सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 27 Feb 2010, 23:20:14
देसूरी,प्रकृति ने कई जगहों पर अपना भरपूर सौंदर्य लुटाया है, जहां जाकर न सिर्फ मन को सुकून मिलता है, बल्कि उसकी महानता का भी अहसास होता है। कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के केलवाड़ा रेंज में स्थित सूरज कुंड में कुछ ऐसा ही कुदरत ने अपना खजाना खोलकर रख दिया है। अकाल एवं सूखे से जूझने वाले गोडवाड़ में यह ऐसी जगह है, जहां हर समय पानी छलकता रहा है। सूखने की बात तो दूर रही, इसकी गहराई का थाह भी अभी तक कोई नहीं लगा पाया है। प्रकृति प्रेमियों की इस अनमोल नियामत को देखना अपने आप में खास है।
श्रद्धालुओं का लगा रहता है आना-जाना : प्राकृतिक नजारों से लबरेज सूरजकुंड पहुंचने के लिए देसूरी कस्बे के सेलीनाल बांध से होकर नदी की रेत-रेत लगभग दस किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। राजसमंद जिले के ग्वार मझेरा से इस कुंड तक आसानी से पहुंचा जा सकता हैं। यहां हिगंलाज माता का छोटा सा मंदिर भी है, जहां दर्शन के लिए मेवाड़ और गोडवाड़ के श्रद्धालुओं का दिन में पैदल आना-जाना लगा रहता है। गर्मी में यहां पहुंचने पर जल की शीतलता सुकून देती है, तो रात्रि विश्राम के लिए यहां बरामदा भी बना हुआ है।
वन्य जीवों के लिए वरदान
कुंभलगढ़ अभयारण्य के वन्यजीवों के लिए तो यह कुंड वरदान से कम नहीं है। रात को रिछ सहित अन्य वन्यजीव यहां अपनी प्यास बुझाने आते हैं। मानवीय हलचल नगण्य होने से प्राकृतिक संतुलन कायम है। अभयारण्य की जैव विविधता में इस कुंड के योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता, जिसके बाद कोसों तक पानी देखने को नहीं मिलता।
कुंड की गहराई रहस्य
तीन तरफ से चट्टानों से घिरे सूरज कुंड में जामुन के पेड़ अद्भुत सौंदर्य प्रदान करते हैं, जिनसे वन्य जीवों को आवास के साथ भोजन भी सुलभ होता है। इससे लगता ठीक ऊपर एक और कुंड है, जो देसूरी कस्बे के जलदाता सेलीनाल बांध तक पहुंचने वाली नदी का उद्गम स्थल है। यहां श्रद्धा रखने वाले इसके एक कोने में पानी की गहराई को अनंत बताते हैं। आसपास के लोग बताते हैं कि रियासतकाल से लेकर अब तक कई बार इसकी गहराई नापने का यत्न किया गया लेकिन इसकी कितनी गहराई है, यह रहस्य ही बना हुआ है। कई खाटों में रस्सी लटकाने के बावजूद पानी की गहराई नापी नहीं जा सकी है।
साभार - दैनिक भास्कर