
(यह घटना आंजना पटेल समाज की हैं मगर इस समाचार ने मुझे झकझोर के रख दिया अपने समाज में भी लगभग 50-60 बच्चे देश भर में गुनसुदा की जिंदगी जी रहे है। मैं भगवान से प्राथना करता हूं कि वे अपने - अपने घर लोटकर खुशियां से जिए )
आहोर/उदयपुर.आठ साल से जिस बेटे के इंतजार में मां की आंखों के आंसू भी सूख चुके थे। जिसके आने की उम्मीद भी नहीं थी। उसने जब शुक्रवार को घर आकर मां पुकारा तो उसकी रुलाई फूट पड़ी।
जानकारी के अनुसार रामा गांव निवासी मंगलाराम चौधरी एवं उसकी मां पोनी देवी ने पुत्र सुरेश को आठ साल पहले इसी गांव के कानाराम के साथ कर्नाटक के दावनगिरी में बहनोई की मिठाई की दुकान पर कार्य करने भेज दिया।
वहां बाल श्रम विभाग की कार्रवाई के बाद सुधार गृह में दो साल, सात दिन तक किशोर गृह और तीन साल दिल्ली में भटकने के बाद एक समाजसेवी विजय कुमार बंसल की मदद से वह वापस आने घर आ सका।
इसके बाद एक एक परिजनों ने उसे दुलारा वह छोटा सा था जब घर से निकला था। आज 16 साल का होकर लौटा। तो भी सबको पहचान लिया। यह बात जैसे ही गांव में फैली ग्रामीण भी उसके घर एकत्रित हो गए। जानकारी के अनुसार रामा गांव निवासी मंगलाराम चौधरी एवं उसकी मां पोनी देवी ने पुत्र सुरेश को आठ साल पहले इसी गांव के कानाराम के साथ कर्नाटक के दावनगिरी में बहनोई की मिठाई की दुकान पर कार्य करने भेज दिया। तभी से सुरेश घर नहीं लौटा और इस दौरान कई शहरों में भटकता रहा।
तीन चार साल दिल्ली रहा
वहां पर सुरेश ने करीब एक वर्ष तक मिठाई की दुकान पर कार्य किया। इसी दौरान वहां की सरकार द्वारा बाल श्रम करवाने पर दुकान पर कार्रवाई की गई तो दुकान मालिक ने बालक सुरेश को पहचानने से इंकार कर दिया।
जिस पर वहां बाल श्रम विभाग की कार्रवाई के बाद सुधार गृह में दो साल, सात दिन तक किशोर गृह और तीन साल दिल्ली में भटकने के बाद एक समाजसेवी विजय कुमार बंसल की मदद से वह वापस आने घर आ सका।
वहां से बाहर आकर दुकान मालिक के पास किराए के रुपये मांगने एवं घर भेजने की बात कही तो वापस उसको सात दिन तक किशोर गृह में डलवा दिया। सात दिन बाद सुरेश वहां से छूटकर जैसे तैसे कर ट्रेन पकड़कर हैदराबाद गया। वहां से ट्रेन से दिल्ली आ गया।
दिल्ली में तीन वर्ष तक वह अस्पताल और मंदिरों सहित अन्य धार्मिक स्थलों पर भोजन कर गुजारा चलाता रहा। दिल्ली में उसे पुलिस से भी परेशान होना पड़ा। इस बीच उसने दिल्ली में एक दुकान पर काम भी किया और वहां से उसे मजदूरी के तीन हजार रुपए मिले।
दुकान मालिक ने उसे दिल्ली से ट्रेन पकड़वाकर जोधपुर के लिए रवाना किया। जोधपुर उतरकर अपने गांव रामा का नाम तो भूल गया, मगर भाद्राजून गांव का नाम उसे आठ वर्ष बाद भी याद रहा। शुक्रवार की शाम को सुरेश आहोर चौराहे पर भाद्राजून जाने के लिए उतरा।
समाजसेवी ने की मदद
आहोर में सुरेश को रावतसर निवासी समाजसेवी विजय कुमार बंसल मिले। विजय कुमार ने उसे अकेला और परेशान देखकर पूछताछ की और शनिवार को भाद्राजून ले गये। भाद्राजून में मंगलाराम एवं विजय कुमार ने इधर उधर पूछताछ कर सुरेश के गांव का पता लगाया।
थोड़ी बहुत जानकारी मिलने पर ये लोग सुरेश को रामा गांव ले गए। जहां पहुंचते ही सुरेश ने अपना गांव, मंदिर, विद्यालय एवं रास्ते पहचान लिए। यहां तक कि सीधे घर की ओर चलने लगा। घर पहुंचते ही आंगन में बैठी वृद्ध दादी की गोद में लिपट कर फूट फूट कर रोना शुरू कर दिया।
हालांकि एक बार तो उसकी दादी व मां पोनी देवी भी उसे नहीं पहचान पाए। सुरेश ने अपने बचपन के दोस्तों व गांव के प्रमुख स्थानों को भी एक नजर में पहचान लिया, लेकिन आठ वर्ष बाद इसका हुलिया व पहचान बोली बदल जाने से हर कोई नहीं पहचान सका।
ग्रामीणों ने भी मनाई खुशी
सुरेश के पिता मंगलाराम के आंगन में रामा गांव के ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई। पूरे गांव में आठ वर्ष पूर्व लापता हुए सुरेश के मिलने की खबर आग की तरह फैल गई। हर कोई उसे देखने के लिए आतुर नजर आया। गांव वालों में भी उसके लौटने की खुशी थी। सुरेश की मदद करने वाले विजय कुमार माइनिंग विभाग के मामले को लेकर आहोर स्थित एक धर्मशाला में रुके हुए थे।
इसी दौरान शुक्रवार की देर शाम को आहोर तिराहे पर अनजान बने सुरेश से पूछताछ करने पर उसने सारी बात विजय कुमार को सुनाई। जिस पर विजय कुमार ने सुरेश को अपने साथ रात में धर्मशाला में ले जाकर सुलाया।
विजय कुमार ने भास्कर को बताया कि घर वालो ने तो आठ वर्ष पूर्व लापता हुए सुरेश की आस तक छोड़ दी थी। यहां तक कि उसे मृत भी मान लिया था।
साभार - दैनिक भास्कर