Posted By : साभार - नवभारतटाइम्स.कॉम  
	
	
डॉक्टर एस . शंकर सिंह  ( नवभारतटाइम्स.कॉम )
ज्ञान और अज्ञान का अंतर बहुत भ्रम पैदा करने वाला है। एक ज्ञान वह है जो हमें साधु , महात्मा , उपदेशक , प्रवचनकर्ता बताते हैं। हालांकि आजकल प्रवचनकर्ताओं की बाढ़ आई हुई है। आत्मा परमात्मा की बातें की जाती हैं। कहा जाता है कि यह दुनिया माया है। इस माया को छोड़ कर एक अदृश्य परमात्मा जिसके अस्तित्व के बारे में कुछ भी पता नहीं है , को प्राप्त करने में ध्यान लगाना चाहिए। सांसारिक चीज़ों से विमुख होकर ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए। मान लीजिए अगर एक ईश्वर या सृष्टिकर्ता मौजूद है तो उसने तो सृष्टि के सृजन का काम कर दिया , अब बार - बार उसे क्यों परेशान किया जाए। हम अपने कर्त्वय का निर्वाह क्यों न करें। जो प्रवचनकर्ताओं को सुनने जाते हैं , वह पता नहीं कितना उनकी बातों का अनुपालन करते हैं कि नहीं। 
इतने सब प्रचार और प्रसार के बावज़ूद देश में अत्याचार , अनाचार , लूट मार , भ्रष्टाचार , धोखा धड़ी , व्यभिचार , ग़रीबी , बीमारी , भुखमरी , अराजकता , परस्पर संघर्ष बढ़ता जा रहा है। कवि नीरज जी के शब्दों में है ना , ' कदम कदम पर मंदिर मस्जिद कदम कदम पर गुरुद्वारे , भगवानों की बस्ती में हैं ज़ुल्म बहुत इंसानों पर ' । हमारे संत , महात्मा , स्वामी , प्रवचनकर्ता हमें पलायनवाद का उपदेश देते हैं। कहा जाता है सब कुछ छोड़कर केवल एक अज्ञात शक्ति ' भगवान ' जिसके अस्तित्व का कुछ अता पता नहीं , में ध्यान लगाओ . मोक्ष और निर्वाण प्राप्त करने का यही एक तरीका है। भगवान अगर हैं तो क्या वे चाहेंगे कि सारा समय उनके ध्यान में बर्बाद किया जाए ? भगवान ने हमें बना दिया , अब भगवान को क्यों बार बार परेशान किया जाए। अब क्या हमारे लिए यह उचित नहीं बनता कि हम अपने कर्तव्य का समुचित निर्वाह करें। गीता में कर्म को महत्वपूर्ण बताया गया है - ' करमन्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन ' यानी कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। भगवान ने इसका सूत्र बना दिया है कि जैसा कर्म करोगे वैसा फल पाओगे। ज़ाहिर है भगवान इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहेंगे। उन्होनें हमें अपने कर्म के भरोसे छोड़ दिया है। 
गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी राम चरित मानस में लिखा है ' कर्म प्रधान विश्व करि राखा , जो जस करा सो तस फल चाखा ' । हमें अपने कर्तव्य को समझना होगा। हमें अपने दायित्व को समझना होगा। परिवार , समाज और अपने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को निभाना होगा। दुनिया में करने को इतना कुछ है। समाज में व्याप्त ग़रीबी , भुखमरी , बीमारी , भ्रष्टाचार , बेईमानी , चोरी , लूटमार , हिंसा , व्याभिचार के खिलाफ संघर्ष करने का क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता है। मानव मात्र का दुख दूर करना भगवान की सबसे बड़ी सेवा है। भगवान भी अपेक्षा रखते हैं कि जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होनें सृष्टि का निर्माण किया , जिस उदेश्य की पूर्ति के लिए हमें इस धरती पर भेजा , हम उसका निर्वाह करें। आँख मूंदकर ध्यान लगाकर माला जपने से भगवान खुश नहीं होंगे। हमें अच्छे कर्म करके भगवान कि अपेक्षा पर खरा उतरना होगा। कोई आसान रास्ता उपलब्ध नहीं है। भगवान को चापलूसी एकदम पसंद नहीं है। भगवान का नाम रटने से हमें अपने दुष्कर्मों के फल से मुक्ति नहीं मिलेगी। ( ##include msid= 3937671 ,type= 9 ##) 
भगवान बुद्ध के बारे में कहा जाता है कि उन्होनें 6-7 वर्ष तक घनघोर साधना की , लेकिन उनको सिद्धि नहीं मिली। फिर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई कि दीन दुखियों की सेवा करना ही सबसे बड़ी साधना है। फिर वह ग़रीबों , कोढ़ियों , बीमारों की सेवा करने में लग गए। यह है सच्चा ज्ञान। 
अब आइए विज्ञान में कितना ज्ञान है इस पर विचार कर लें। विज्ञान का मतलब है विधिवत , व्यवस्थित ज्ञान यानी ' systematic knowledge ' । विज्ञान में वही सिद्धांत स्वीकार्य होते हैं जो प्रायोगिक परीक्षण में खरे उतरते हैं , जिनको साबित किया जा सकता है। जो सिद्धांत आगे चलकर गलत पाए जाते हैं , उन्हे छोड़ दिया जाता है। अनुसंधान एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को उदघाटित करता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है , ' Science illuminates dark corners of life ' । विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को समझकर उनका उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए करता है। आज सभ्यता जिस विकास स्थिति में पहुची है वह विज्ञान क़ी देन है। विद्युत , हवाई जहाज़ , रेलवे , बीमारियों के इलाज़ के लिए नयी - नयी दवाइयों का आविष्कार विज्ञान के माध्यम से संभव हुआ है। आज विज्ञान ब्रम्  हांड के रहस्यों को जानने में लगा हुआ है। मानव जीवन को सुखमय और जीने लायक बनाने में विज्ञान की मुख्य भूमिका रही है। आध्यात्मिक ज्ञान अगर तथाकथित परलोक , जिसके बारे में किसी को कोई वैद्य जानकारी नहीं है , की चिंता करता है तो विज्ञान इस लोक की चिंता करता है। अगर हम पलायनवाद , कर्मकांड , अंधविश्वास को छोड़ दें तो ज्ञान और विज्ञान का समन्वय संभव है।  
(uploaded by Mangal Senacha.Bangalore, on 20 Jan 2010 at 1.19 PM )