सीरवी समाज - मुख्य समाचार
सब पढे...सब सोचे.. । - राज राठौड़ के विचार
Posted By : Posted By कानाराम परिहार कालापीपल on 04 Oct 2015, 15:03:28
जय श्री आई माता जी की सभी आदरणीय बन्धुगणों को ।
कल ही भारत के प्रधानमंत्री जी ने महिला सशक्तिकरण पर कुछ शब्द फेसबुक के हेडक्वाटर से कहे कि आज के दौर में समाज और देश के विकास के लिए जितनी भूमिका पुरुषो की उतनी ही बराबर भूमिका महिलाओं की भी हो यह सुनिश्चित होनी चाहिए ।
हम भी चाहते आज समाज के निर्णयों में महिलाये भी स्वतंत्र भूमिका बिना किसी असहजता से निभाए इसके लिए सहज माहौल देना आवश्यक है ।
टेक्नोलॉजी के इस दौर में इंटरनेट के माध्यम से हम सब का एक मंच पर जुड़े रहना बहुत बढ़िया जरिया है जिससे एक दूसरे के मध्य तालमेल बनाने, सामंजस्य बनाने में सुविधा होगी व् विचारों का फैलाव होगा ।
एक भी व्यक्ति विषय को पढ़कर प्रभावित होता है तो …..चर्चा सार्थक
समाज की बहनों को भी प्रेरित कर सोशल मीडिया से जोड़ने कोशिश करे ताकि एक बेहतर प्लेटफार्म बने सामाजिक विचार विमर्श का ।
समाज की आज की पीढ़ी लगभग पढ़ी लिखी है ,सब उच्च शिक्षित ना सही कम पढ़े लिखे भी है पर समाज के लिए कोई कम नहीं है सबमे अपना अपना हूनर है ,सबकी अपनी सोच और विचार है तो क्यों ना उन विचारों से समाज भी रूबरू हो …शायद उनके विचार और सोच सबसे बढ़िया हो …
साथ ही समाज की बहनों को हर सामाजिक चर्चा में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि
कुछ आज को बदले
और
बहुत कुछ बेहतर कल के लिए तैयार करे ।
झिझक (hesitation) को ख़त्म कर सबको प्रेरित करना और समाज की मुख्य धारा से जोड़ लिया जाए तो लक्ष्य दूर नहीं ।
मैं जब से सोशल मीडिया से जुड़ा तब से इन विषयों को रखता रहा कि सामाजिक चर्चाओ में सब के विचारों को जगह दी जाए ।
ऐसे युवा संगठन बनाने की भी बात की जिसमे ना सिर्फ लड़के बल्कि लड़कियों को भी बराबर का सदस्य बना कर साल में 2-3 मीटिंग हर बढेर या सीरवी बाहुल्य स्थान पर की जाए और उस मीटिंग में समाज के बड़े बुजुर्ग के साथ युवा भी भाग ले ,
समाज के हर नागरिक को अपने विचार रखने की आज़ादी … और आज़ादी से ज्यादा माहौल बने कि सब अपनी बात रख सके ।
(बड़ो का कर्तव्य है युवा को ऐसी सामाजिक चर्चा में घर के सारे युवाओं को मीटिंग में भाग लेने के लिए प्रेरित करे , और युवा की जिम्मेदारी है सामाजिक मीटिंग में भाग लेना )
यही अवसर है कि बड़े और अच्छे बुजुर्ग बनकर युवाओं को अवसर दे ।
(महिलाओं को सिर्फ महिला ना समझ के समाज के लिए उतना ही महत्वपूर्ण माने जितना पुरुष की भूमिका होती है )
जब तक युवाओं को समाज के बड़ों की मीटिंग में भागीदार नहीं बनाया जायेगा
जब तक हर सामाजिक मीटिंग में महिलाओं की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जायेगी तब तक पीढ़ियों की खाई जैसी की तैसी ही रहेगी।
और जब तक पीढ़ी की खाई कम नहीं होती तब तक सामजिक ढर्रे ऐसे ही चलते रहेंगे ।
आज की पीढ़ी बड़े बुजुर्गो के नियमों से पूर्ण संतुष्ट नहीं और आने वाली पीढ़ी हमारे नियम से संतुष्ट नहीं होगी ।
आजकल संयुक्त परिवार की परम्परा नगण्य हो चुकी है ,
सब यह सोचते कि अलग रहेंगे तो आज़ादी रहेगी ,
वो बहुत बड़ी भूल है उन लोगो की जो सोचते अलग रहेंगे तो आज़ाद रहेंगे …
जो आज़ादी ,फ्रीडम संयुक्त पतिवार में मिलता वो एकल में कहाँ ??
जब
परिवार सिमित हो गया तो फ्रीडम किस चीज़ का ??
रिश्तों में तालमेल कैसे बने ??
पारिवारिक ईर्ष्या से निजात पाने का कोई तरीका ?
इस पर सोचना आवश्यक है ।
एक बात है
राइ पर राइ कभी नहीं ठहरेगी
इसलिए
किसी भी पारिवारिक रिश्तों में वाद -विवाद (Argument) की जगह ही नहीं होनी चाहिए …
पारिवारिक मामलो में कही compromising तो कही sacrifices भी जरुरी है ।
जिद्द और अकड़ से हम खुद को तोड़ेंगे ।
इसके लिए पारिवारिक मामलो में arguments की बजाय convince करने को प्राथमिकता दी जाए तो ..नतीजे बेहतर मिल सकते है ।
इसके लिए भी motivation की जरुरत है
दोनों पीढ़ियों के generation gape को कम भी किया जा सकता है
इसके लिए वास्तविक पटल पर प्रयास भी करने चाहिए ।
जैसे मैंने कहा युवाओं का संगठन सीरवी बाहुल्य क्षेत्र या बढ़ेरों में मीटिंग करे और
उसमे दोनों पीढ़िया भाग ले (बड़े – बुजुर्ग और युवा पीढ़ी) और उनके साथ चर्चा की जाए तो बेहतर परिणाम निकल सकते है।
---राज राठौड़