सीरवी समाज - ब्लॉग

नयी पीढ़ी में रिश्तों के मायने और संस्कार ! प्रस्तुति - राज राठौर बेल्लारी कर्णाटक
Posted By : Posted By seervi on 31 Jul 2019, 05:50:21

नयी पीढ़ी में रिश्तों के मायने और संस्कार !
रिश्तों की अपनी अहमियत होती है और जरूरी है कि हम उस रिश्ते की मर्यादा को समझे और अपने आने वाली पीढ़ी (माँ बाप अपने बच्चो के लिए )को भी समझाएं। ईट-पत्थरों की दीवारों में जब रिश्तों का एहसास पनपता है तभी वह घर कहलाता है।
आज की high profile और भागदौड भरी जिंदगी में हम रिश्तों की अहमियत को भूलते जा रहे हैं। हमारी busy लाइफ हमे रिश्तों से दूर कर रही है। इसका उसर बच्चो पर भी पडता है। तभी तो आज के बच्चे रिश्तों की अहमियत को बहुत कम समझते है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसके जन्म से ही उसके साथ कई रिश्ते जुड जाते हैं। लेकिन इन रिश्तों में से कितने ऎसे होते हैं जिन्हें वे निभा पातें हैं।
ऎसा इसलिए नहीं कि बच्चों को उन रिश्तों की अहमियत का नहीं पता बल्कि इसलिए कि क्योंकि माँ बाप खुद उन रिश्तों से दूर हैं।
बच्चों में संस्कार की नींव माता-पिता द्वारा ही रखी जाती है। अगर माता-पिता ही रिश्तों को तवज्जो नही देते तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही।

आज समाज संयुक्त परिवार का प्रचलन घटता जा रहा है

संयुक्त परिवार में बच्चा दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, बुआ के साथ साथ रहकर बडा होता था। आज बच्चा सिर्फ अपने माता-पिता को ही जानता है। एकल परिवार में होने के कारण बच्चे अपने खून के रिश्तों को भी नहीं समझते और जब बच्चा खून के रिश्तों को समझेगा ही नहीं, तो उस में रिश्तों के प्रति सम्मान और अपनापन कहां से आएगा! आज के बच्चे अपनी संस्कृति और सभ्यता से भी अनजान होते जा रहे हैं। आज के अभिभावकों के पास इतना समय ही नहीं है कि वे अपनी सभ्यता और संस्कृति से उन्हें अवगत करा सकें।

आज हमारी जीवनशैली इतनी व्यस्त हो गई है कि व्यक्ति के पास खुद के लिए समय नहीं है। ऎसे में रिश्ते निभाने और बच्चों को उन की अहमियत बताने का समय किस के पास है?
जिंदगी की रफ्तार में इंसान अपने रिश्तों को अनदेखा करता जा रहा है। इसी अनदेखी की प्रवृति के कारण उस के नजदीकी रिश्ते धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं।तो बच्चे कहाँ समझेंगे रिश्तों की अहमियत उन्हें तो लगता है, बस यही हमारा परिवार है। बच्चों का कोमल मन तो वही सीखता है, जो वे देखते हैं।


आज जमाना दिखावे का हो गया है। इसी दिखावे के कारण सारे रिश्ते, परंपराएं एक तरफ हो गई हैं। आज की life style high tech हो गया है।

अगर फलां रिश्तेदार के पास गाडी है और हमारे पास नहीं, तो कैसे भी कर के हमारी कोशिश होती है कि हम गाडी खरीद लें ताकि हम भी गाडी वाले कहलाएं।

अभिभावकों के ऎसे आचरण का प्रभाव बच्चों पर काफी पडता है। वे भी बडों की नकल करते हैं और दूसरे बच्चों से कंपीटिशन करते हैं। जहां रिश्तों में कंपीटिशन और दिखावा आ जाता है वहां रिश्तों की स्वाभाविकता खत्म हो जाती है।

आज मैं और मेरे की भावना इतनी प्रगल हो गई है कि व्यक्ति को सिर्फ अपनी पत्नी और बच्चे ही दिखाई देते हैं, माँ बाप भी नहीं ॥

बच्चा मां-बाप से ही सीखता है कि उस का परिवार है , बाकी लोग दूसरे लोग हैं।

हम जैसा बोएंगे वैसा ही तोे काटेंगे। आधुनिकता की अंधी दौड में हमें रिश्तों के महत्व को बिलकुल नहीं भूलना चाहिए। हमें अपने बच्चों को पारिवारिक परंपराओं और रिश्तों के महत्व को जरूर समझाना चाहिए।

कभी बच्चों के सामने अपने रिश्तेदारों की शिकायत न करें।
इससे बच्चों के मन में गलत भावनाएं पैदा होती हैं।
बच्चों के सामने रिश्तेदारों के status की बात बिलकुल न करें।
ऎसा बिलकुल न कहें कि फलां रिश्तेदार हमारे बराबर का नहीं है ...