सीरवी समाज - मुख्य समाचार

Posted By : Posted By Mangal Senacha on 30 Nov 2010, 10:24:08

पाली पैसे बचाने के लालच में फल विक्रेता आम जन की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। फलों को पकाने के लिए इथलीन (लिक्विड) का उपयोग होना चाहिए, लेकिन उसके महंगे होने के कारण विक्रेता वेल्डिंग के काम आने वाली कैल्सियम कार्बाइट गैस से फलों को पका रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कैल्सियम कार्बाइट गैस किडनी व आंत को नुकसान पहुंचा सकता है। ज्यादा सेवन व्यक्ति को लकवा से भी ग्रसित कर सकता है। जानकारी के अभाव में पाली में प्रतिदिन हजारों किलों फलों की खरीदी सर्दी के हैल्दी सीजन में शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए लोगों द्वारा की जा रही है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस हकीकत से चिकित्सा विभाग के अवगत होने के बावजूद कोई ठोस कदम विभाग द्वारा इनके खिलाफ नहीं उठाया जा रहा है।
लालच
फलों को पकाने के लिए इथलीन (लिक्विड) का उपयोग होना चाहिए, लेकिन उसके महंगे होने के कारण विक्रेता वेल्डिंग के काम आने वाली कैल्सियम कार्बाइट गैस से पका रहे हैं फल। थोड़े पैसे बचाने का लालच लोगों को बीमार कर सकता है।
खतरा
विशेषज्ञ बताते हैं कि कैल्सियम कार्बाइट गैस किडनी व आंत को नुकसान पहुंचा सकता है। ज्यादा सेवन व्यक्ति को लकवा से भी ग्रसित कर सकता है।
अनदेखी
हैल्दी सीजन में शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए लोग प्रतिदिन फलों का सेवन कर रहे हैं। जानकारी के अभाव में वे कैल्सियम कार्बाइट से पके फलों को खाकर बीमारियों को न्यौता दे रहे हैं।
लापरवाही
जिले में प्रतिदिन हजारों किलों फल बिक रहे हैं। ये कैसे पकाए जा रहे हैं इसको लेकर चिकित्सा महकमा के पास भी पूरी जानकारी नहीं है। विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
जटिल प्रक्रिया के कारण हो रहे विमुख
बात शहर की करें तो यहां प्रतिदिन के हिसाब से करीबन दो हजार किलो केले, डेढ हजार किलो सीताफल तथा इतने ही चीकू
बाजार में बिकने आते हैं। जिले भर में यह आंकड़ा पांच गुना से अधिक हो जाता है। बाहर से आयातित फलों को समय से पहले तोड़ा जाता है। यहां लाकर कैल्सियम कार्बाइट से पकाया जाता है। कैल्सियम कार्बाइट (पाउडर के रूप में) से इसेटिलीन गैस निकलती है, जिसमें ऊष्मा पाकर फल पकते हैं। यह गैस मुख्य रूप से वेल्डिंग के काम आती है। फलों को पकाने में इथलीन (लिक्विड) का भी उपयोग होता है। यह कार्बाइट की तरह नुकसानदेह नहीं होता, लेकिन महंगा होने से फल विक्रेता इसका उपयोग कम करते हैं। कार्बाइट से पकने वाले केलों पर दाने नजर नहीं आते। यह प्लेन होते है। पहले पाल लगाकर फलों को प्राकृतिक तरीके से पकाया जाता था, लेकिन फलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने समेत विभिन्न कारणों से जल्दी पकाने के लिए कैल्सियम कार्बाइट का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है। पहले प्राकृतिक तरीके से फल पकाने के लिए फलों को एक स्थान पर इक_ा कर आग से भी उष्मा दी जाती थी, लेकिन यह प्रक्रिया जटिल होने के साथ साथ समय भी अधिक लेती थी।
फलों की गुणवत्ता पर असर
सर्दी के सीजन में सेहत के लिए मौसमी फलों की आवक बाजार में शुरू हो गई है। पके हुए ताजा फलों का स्वाद किसे रास नहीं आता, लेकिन पकने के तरीकों से फलों की गुणवत्ता पर फर्क पड़ता है। फलों को दो प्रकार की श्रेणियों में रखा गया है। पेड़ पर पकने वाले व पेड़ से तोड़कर पकाए जाने वाले फल। पेड़ से तोड़कर पकाए जाने वाले फलों में कैल्शियम कार्बाइट का इस्तेमाल किया जाता है। इससे फल जल्दी पक तो जाते है, लेकिन उनकी पौष्टिकता पर असर पड़ता है। इसका सेवन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर भी डाल सकता है। जिला मुख्यालय पर गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों से फलों का आयात होता है। इनमें मुख्य रूप से सीताफल व केले शामिल हैं।
साभार दैनिक भास्कर