन हो ही जाते है, ऐसा संसकारो के धनि सीरवी समाज के सदस्यों के कर्म व्यवहार में हमेशा दीखता है , साहित्य के संस्कारी वक्तव्यों में भले ही हम शब्दों के माध्यम से इसे व्यक्त नहीं कर पाए, लेकिन जैसा की हुआ है और हो रहा है, देश के हर कौने में अपनी सामुदायिक उपस्थिति किसी संयोग की नहीं बल्कि सोच का परिणाम है और यह सोच अभी की नहीं अपितु समाज के मूल डीएनए में विधमान है l

किसी भी समाज में नकारात्मकता के अंश का प्रतिशत दिखने में तो अधिक लग सकता है लेकिन कुल मिलाकर सभ्यता के पूर्ण रूप में अंश भर भी नहीं होता, इस मामले में सीरवी समाज की लाखो की आबादी में महज कुछ सेकड़ो की संख्या में नकारात्मकता के हिस्से और किस्से ही देखने को मिलते है, मूल प्रारूप में सीरवी जाती के सदस्यों के संस्कार इतने परिपक्व है की अंतत: कितिनी भी नकारात्मकता बाहर निकले लेकिन जब बात अंजाम तक पहुचने की हो तो सामुदायिक सोच में सकारात्मकता ने हमेशा विजय पाए है, हालांकि ऐसा हर जाती सभ्यता में होता होगा ... किन्तु सीरवी समाज में इसका प्रतिशत बहुत अधिक है, इसका मूल कारण है धर्म और समाज का संतुलित सम्बन्ध, और इसे बनाए रखने के लिए सीरवी समाज में कोई भी विशेष बाध्यता नहीं है, जिस से दबाव की स्थिति समाज के किसी भी मस्तिस्क पर नहीं है और यही कारण है की सीरवी समाज में सभी दाता है ग्राही की संख्या बहुत कम है और जो है वो भी भिखारी नहीं है, और तो और समाज के नियमो का प्रेशर नहीं होने की वजह से ख़ुदकुशी की दर सीरवी समाज में लगभग शुन्य है, अर्थार्थ इस जाती का हर सदस्य हर परिस्थिति में अपने सामजिक परिवेश में सक्षम रूप से सुरक्षित है चाहे वह स्त्री हो चाहे पुरुष - यही इस महान सामुदायिक प्रबंधन की विशेषता है जो इसे सबसे अलग होने का तमगा प्रदान करती है, क्यूंकि अधिकतम जातिया धर्म के आवरण में इतना संकुचित हो जाती है की समाज के नियमो का प्रेशर धर्म जनित कर्मकांड से उसके सदस्यों का जीवन दूभर कर देती है, सीरवी समाज में ऐसा नहीं है, धर्म के रूप में श्री आइपंथ एक ऐसा आवरण मिला है जो हर स्थिति में हर सदस्य को निरपेक्ष रूप से स्वतंत्रता के भाव व सामाजिक बहाव में प्रेरित करती रहती है -

इति