सीरवी समाज - मुख्य समाचार

Posted By : Posted By Mangal Senacha on 02 Jan 2010, 11:07:29

जोधपुर। बाड़मेर का मंगला तेल क्षेत्र जहां केयर्न इण्डिया के लिए धनवर्षा लेकर आया है, वहीं कई मामलों में तेल के इस अकूत खजाने ने तेल दोहन करने वाली कम्पनी के लिए अड़चनें भी खड़ी की हैं। केयर्न-वेदांता करार के मामले में भी राजस्थान ब्लॉक ही फिलहाल सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।
दरअसल, केयर्न इण्डिया का यह ब्लॉक देश में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा ऑयल फील्ड है। यहां से फिलहाल तेल उत्पादन भी प्रचुर मात्रा में किया जा रहा है, लेकिन राजस्थानी तेल की रॉयल्टी को लेकर इन दिनों केयर्न इण्डिया और इसकी सहयोगी कम्पनी ओएनजीसी के बीच टसल चल रही है। ओएनजीसी अब रॉयल्टी सम्बन्धी समझौता नए सिरे से तैयार करने और रॉयल्टी की जिम्मेदारी केयर्न की जगह लेने वाले वेदांता समूह पर भी डालने की मांग कर रही है। फिलवक्त पुराने समझौते के मुताबिक राजस्थानी तेल की पूरी रॉयल्टी ओएनजीसी को ही चुकानी पड़ रही है, जबकि इस ऑयल फील्ड में केयर्न की 70 प्रतिशत और ओएनजीसी की 30 फीसदी की हिस्सेदारी है।
हो सकती है देरी
जानकारों का मानना है कि रॉयल्टी विवाद को निपटाए बगैर कोई सौदा मुकम्मल होना मुश्किल है। लिहाजा केयर्न और वेदांता के बीच पांच महीने पहले घोषित करार को भी सरकारी मंजूरी मिलने में फिलहाल कुछ और वक्त लग सकता है।
पहले भी करवाई देरी
मंगला तेल क्षेत्र ने अपनी ऑपरेटर कम्पनी केयर्न की योजना में पहले भी देरी करवाई है। मसलन कम्पनी ने यहां वर्ष 2009 की पहली तिमाही में तेल दोहन शुरू करने की योजना बनाई थी, लेकिन छोटी-बड़ी अड़चनों के कारण तारीखें पड़ती गई और आखिर 29 अगस्त 2009 को तेल उत्पादन शुरू हो पाया। इसके बाद निजी क्षेत्र के खरीदारों को नामित करने में भी देरी हुई तथा अब अगस्त 2010 से केयर्न-वेदांता सौदा अटका पड़ा है।
साभार - राजस्थान पत्रिका