सीरवी समाज - मुख्य समाचार

Posted By : 09 Nov 2024, 13:27:21गोविन्द सिंह रोबड़ी

जन्मतारीक का गड़बड़झाला
हमारा जमाना भी क्या जमाना था। बचपन में घर बाहर में ही धूम धमाचौकड़ी करते रहते और पांच बरस के होते होते फिर कहीं स्कूल की बात माता-पिता को याद आती थी। स्कूल भी सरकारी होते थे और बस घर में से कोई भी जाकर प्रवेश करा देता था। हमारे साथ भी यही हुआ । हमारी उम्र के सभी लोगों के साथ लगभग यही हुआ है। पिताजी ने एक भाई को कह दिया कि इसका स्कूल में नाम लिखा दो, अंगुली पकड़कर हम चल दिये स्कूल। हेडमास्टर ने कहा कि फार्म भरो। फार्म में पूछा गया कि जन्मतारीख क्या है? अब भाई को कहाँ याद जन्मतारीख क्या है? पहले की तरह हैपी बर्थडे का रिवाज तो था नही। बस माँ ने बताया कि फलां तिथि पर हुई थी। भाई को जो याद आया वह लिखा दिया गया। तारीख भी और वर्ष भी। आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा। हमारी पढ़ाई शुरू हो गयी, एक जन्म तारीख भी लिख दी गयी, कागजों पर।
लेकिन जब आठवीं कक्षा में पहुंचे तब पता लगा कि हम आठवीं की बोर्ड परीक्षा नहीं दे सकते क्योंकि उम्र कम है। पिताजी पढाई के प्रति जागरूक थे तो आनन-फानन में नए कागजात में जन्मपत्री बनाई गयी और अब हमारी जन्म तारीख बदल गयी।
माँ कहती कि तुम्हारा जन्म जून महीने में हुआ है और स्कूल कहता कि 10 महीने पहले अप्रैल में हुआ है। जैसे-जैसे हम बड़े हो रहे थे जन्मदिन मनाने की प्रथा भी बड़ी हो रही थी। हमें लगता कि हमे तो माँ ने जो बताया है उसे ही जन्मदिन मानेंगे लेकिन स्कूल में जो दर्ज था लोग उसी दिन बधाई दे देते। इतना ही नही तिथि तो अपनी गति से आती और अंग्रेजी कलेण्डर से आगे-पीछे हो जाती, अब तिथि और तारीख में भी झगड़ा होने लगा हमने फिर पंचांग का सहारा लिया और असली तारीख ढूंढ ही डाली। वास्तविक जन्मपत्री भी मिल गयी तो तारिक पक्की हो गयी।
लेकिन कठिनाई यह है कि सरकारी कागजों में जन्म तारीख कुछ और है और हमारे मन में कुछ और सरकारी कागजों की तारीख याद रहती भी नहीं, लेकिन कभी-कभी अचानक से कोई कह देता है कि जन्मदिन की बधाई तो हम बगलें झांकने लगते है कि आज? आपके साथ भी होता ही होगा। कल ऐसा ही हुआ, चुनाव आयोग का बीएलओ आया। उसने कहा कि मतदाता सूची आनलाइन हो रही है तो आपको कुछ बदलाव कराने हों, वे करा सकते हैं। जन्म तारीख की जब बात आयी तो ध्यान आया कि यहाँ तो सरकारी ही लिखवानी है। मैने बताया की 20 अप्रैल तो वह युवा एकदम से बोल उठा कि अभी से जन्मदिन की बधाई दे देता हूँ। मैं चौका, लेकिन मुझे ध्यान आ गया और उसकी बधाई स्वीकार किया।
लेकिन ठाट भी हैं कि मैं जब चाहे बधाई स्वीकार कर लेता हूँ, ज्यादा सोचने का नहीं। कौन से जन्मदिन पर तीर मारने हैं। ना तो हम अनोखे लाल हैं जो हमने धरती पर आकर किसी पर अहसास किया है ओर ना ही हमारे जाने से धरती खाली हो जाएगी। लेकिन जन्मदिन मनाते समय एहसास जन्म लेता है कि चलो एक दिन ही सही, कोई हमें विशेष होने का अवसर तो देता हैं। नहीं तो हमारे आने की सुचना थाली बजाकर भी नहीं दी गयी थी। लेकिन माँ बहुत खुश थी, पिताजी भी खुश थे। हम उन्हीं की ख़ुशी लेकर बड़े होते रहे और अब अपने जमाने की रीत के कारण दो-तीन जन्मदिन मना लेते हैं। सोच लेते हैं कि क्या कुछ अच्छा कर पाए या यूँ ही बोझ बढ़ाते रहे। अभी बधाई मत देना, अभी जन्मदिन दूर हैं।
मनोहर सीरवी सुपुत्र श्रीरतनलाल जी राठौड़ (जनासनी - मैसूर)
पूर्व सम्पादक सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम