सीरवी समाज - मुख्य समाचार

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पाली। खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र में कई बच्चे अपराध का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। जिस तेजी से नाबालिगों में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है, उससे न सिर्फ पुलिस की नींद उड़ गई है, बल्कि खुफिया तंत्र भी खासा चिंतित है। माता-पिता भी इसे लेकर बेहद परेशान हैं। पुलिस चाह कर भी अंकुश नहीं लगा पा रही। मनोचिकित्सक की मानें तो बच्चों में बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति को समय रहते नहीं रोका गया तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
केस एक
सिरियारी थाना क्षेत्र के गुड़ा दुर्जन गांव में दीपावली के दिन नाबालिग बालिका की हत्या कर शव नदी में फेंक दिया गया था। दस दिन तक मशक्कत के बाद पुलिस ने इस मामले में गांव के एक नाबालिग किशोर को पकड़ा। उसने बालिका के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या करना कबूला। मामले के राजफाश के लिए पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी।
केस दो
शहर के एक एटीएम से गत 24-25 अक्टूबर को एक युवती के एटीएम कार्ड से किसी ने पचास हजार रूपए निकाल लिए। कोतवाली पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की तो पुलिस के कान खड़े हो गए। इस वारदात को अंजाम देने वाला नाबालिग लड़का निकला। वारदात को खोलने में पुलिस को ऎडी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। जांच में खुलासा हुआ कि वह लड़का पूर्व में भी इस तरह का कृत्य कर चुका है।
केस तीन
जैतारण थाना क्षेत्र के बिरोल गांव में एक व्यक्ति ने उसकी पुत्री के अपहरण का मामला गत दिनों पुलिस थाने में दर्ज कराया था। मामले की तह तक जाने के बाद पुलिस ने नाबालिग किशोर को पकड़ा। पकड़े गए नाबालिग किशोर पर बलात्कार के प्रयास का आरोप भी लगा। वह उसी गांव का निकला। घटना को लेकर पुलिस व ग्रामीण भी हैरान रह गए।
मनोचिकित्सक का मत
नाबालिगों में अपराध की भावना बढ़ने को लेकर मनोचिकित्सक डॉ. एस.के. आगीवाल का कहना है कि कम हो रहे धार्मिक व नैतिक संस्कारों से ऎसा हो रहा है। साथ ही, भाग-दौड़ की जिंदगी के कारण अभिभावक बच्चों को समय नहीं दे पाते। ऎसे में बच्चों का ध्यान इस तरफ खिंच जाता है। समाज का बदलता ताना-बाना भी इसके लिए जिम्मेदार है। बच्चों में सफलता के शॉर्टकट अपनाने की भावना बढ़ने से वे अपराध की घटनाओं को अंजाम देते हैं। डॉ. आगीवाल का कहना है कि बच्चों की ऎसी गलतियों से परेशान माता-पिता अब बच्चों को लेकर मनोचिकित्सक के पास पहंुचने लगे हैं।
टीवी संस्कृति भी जिम्मेदार!
इस संबंध में बुजुर्गोü का मानना है कि कुछ हद तक इसके लिए टीवी संस्कृति भी जिम्मेदार है। टीवी पर आपराधिक दृश्य देखकर बच्चों की मानसिकता उनकी नकल करने की होती है। परिणामस्वरूप बच्चों के आपराधिक वारदातों के मामले बढ़ रहे हैं। घर के बड़ों को बच्चों की पसंद पर नजर रखनी चाहिए।
पुलिस की राय
इस सम्बन्ध में पुलिस उपअधीक्षक राजेन्द्र सिंह सिसोदिया का कहना है कि भौतिक चकाचौंध के कारण बच्चों में अपराध की भावना जगती है। बच्चे खासकर लूट, चोरी की वारदात कर अपनी आवश्कताओं की पूर्ति करने का प्रयास करते हैं। माता-पिता में बढ़ रहे झगड़ों के कारण भी बच्चों पर विपरीत असर पड़ता है। इस कारण भी वे अपराध का रास्ता पकड़ लेते हैं। बड़े-बुजुर्गोü का मार्गदर्शन नहीं मिलना, बच्चों को नजर अंदाज करना भी बाल अपराध बढ़ा रहा है। उनका कहना है कि ऎसे मामले पुलिस के लिए भी मुश्किल खड़ी कर रहे हैं।
ऎसे रूक सकते हैं बाल अपराध
*अभिभावक अपने बच्चों को समय दें।
*बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें।
*बच्चों को धार्मिक व नैतिक संस्कारों का ज्ञान दिया जाए।
*माता-पिता अपने झगड़े बच्चों से दूर रखें।
*बच्चों को नजरअंदाज नहीं करें।
*बड़े-बुजुर्गो का सानिध्य मिले।
साभार, राजास्थान पत्रिका
uploaded by Mangal Senacha,Bangalore, on 15 Nov. 2010 at 2.19PM )