सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 27 Nov 2010, 10:39:33
जोधपुर। अधिकतर लोग हमें टीबी का डॉक्टर मानते थे, लेकिन अब यह धारणा धीरे धीरे बदल रही है। वैसे भी हमारे आउटडोर में टीबी के मरीज 10 से 15 फीसदी ही रह गए हैं। बाकी दमा, अस्थमा, सीओपीडी, सार्कोडिस, लंग फाइबर, लंग हारपरटेंशन से पीडित रोगी सामने आ रहे हैं।
यह कहना है मुंबई स्थित नानावटी अस्पताल में इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत छाजेड़ का। उन्होंने शुक्रवार को यहां 'राजस्थान पत्रिका' से बातचीत में बताया कि लोगों में अब एलर्जिक बीमारियां अधिक हो रही हैं। वायु प्रदूषण और जंक फूड खाने से बड़ों के साथ ब"ो भी दमा, अस्थमा जैसी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।
खराटें हैं खतरनाक
नींद में खर्राटे (ऑब्सट्रेक्टिव स्लीप एपनिया) आने को भी लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, जबकि इस बीमारी में ट्रेकिया सिकुड़ जाती है और फेफड़ों में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंचने से मैटाबॉलिक स्ट्रेस हो जाता है। इसमें व्यक्ति सोने के बावजूद (क्वालिटी ऑफ स्लीपिंग) सोया हुआ नहीं रहता है।
फेफड़ों के कैंसर का इलाज मुश्किल
पीजीआई चण्डीगढ से आए डॉ. आशुतोष अग्रवाल ने बताया कि पहले चेस्ट फिजिशियन में पीजी के दौरान केवल टीबी की पढ़ाई करवाई जाती थी और हम लोग भी 90 फीसदी रोगियों को टीबी का इलाज देते थे, लेकिन अब ऎसा नहीं रहा। वैसे अब श्वास रोग से सम्बन्धित कई बीमारियों का उपचार सम्भव हो सका है, लेकिन फेफड़ों के कैंसर में उपचार को लेकर अब भी दिक्कत आ रही है।
एक्स-रे में केवल सफेदी दिखती है
नेपाल की राजधानी काठमाण्डू स्थित नार्वे इंटरनेशनल अस्पताल से आए डॉ. रमेश चौखानी ने बताया कि चेस्ट फिजिशियन एक्स-रे के साथ सीटी स्कैन से अच्छा उपचार कर सकते हैं। एक्स-रे में केवल सफेदी दिखने से पहले हर कोई टीबी का इलाज दे देता था। अब ईयूबीएस (एण्डो ब्रोंकियल अल्ट्रासाउण्ड) जैसी तकनीक से रक्त की जांच कर बीमारी का पता लगाया जा सकता है। वैसे नेपाल में तो अभी तक ईयूबीएस की सुविधा नहीं है।
साभार- राजस्थान पत्रिका