सीरवी समाज - मुख्य समाचार

Posted By : Posted By Mangal Senacha on 17 Feb 2012, 09:39:29

सोजत,। परंपरागत साधनों के रूप में कभी सोजत क्षेत्र में टम-टम तांगा एवं बैलगाड़ी आवागमन के प्रमुख स्त्रोत थे, लेकिन आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी के युग में ये साधन लुप्त प्राय: होते जा रहे है। तांगा जिसे टम-टम, विक्टोरिया एवं घोड़ागाड़ी के लोकप्रिय नाम से पुकारा जाता था। आज सोजत क्षेत्र में दूर-दूर तक नजर नहीं आते है, कभी तांगे की सवारी करना रौब समझा जाता था। सोजत से सोजतरोड़, बगड़ी बिलावास, लुण्डावास सहित आस-पास के गांवों में जाने के लिए तांगा विशेष आकषर्ण होता था। सोजत के बस स्टेण्ड एवं पुलिस थाना रोड़ पर तांगे वाले बड़ी शान से सवारियों पर अपने तांगे एवं घोड़े का रौब जमाते दिखार्ई दिए जाते थे। ं उस वक्त के चर्चित हीरो-हीरोईनों, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, मनोज कुमार, राजेन्द्र कुमार, जितेन्द्र, हेमामालिनी, आशापारीख, वहीदा रहमान, सायरा बानो के आकर्षक फोटो फ्रेम सजाए जाते थे। सोजत में तांगों का ज्यादातर उपयोग मेहमानों के बस स्टेण्ड से घर तक आने एवं परिजनों के बाहर जाने के वक्त होता था। किराया भी कोर्ई ज्यादा नहीं लिया जाता था। एक आना दो आना से लेकर दो रूपए तक में सवारियां बड़े मजे से तांगे इठलाकर बैठती और सैर-सपाटे का आनंद लेती। चाय वाले 65 वर्र्षीय सोहनलाल माली बताते है कि दो आने में बड़े ठाठ से तांगे की सवारी कर लेते थे। शादी-विवाह में आस-पास कहीं गांव में जाना होता था तो घोड़ागाड़ी से बढ़कर और कोई साधन नहीं होता था।
मेडिकल वाले ओम प्रकाश टांक का कहना है कि सोजत में डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा तांगे थे सब एक से एक सुन्दर इन तांगों को ही नहीं बल्कि घोड़ों को भी खूब सजाया जाता था, तांगे के साथ-साथ बैलगाड़ी का भी अपना वक्त था, पुराने समय में जब गांवों से बारात आती या जाती तो लोग बैलगाड़ियों पर बैठकर बन ठन कर दुल्हन लेने जाते थे। एक एक बारात 15-15, 20-20 बैनगाड़ियों में आती एवं बाराती रंग-बिरंगे वस्त्र, धोती-साफा, अंगरखी पहने बड़े ठाठ के साथ उस पर सवार होते थे। बारात की रवानगी के वक्त बैल गाड़ियों को दुल्हन की तरह सजाया जाता था तथा बैलों के सिंगों पर तरह-तरह के रंग पोत दिए जाते थे। बैलों के गले में घुंघरू भी पहनाएं जाते थे, जिनकी मधुर झंकार का एक अलग ही एहसास होता था। 59 वर्र्षीय शिवलाल गहलोत अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते है कि बैल गाड़िया एक जमाने में आवागमन का सर्र्वसुलभ साधन होती थी। खेती के अतिरिक्त भी बैलगाड़ियों का उपयोग होता था तथा घरों में बैलगाड़ियां रखना प्रतिष्ठा का विषय समझा जाता था।
साभार - दैनिक नवज्योति