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न्यूयॉर्क। यूनेस्को ने राजस्थान के कालबेलिया लोक नृत्य, आदिवासियों के पारंपरिक छाऊ नृत्य और केरल के मुडियेट्टू नृत्य नाट्य को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया है। यूनेस्को की सालाना सूची में उन परफॉर्मिग आर्टस को शामिल किया गया है जो अद्भूत हैं लेकिन जिन्हें सपोर्ट की जरूरत है। सूची में जगह बनाने के लिए पेकिंग ओपेरा और ईरान की कालीन बुनाई भी दौड़ में थी।
केन्या की राजधानी नैरोबी में 15 नवंबर से 19 नवंबर तक इस सूची को अंतिम रूप देने के लिए अंतरसरकारी समिति की बैठक हुई। संयुक्त राष्ट्र की इस सांस्कृतिक शाखा को दुनिया भर के पारंपरिक गीतों, नृत्यों और सांस्कृतिक कलाओं के 51 प्रस्ताव दो सूचियों के लिए मिले थे। सूची में शामिल होने के लिए 31 देशों से प्रस्ताव मिले थे।
यह होगा फायदा
यूनेस्को की सूची में शामिल होने के बाद इन परफॉर्मिग आर्टस पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकेगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी मिलेगा। सूची में शामिल होने के बाद संयुक्त राष्ट्र का समर्थन करने वाली सभी 132 सदस्य देशों के लिए यह अनिवार्य हो जाएगा कि इन कलाओं को सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए कानूनी और वित्तीय कदम उठाए।
संगीत नाटक अकादमी की कोशिश रंग लाई
संगीत नाटक अकादमी ने इन अभिनय कलाओं की स्थिति को लेकर एक सर्वे कराया था। सर्वे में पता चला था कि अगर इन अभिनय कलाओं को वित्तीय मदद नहीं मिली तो ये धीरे धीरे मृत हो जाएगी।
कालबेलिया राजस्थान का समुदाय है। यह समुदाय आर्थिक पिछड़ेपन से ग्रस्त है। इससे उनकी यह अनूठी नृत्य कला प्रभावित हो रही है। छाऊ नृत्य अपने सजावटी मुखौटों के लिए मशहूर है। यह उड़ीसा, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल के जनजातीय इलाकों में काफी प्रचलित है। मुडियेट्टू केरल का 250 वर्ष पुराना धार्मिक नृत्य नाट्य है। इसमें फर्श पर रंगोली बनाई जाती है। इसकी प्रस्तुति मुखौटे लगाकर होती है। कभी यह कला भलीभांति संरक्षित थी। अब केवल तीन परिवार इसकी नियमित प्रस्तुति से जुड़े हुए हैं।
साभार - राजस्थान पत्रिका
(uploaded by Mangal Senacha,Bangalore, on 18 Nov. 2010 at 10.54AM )