सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 11 Apr 2012, 10:31:29
कोर्ट ने कहा, पुलिस ने दिया मुल्जिमों का साथ
कोर्ट ने कहा, इनका जवाब दे पुलिस
गृह सचिव व पुलिस महानिदेशक को पुलिसकर्मियों की संदिग्ध भूमिका की जांच कराने के आदेश
पाली बाली कस्बे के समीप से एक किशोरी के अपहरण व दुष्कर्म मामले में कोर्ट ने पुलिस जांच अधिकारियों की भूमिका को संदिग्ध माना है। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में पुलिस ने मुल्जिमों को बचाने में साथ दिया है और बिना किसी ठोस वजह से एफआर देकर केस को बंद कर दिया। कोर्ट ने राज्य के गृह सचिव व पुलिस महानिदेशक को इस केस में पुलिस अफसरों की भूमिका की जांच कराने के निर्देश दिए हैं। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बाली (पाली) अमित सहलोत ने पुलिस की ओर से इस मामले में दी गई एफआर को गलत मानते हुए प्रसंज्ञान लिया है। साथ ही इस मामले में चुन्नीलाल सीरवी को अपहरण व उसके साले रूपाराम सीरवी निवासी मुंडारा पर दुष्कर्म व बंधक बनाने के आरोप में केस दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
यह है पूरा मामला
अभियोजन के अनुसार बाली के निकट बेरा बड़ला वाला निवासी एक व्यक्ति ने गत 19 फरवरी 10 को बाली थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि 13 फरवरी 10 को उसकी नाबालिग पुत्री दांतीवाड़ा से बाली आ रही थीं। इस दौरान उसके बेरे पर रहने वाला चुन्नीलाल सीरवी उसकी पुत्री को डरा धमका बाइक पर बैठाकर ले गया। कोर्ट में पेश परिवाद में बताया गया कि चुन्नीलाल उसकी पुत्री को बाइक पर दांतीवाड़ा से शिवगंज ले गया। बाद में उसे मुंबई के वसई इलाके में ले गया और उसकी पुत्री को मुंबई में मुंडारा निवासी अपने साले रूपाराम सीरवी के हवाले कर दिया। आरोप है कि आरोपी रूपाराम ने मुंबई व कर्नाटक के सागर शहर में उसकी पुत्री से दुष्कर्म किया और तीन माह बाद 10 मई को बाली छोड़ दिया।
एएसपी व डीएसपी समेत जांच अधिकारी पर संदेह
परिवाद में बताया गया है कि गत 10 मई 10 को आरोपी रूपाराम सीरवी उसकी पुत्री को डरा धमका कर बाली में तत्कालीन एएसपी व डीएसपी के घर ले गया। आरोप है कि उक्त दोनों अधिकारियों की मौजूदगी में आरोपी ने पीडि़ता को धमकाया कि वह कोर्ट में यह बयान दे कि वह अपनी मर्जी से मुंबई गई। परिवाद में आरोप है कि जांच अधिकारी ने भी पीडि़ता को परिजनों से मिलाए बगैर कोर्ट में पेश किया। इसके चलते परिजनों के अभाव में कोर्ट ने पीडि़ता को नारी निकेतन भेज दिया।
कोर्ट ने कहा कि 8 मई 10 को जब पीडि़ता को पुलिस ने अपने संरक्षण में लेने के लिए फर्द बनाई गई तब पीडि़ता के माता-पिता अथवा परिजनों को क्यों नहीं बुलाया गया। उक्त फर्द पर पीडि़ता के माता-पिता के हस्ताक्षर भी नहीं है। उसी दिन 8 मई को पीडि़ता को सुपुर्दगी के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पुलिस ने प्रार्थना पत्र पेश किया, उसकी भी सूचना पीडि़ता के परिजनों को नहीं दी गई। कोर्ट ने सवाल किया कि 8 मई को सुबह 9 बजे पुलिस द्वारा पीडि़ता को अपने संरक्षण में लेना बताया और दोपहर को 1 बजे उसकी आयु संबंधी प्रमाण पत्र डॉक्टर से हासिल किया गया। शाम 4 बजे तो पुलिस ने पीडि़ता को नारी निकेतन भेजने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र भी प्रस्तुत कर दिया। ऐसे में एक ही दिन में यह सब कार्रवाई पुलिस द्वारा मुल्जिमों को बचाने के फेर में की गई, जिसकी जांच होनी जरूरी है।
किशोरी अपहरण व दुष्कर्म मामले में कोर्ट ने लिया प्रसंज्ञान
साभार -दैनिक भास्कर