सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : मंगल सैणचा 09845440433
बढती जनसंख्या और घटते संसाधनों की चिन्ता वर्तमान में विश्व पटल पर देखी जा सकती है। जनसंख्या अनुपात में संसाधनों का विकास नहीं हो पाने से कई देशों में खाद्यान्न संकट उठ खड़ा हुआ। नौबत यहॉ तक आ पहुची है कि खाद्यान्न को लेकर आम आदमी दंगाईयों का रूप अख्तियार करने लगा है। भविष्य में गहराने वाले खाद्यान्न संकट और कृषि उपज दर को बढाने के लिए कृषि वैज्ञानिक भी चिन्तनशील है। इसका अंदाजा चीनी और यूरोपियन कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे शोधों से लगाया जा सकता है। अनाज, फल, फूल और नगदी फसलों की उपज बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इस्तेमाल की गई तकनीक भी चीनी और पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों के शोध के सामने फीकी नजर आने लगी है। चीनी वैज्ञानिकों द्वारा अंतरिक्ष में छाड़े गये सब्जी बीजों के ऊपर परीक्षण किया तो परिणाम चैकाने वाले रहे है। इससे स्पष्ट हो चला है कि आगामी समय कृषि में तकनीकी का है और इसकी नई उपज है स्पेश सीड । जो अपने आकार, वजन व पैदावार को लेकर अदृभुत और आश्चर्यजनक रूप में बीज के बैताल बनकर सामने आए है। इन बीजो से खाद्यान्न संकट को हल करने में मदद मिल सकती है। जरूरत है कि इन बीजो को व्यापक रूप में किसानो तक पहुचाने की।
क्या स्पेश सीडः स्पेश सीड को कोई वैज्ञानकि परिभाषा अभी नहीं दी गई है । चीन के कृषि वैज्ञानिको ने शोध के नजरिए से वर्ष 2006-07 में शिजिआन-8 सैटलाइट के जरिए 2000 बीजों का बैच स्पेश में छोडा था। हाल ही में स्पेश रिटर्न बीजों पर परिक्षण किया गया तो ये बीजो पर परिक्षण किया गया तो ये
बीज ही बैतल बनकर सामने आए। चमत्कारी बदालाव की तह तक जाने में कामयाबी हासिल नहीं हुई है लेकिन इतना जरूर तय हो गया है कि धरती पर रहने वाले व्यक्ति भविष्य में चांद की धरती पर उग सब्जियों का स्वाद चख सकेगें। बीजो में आए इस बदलाव पर संभावना जताई जा रही है कि कॉस्मिक रेडिएशन के सम्पर्क में आना तथा माइक्रोग्रेविटी की इससे अहम भूमिका हो सकती है।
बीज कैसे बने बेतालः बढ़ती आबादी और उसकी खान पान की जरूरतो को पूरा करने की फिक्र में चीन ने स्पेश में बीज छोड़ने का प्रयोग किया। दो हफते तक अर्थ की ऑर्विट से घूमते रहे। स्पेश से वापसी पर इन्हे भाप से परे, बंद चैम्बरों में उगाया गया । नतीजे के रूप में भारी भरकम साइज के फल और सब्जियॉ प्राप्त हुई।
सब्जियों में आया बदलावः स्पेश रिटर्न बीजों की धरती पर बेताल बनने की बात करे तो हाल में ही सओं क्वांग और भारत में पूना सब्जी मेले में आठ सालों की सब्जी बीज विकास को प्रदर्शिनी के माध्यम से दशा्रया गया है, स्पेश में छोडे गये बीजों से करीब 9 इंच लम्बी मिर्च, 200 किलो का कद्दू, आधा किलो का टमाटर, दो फी्र लम्बाई लिए हुए खीरा तथा विशालकाय चैकोर तरबूज। स्पेश रिटर्न बीजो से हुई बम्पर पैदावार से उत्साहित चीन और भारत अब खाने के शौकीन लोगों के लिए एक एसी डिश पेश करने में लगा है, जो अब तक किसी भी डिनर टेबल पर नजर नही आयी। अभी इसका नाम तय नही हुआ है, मगर उसको अभी तक रोकेट स्लाद या स्पेश स्लाद दिया गया है।
जैव प्रौद्योगिकी से भिन्न तकनीकः भारतीय कृषि वैज्ञानिकों द्वारा ईजात की गई स्पेश बीज तकनीक जैव प्रौद्योगिकी से तैयार किये जाने वाले संकर बीज से बिल्कुल भिन्न है जैव तकनीक के सहारे आयी प्रथम हरित क्रांति में ज्यादा पैदावार, कीट, प्रतिरोधक, बेहत्तर फल, सब्जी लेने के लिए विभिन्न गुणों वाले पौधो का चयन कर जैनेटिक पदार्थों का सम्पर्क संकर किस्मों में करवाकर नई किस्म तैयार की जाती है। जो अधिक उत्पादन देने में सक्षम होने के साथ कीट अवरोधी भी होती है। लेकिन इन संकर किस्मों के बीजों को पीढ़ीयों तक धरोहर बीजों के रुप में रखकर उत्पादन लेना संभव नही है। जैव प्रौद्योगिकी से तैयार की जाने वाली किस्मों का मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने का खतरा हमेशा बना रहता है। लकेन स्पेश तकनीक बीजों के बारे में रिसर्चरों का कहना है, कि इन बीजों से ह्मनहेल्थ को कोई खतरा नही है। क्योकि बीजों के जीन अपने आप तो बन नही सकते स्पेश में केवल उनकी आन्तरिक संरचना में बललाव भर आता है।
स्पेश रिटर्न बीजों में विटामिन सी की मात्रा सामान्य से 3 गुना तथा जिंक का प्रतिशत भी बढ़ा हुआ पाया गया है।
शोध पर छिडी बहसः बीज को बेहतर बनाने में महारथ हासिल करने वाले कृषि वैज्ञानिक अपनी सफलता से जरुर खुश है, लेकिन स्पेश रिटर्न बीजों ने वैज्ञानिकों के बीच शोध को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है। यूरोपियन व सोवियत संघ और ब्रिटेन, भारत के कृषि वैज्ञानिको ने तो इसे इस दिशा में प्रयास करने की बात कहीं लेकिन वेस्टर्न सांइटिंस्ट इस खोज के प्रति ज्यादा उत्साह नही दिखा पाये है।
दूसरी हरित क्रांति के लिए संभावनाएँ खुलीः स्पेश रिटर्न बीजों से आए चैकाने वाले परिणामों पर गौर करे तो इस शोध में खाद्यान्न संकट से निजात दिलाने के बीज देखे जा सकते है, भारतीय और चीनी कृषि वैज्ञानिको का यह प्रयास प्रमुख खाद्यान्न फसलो में भी रंग लाया तो निश्चित ही कृषि क्षेत्र में दूसरी हरित क्रांति की दरकार को पूरा कर सकती है। रिसर्चर लो जिगैंग के बयान पर गौर करे तो कुछ ऐसा साही प्रतीत होता है। उनका कहना है, कि परम्परागत खेती का जितना विकास होना था, हो चुका है, अब बारी स्पेश सीड़ की है।
सौरभ पवांर, panwar_golufan@yahoo.in लोहारी.कुक्षी.धार, म.प्र.
B.Sc. Agriculture, जयपुर, राजस्थान।