'एक राष्ट्र एक चुनाव' के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष नियुक्त किए जाने पर अखिल भारतीय सिर्वी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पाली लोकसभा के लोकप्रिय सांसद और कर्मठ व्यक्तित्व के धनी श्री PP Chaudhary साहब जी को अपार बधाई एवं शुभकामनाएं।
आदरणीय मोदी जी और भाजपा से मिली हर जिम्मेदारी का निर्वहन आपने हमेशा बखूबी से किया है, इस महत्वपूर्ण कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी आप राष्ट्र हित में सकारात्मक एवं अतिशीघ्र परिणाम देंगेl इस समिति में लोक सभा से 21 सदस्य में
भाजपा के सदस्य,3 एनडीए सदस्य
और
3 कांग्रेस सदस्य और 5 समाजवादी पार्टी
कुल 31 सदस्य की जेपीसी टीम में श्री P P Chaudhary साहब को अध्यक्ष नियुक्त किया l
'एक देश-एक चुनाव' के लिए JPC गठित, अनुराग ठाकुर, प्रियंका गांधी समेत 31 सदस्य शामिल जिस में 21 सदस्य लोक सभा और 10 सदस्य राज्य सभा
एक देश-एक चुनाव के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी (जेपीसी) का गठन हो गया है. 21 सदस्यों की जेपीसी में अनुराग ठाकुर और प्रियंका गांधी जैसे सांसदों का नाम शामिल है. इस कमेटी की अध्यक्षता बीजेपी सांसद पी. पी. चौधरी करेंगे.
*जेपीसी में शामिल ये नाम
1. पी.पी. चौधरी (BJP)
2. डॉ. सीएम रमेश (BJP)
3. बांसुरी स्वराज (BJP)
4. परषोत्तमभाई रूपाला (BJP)
5. अनुराग सिंह ठाकुर (BJP)
6. विष्णु दयाल राम (BJP)
7. भर्तृहरि महताब (BJP)
8. डॉ. संबित पात्रा (BJP)
9. अनिल बलूनी (BJP)
10. विष्णु दत्त शर्मा (BJP)
11. प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस)
12. मनीष तिवारी (कांग्रेस)
13. सुखदेव भगत (कांग्रेस)
14. धर्मेन्द्र यादव (समाजवादी पार्टी)
15. कल्याण बनर्जी (TMC)
16. टी. एम. सेल्वागणपति (DMK)
17. जीएम हरीश बालयोगी (TDP)
18. सुप्रिया सुले (NCP-शरद गुट)
19. डॉ. श्रीकांत एकनाथ शिंदे (शिवसेना- शिंदे गुट)
20. चंदन चौहान (RLD)
21. बालाशोवरी वल्लभनेनी (जनसेना पार्टी)
क्या करेगी जेपीसी?
सरकार ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा है. JPC का काम है इस पर व्यापक विचार-विमर्श करना, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करना और अपनी सिफारिशें सरकार को देना. वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष कहते हैं, 'JPC की जिम्मेदारी है कि वह व्यापक परामर्श करे और भारत के लोगों की राय को समझे.'
ONOE बिल पर चर्चा क्यों हो रही?
यह बिल भारत के संघीय ढांचे, संविधान के मूल ढांचे, और लोकतंत्र के सिद्धांतों को लेकर बड़े पैमाने पर कानूनी और संवैधानिक बहस छेड़ चुका है. आलोचकों का कहना है कि राज्य विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ कराने से राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा और सत्ता के केंद्रीकरण की स्थिति बनेगी. कानूनी विशेषज्ञ यह भी देख रहे हैं कि क्या यह प्रस्ताव संविधान की बुनियादी विशेषताओं, जैसे संघीय ढांचा और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व, को प्रभावित करता है.