सीरवी समाज - मुख्य समाचार

राष्ट्रीय कवि मुकेश जी मोलवा "सिर्वी" का अभिनन्दन सीरवी समाज मे खुशी की लहर
Posted By : Posted By कानाराम परिहार कालापीपल on 12 Jun 2015, 10:13:15
""श्री मोलवा का अभिनन्दन"" बड़नगर- अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा नईदिल्ली शाखा बड़नगर के द्वारा आयोजित महाराणा प्रताप जयंती शौर्ययात्रा और सम्मान समारोह में क्षत्रिय कुलरत्न हिन्दूसमाज के गौरव राष्ट्रीय कवि मुकेश जी मोलवा "सिर्वी" का अभिनन्दन क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफ.शिवराम सिंह जी गौर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री भेरूसिंह जी चौहान, राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष अवनीशसिंह जी, बदनावर विधायक भँवरसिंह जी शेखावत, मान्धाता विधायक लोकेन्द्रसिंह जी तोमर, पूर्व विधायक बड़नगर वीरेंद्रसिंह जी सिसौदिया द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रह्लादसिंह जी सोलंकी भाजपा जिला उपाध्यक्ष धार, नरेंद्र सिंह जी राजपुत अध्यक्ष जिला पंचायत देवास, सुरेन्द्रसिंह जी सिसौदिया पूर्व विधायक बड़नगर, कान्हसिंह जी राठौर पूर्व सभापति जिला पंचायत उज्जैन, तेजसिंह जी राठौर भाजयुमो जिलाध्यक्ष बड़नगर सहित क्षत्रिय समाज के विभिन्न पदाधिकारी उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री मोलवा के द्वारा काव्यपाठ के माध्यम से हिंदुत्व के प्राणपुरुष महाराणा प्रताप का यशोगान कर ओवैसी जैसे देशद्रोही को चेतावनी दी गयी। श्री मोलवा की कविताओ ने ऐसा समां बांधा की पूरा वातावरण जय मेवाड़। महाराणा प्रताप की जय और जयश्री राम से गुंजित हो गया। स्वागताध्यक्ष श्री दिलीपसिंह जी ने कवि मोलवा जी का स्वागत किया तथा परिचय कार्यक्रम संयोजक डॉ नरेंद्रसिंह राजावत ने करवाया । इस मौके पर सुरत से सीए श्री पी डी साहब ने हमे भेजा यह सन्देश "यह जानकर बहुत गर्व हो रहा है कि हमारे सीरवी समाज मे श्री मुकेशजी मोलवा"सिर्वि" जैसे राष्ट्रीय स्तर के कवि भी है और हमारे समाज के गौरव बनकर सच्ची राष्ट्र और समाज सेवा कर रहे है. सच्ची कविता अपने स्त्रोत से, उद्गम से और प्रस्थान से ही मनुष्य और समाज सापेक्ष होती है, जितनी स्थानीय होती है उतनी ही वैश्विक होती है और वही उसकी सच्ची राष्ट्रीयता है। उसकी अलग से कोई ‘राष्ट्रीय’ कोटि नहीं होती क्योंकि राष्ट्र मूलतः एक मनुष्य समाज होता है। इसलिए राष्ट्रीय कविता का अर्थ सुजलाम सुफलाम तक या वीरों की स्तुतिगान तक सीमित नहीं किया जा सकता। ऐसी कविता भी यदि कविता है तो सिर्फ कविता ही होगी। राजनैतिक-सामाजिक सांस्कृतिक सवालों और हलचलों से टकराती हैं, उनसे प्रतिकृत होती हैंऔर तथाकथित ‘राष्ट्रकवियों’ की कविता से अलग कहीं अधिक वास्तविक सवालों को उठाती हैं या उन पर विमर्श संभव करती हैं। अपनी काव्यकला के साथ और संवेदना और भाषा की शक्तियों के साथ। या यों ही अपनी गहन व्याकुल प्रखरता के साथ। मुकेशजी मै कालेज से ही कविता प्रेमी रहा हू लिखने का शौक कालेज के जमाने से ही है और कविता मे प्रयुक्त शब्दों की हृदयस्पर्शी मार्मिकता को समझता हू .मेरे अजीज मित्र कानारामजी जानते है कालेज के जमाने मे एक साहित्य लिखा था.लेकिन सीए के पेशे ने लेखनी से थोडा दूर कर दिया फिर भी व्यस्तता से समय मिला लो कवि सम्मेलन मे जरूर आऊगा.''