सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 25 Apr 2012, 20:21:40
ओमसिंह राजपुरोहित बिलाड़ा।
दशको के उतार चढ़ाव देख चुके बड़े बुजूर्ग व्यापारियों की संजाई बहियों में लोगों का हिसाब किताब ही नहीं शगून, लोगों की प्रवृतियां, पंखेरूओं की आवाज एवं हरकतों के आधार पर नए जमाने व वर्ष की अनुमान भरी बातों का भण्डार भरा पड़ा है। वे बताते है कि इनके पूर्वजों ने उन्हें भी सीख दी कि वे अपना विणज-व्यापार भी शगून को आधार मानकर करें।
स्व. मोहनलाल भंडारी की एक बही के पहले पन्ने पर गणपती की पूजा अर्चना के बाद लिखा है-उत्तम खेती, दीर्घ चाकरी, धिन-धिन रे व्यापार तथा इसके आगे लिखा है-संवत के अंक इकट्ठा करें, उसमें तीन जोड़े और तिगुना करे, सात का भाग देवे शेष बचे वहीं वर्ष फल है। और लिखा है कि नया बरस किस वार को बैठता है, उसके आधार पर हमारे व्यापार कीरूप रेखा तैयार होती थी ताकि हम लोगों से लेन-देन करते थे। आज का कम्प्यूटर युग हैलेकिन पूर्वजों द्वारा निकाला गया फलाफल कभी भी बेकार नहीं गया। स्व. भंडारी के पिता के हाथो लिखी बहीं में नव वर्ष के फलाफल का उल्लेख यूं मिला चेत सुद एकम सूरजवार ने बसर बैठे तो जमानों सीरेकार (जोरदार) धान मंदो (सस्ता) उजली वस्तु तेजी देव (चांदी तिल्ली महंगी) चेत सुद एकम सोमवार ने बरस बैठे तो जमानों सीरेकार, साता रेवे, धान मंदो रेवे। चेत सुद एकम मंगलवार ने बरस बैठे तो समाज काल पड़े, चोरी घणी, धान तेजी रेवे। बुधवार ने बरस बैठे जमानो फोरो (हल्का), धान किराणा में तेजी रेवे। गुरूवार ने बैठे तो बरसात घणी, जमानो सरासरी, धान मंदी (सस्ता), शुक्रवार ने बैठे तो बरस कुरियो-काचो (ठीक-ठाक) होवे, धान तेजी रेवे। शनिवार ने बरस बैठे तो जमाना सरासरी होवे।
वयोवृद्ध रतनलाल मूथा के अनुसार इस वर्ष संवत 206 9, जिसकी जोड़ का अंक 17 है, इनका योग 8 है, जिसमें 3 जोडऩे पर 11 होते है। इसको 3 से गुणा किया तो 33 तथा इस संख्या में सात का भाग दिया तो शेष 5 बचता है। इसका अभिप्राय है अन्न खूब निपजे। इस फलाफल को वे अंक गणित के आधार पर बताते हैकि 1 या 6 बचे तो आधा काल, 2 बचे तो समसाना (भारी अकाल), 3 बचे तो बरसा गमसाना, 4 बचे तो पवन अति बाते, 5 बचे तो अन्न खूब निपजे, 0 बचे तो महाकाल।
सतायु पार कर चुके दयालसिंह मेहता अपनी बही में पूर्वजों द्वारा भोज पत्र पर लिखी यह उक्ती बताई सात काल, सताईश जमाना, त्रेसठ कुरिया-काचा, तीन काल ऐसा पड़े जैसे माई मिले ना बच्चा, मेहता बताते है कि पूर्वजों की मान्यता के अनुसार सौ बरस में सात बार अकाल, सताईश बार अच्छे जमाने, तरेसठ बार ठीक-ठाक तथा तीन बार भंयकर अकाल पड़े है।
अक्षय तृतीया के दिन बड़े-बुजूर्गो के मौजूदगी में इस प्रकार की पौराणिक बहिये जो महाजनों के हाथों से लिखी होती है, जिनमें अच्छे-बुरे जमाने का हिसाब-किताब दर्ज होता है, देखी जाती है तथा लोगों को जानकरी दी जाती है।
प्रेषक - श्री ओमसिंहजी राजपुरोहित, मो. नं. 09414412826