
खिंवाड़ा से कुछ दूरी पर स्थित मेवी गांव में रहने वाले किसान सीरवी दलपतराम चौधरी ने अपने कुएं पर हटकर औषधियों की खेती क्या की कि यह खेती उनके लिए एक पहचान बन गई। इस किसान की पहचान अन्य राज्य में भी अच्छी औषधियों की खेती करने में हो रही है। इससे चौधरी की तकदीर ही बदल गई है। बचपन से ही इस दलपतराम को औषधि खेती की तमन्ना थी और हुआ भी ऐसा ही, चौधरी ने खेत पर पैर रखते ही औषधि खेती करने की जानकारी ली। इसके बाद उन्होंने अपने खेत पर औषधि फसल के बीज सीआरसीए मेडिकल प्लांट, उदयपुर व गुजरात से खरीदकर बुवाई कर दी। देखते ही देखते खेत में सोभसिनी, सर्पगंधा, अरव गंधा, सुदर्शन, नेत्र बिंदू, दमा बैल, सिरंभी ग्वार भाटा सहित अन्य कई प्रकार की औषधियों की फसलें उनके खेत में लहलहाने लगी।
फसलें तैयार होते ही उसके खरीदार भी आने शुरू हो गए। धीरे-धीरे दलपतराम की पहचान अन्य राज्यों में होनी शुरू हो गई और यहीं से इस किसान की तकदीर बदल गई, क्योंकि गुजरात, महाराष्टï्र सहित अन्य राज्य से औषधियों की फसल के खरीदार किसान उनके पास आने शुरू हो गए। पिछले दस वर्षों से लगातार चौधरी अपने खेत में मात्र औषधियों की ही खेती कर रहा है।
कृषकों को दे रहे हैं प्रेरणा
दलपतराम औषधियों की खेती की जानकारी दूसरे किसानों को भी देते रहते हैं। कृषि विभाग की ओर से आयोजित सेमीनार व शिविरों में भी कई बार इन्हें आमंत्रित किया। इतना ही नहीं, वे औषधियों का वितरण उन गरीब लोगों में निशुल्क करते है, जिनकी उनको आवश्यकता होती है। इस खेती के बारे में धीरे-धीरे लोगों को पता चला तो अन्य राज्यों से भी मरीज यहां आने लगे। दलपतराम बचपन से ही खेती में कुछ अलग करना चाहते थे, इस खेती से उन्हे एक नई पहचान भी मिली।
साभार - दैनिक भास्कर