सीरवी समाज - मुख्य समाचार

Posted By : Posted By Mangal Senacha on 13 Mar 2010, 13:35:09

पाली, होली के आने में अब कुछ ही दिन शेष हैं। ऐसे में ‘ढूंढाकड़ों’ की बिक्री भी तेज हो गई है। दरअसल, होली पर जिन बच्चों की ढंूढ़ होती है उन के लिए लाए जाने वाले कपड़े व सामान को स्थानीय भाषा में ढंूढ़ाकड़ा कहा जाता है। व्यापारियों की मानें तो अगर होली तक बाजार में ऐसी ही तेजी रही तो ‘ढूंढाकड़ों’ का मार्केट लाखों तक पहुंचने की संभावना है।
सब कुछ हैसियतानुसार : बाजार में रिश्तेदार व परिजन ढूंढ होने वाले बच्चे के लिए हैसियत के अनुसार अलग-अलग तरह के झगला, टोपी, साफा व सोने, चांदी का कंदोरा व हाथों व पैरों पहने वाले आभूषण खरीद रहे हैं। बेटे के माता-पिता के साथ सास, ससुर के लिए कपड़े व बच्चे के खिलोनों की भी खूब बिक्री हो रही है। इसके चलते बाजार में अच्छी खासी रौनक हैै।
बच्चे की पहली शादी है ढूंढ
मारवाड़ में बच्चों को ढूंढने की परंपरा बरसों पुरानी है। यह पहले पुत्र जन्म की खुशी से जुड़ी है। इसे मारवाड़ में बच्चे की पहली भी शादी कहा जाता है और इसमें दूर दराज से तमाम रिश्तेदार शामिल होते हंै। ढूंढ़ होने वाले परिवार में एक सप्ताह पूर्व से ही इसकी रौनक शुरू हो जाती है। होली के मौके दिन भर घर में उत्सव का माहौल चलता चलता है। रात में बच्चे का दूल्हे की तरह शृंगार कर गाजे बाजे के साथ होलिका दहन स्थल पर लाया जाता है। बाद में पूजा- अर्चना के बाद बच्चे को होली की आंच के साथ सात फेरे खिलाए जाते हंै। दूसरे दिन घर में उत्सव का नजारा रहता है। ढूंढ वाले स्थान पर दोपहर बाद गैर दल पहुंचता है। महिलाएं गैर दल का गालियों से स्वागत करती है तो पारंपरिक रीति रिवाजों के बीच गैर दल बच्चे को ढूंढने की रस्म अदा करता है। बाद में वह अपना नेग ले कर चला जाता है। इस मौके पर भांग से बने पकौड़े व गैरियों को नाश्ता कराया जाता है।
ज्वैलरी मार्केट भी चहका
सोना व्यवसायी राजेश बोहरा के अनुसार ढूंढ होने वाले परिवारों ने बच्चों के लिए लंबे समय से सोना, चांदी के कंदोरा और आभूषण के लिए आर्डर दे रखे हैं। इसके अलावा कई लोग प्रतिदिन आकर रेडिमेड आभूषण खरीद रहे हंै।
साभार - दैनिक भास्कर