सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 08 Apr 2012, 18:01:21
मै बेटी हूं.... सबकुछ ठीक रहा तो मैं केरल में रहना चाहूंगी। महिलाओं की औसत उम्र यहां 75 साल है। झारखंड में होती तो मेरी सेहत का पता नहीं क्या हाल होता। सबसे ज्यादा एनीमिया की शिकार 70.6 प्रतिशत महिलाएं इसी राज्य में हैं।
शादी के बाद हमारी सबसे बड़ी समस्या है दहेज। यूपी में शादी न हो तो ही अच्छा। वहां हर साल दहेज के लिए सबसे ज्यादा मौतें होती है। मेरे देश की राजधानी दिल्ली ही मेरे लिए सुरक्षित नहीं है। महिलाओं पर होने वाले कुल अपराधों में एक-चौथाई यहीं होते हैं।
मुझे त्रिपुरा से बहुत डर लगता है। देश में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध यहीं हो रहे हैं। हालांकि बड़े राज्यों में मध्यप्रदेश भी पीछे नहीं है। देश में सबसे खतरनाक है असम में रहना। यहां पिछले पांच सालों में 7164 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं। राजस्थान विधानसभा में हैं सबसे ज्यादा महिला विधायक, 14.5 प्रतिशत। नागालैंड में एक भी नहीं।
मैं यदि डॉक्टर बनना चाहूं तो चंडीगढ़ में माहौल साथ देने वाला है। तभी तो वहां एक हजार की आबादी पर 7.5 महिला डॉक्टर हैं। देश में सबसे ज्यादा। बिहार में सबसे कम 0.26 हैं। राजस्थान में तो मेरी पढ़ाई मुश्किल है। पढ़ सकें ऐसी महिलाएं 52.7 प्रतिशत ही हैं। जबकि केरल में यह 91.9 है। अच्छा है कि झारखंड में न जन्मी। बचपन में ही शादी कर दी जाती। सबसे ज्यादा बाल विवाह यहीं होते हैं।
सुना था गुजरात में महिलाओं की स्थिति सबसे मजबूत है, लेकिन वहीं के मेहसाणा में तो मैं जन्म भी न ले पाती। एक हजार लड़कों पर मेरे जैसी 760 ही हैं वहां । यानी किसी एक शहर में सबसे बुरी हालत।
इससे तो बेहतर होता कि मैं मिजोरम में जन्म लेती। किसी राज्य के मुकाबले यहीं सबसे अच्छी स्थिति है। एक हजार लड़कों पर 971 लड़कियां। हरियाणा में यह अनुपात सबसे कम है। हजार लड़कों पर 830 लड़कियां। मैं भाग्यशाली हूं कि जन्म तो ले पाई, वरना दुर्भाग्य तो यह है कि पिछले दस सालों में मेरे देश में डेढ़ लाख बच्चियों को गर्भपात के जरिए दुनिया में आने से रोका जा चुका है।
मुझसे ये बेरुखी क्यों?
देश की आबादी में हम 48.4 फीसदी हैं। भगवान न करे, मुझे दिल की बीमारी हो। 22 फीसदी बेटियों को ही इसका उपचार मिल पाता है। जबकि लड़कों को 70 फीसदी। दुख तो इस बात का भी है कि हमें ठीक से खाना नहीं मिलता। तभी तो 18 से कम उम्र की 90 फीसदी बेटियों को एनीमिया है। लड़कों से कहीं ज्यादा।
मुझे देश से कोई शिकायत नहीं है लेकिन फाइटर पायलट नहीं बन सकती। मोर्चे पर नहीं जा सकती। जिसे वे फुल कमीशन कहते हैं। मेरे लिए कॉलेज जाना बेहद मुश्किल है। 11 फीसदी बेटियों को ही भेजा जाता है वहां तक। जबकि 15 फीसदी लड़कों को उच्च शिक्षा के लिए भेजा जाता है।
पूरे देश में बेटियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। बल्कि कई जगह तो हालात झकझोर देने वाले मिले। ऐसे में बेटी बचाने को सिर्फ अभियान न मानें ये मानवता के लिए जरूरी है।
स्रोत : जनगणना 2011, स्वास्थ्य मंत्रालय, डबल्यूएचओ, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, यूनिसेफ, मानव संसाधन विकास मंत्रालय।