सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 06 Nov 2011, 13:36:22
बड़वानी । (सीरवी बाहूल्य क्षैत्र M.P.) सरदार सरोवर बांध के विस्थापित आदिवासियों और किसानों द्वारा दाखिल जनहित याचिका की प्रथम सुनवाई करते हुए मप्र उच्च न्यायालय ने राज्य शासन को तीन सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है। जमीन के बदले नकद राशि एक तरफा आवंटित करने की नई योजना को गैरकानूनी ठकराते हुए नर्मदा बचाव आंदोलन और विस्थापितों द्वारा इस योजना को चुनौती दिए जाने पर मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायाधीश आलोक आरेथे ने यह नोटिस नर्मदा घाटी विकास विभाग को दिया है।
प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नर्मदा बचाव आंदोलन ने बताया कि इस योजना के द्वारा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण लगभग 1424 परिवारों का जमीन की पात्रता खत्म करने की साजिश कर रही है, जिन्हें नर्मदा न्यायाधिरण 1979 पुनर्वास नीति 1989 एवं सर्वोच्च अदालत के फैसले (2000 और 2005) के अनुसार कम से कम 5 एकड़ सिंचित कृषि योग्य जमीन पाने की पात्रता आज भी है। इन सभी परिवारों को लगभग 4 से 5 साल पहले विशेष पुनर्वास अनुदान दिया गया, जिसमें कम राशि ये परिवार जमीन खरीद नहीं पाए। फर्जी रजिस्ट्रयों में नही फंसे, ऎसे प्रभावित आज तक पुनर्वास से भी वंचित हैं।
उल्लेखनीय है कि पुनर्वास उपदल दिल्ली के अध्यक्ष के पत्र 30 जून, 2010 के निर्देशानुसार सभी विस्थापितों को सौ प्रतिशत जमीन के साथ पुनर्वास करने का आदेश मप्र के मुख्य सचिव को दिया गया। मगर इस आदेश के परिपालन में राज्य सरकार ने यह 90 दिन योजना का विकृत एवं अन्याय पूर्ण योजना लागू किया, जिसके अनुसार विस्थापित को पुन: शासकीय भूमि बैंक से जमीन का पुराने अतिक्रमणदारों के कब्जे में है। 90 दिन में वह इसको स्वीकार नहीं करता है तो उनके खाते जबरर्दस्ती दूरी किश्त का पैसा जमा करवा दिया जाएगा और उन्हें पुनर्जीवित माना जाएगा।
....फिर से सक्रिय
आंदोलन ने बताया कि लोगों के जमीन व जीने के अधिकार खत्म करने के साथ इस योजना के बाद उन्ही भ्रष्टचारी अधिकारियों और दलालों का गिरोह फिर से लोगों को लूटने के लिए सक्रिय हो गया है। जिनकी जांच न्या.सा आयोग द्वारा पिछले 3 सालों से की जा रही है। सव“üच्च अदालत ने मई 2011 में आदेश दिया कि झा आयोग की पूर्व मंजूरी के बगैर कोई नकद राशि का आवंटन नहीं हो सकता है। ऎसे में यह योजना सर्वोच्च अदालत के आदेश का भी घोर उल्लघंन कर रही है
अधिकार हो जाएगा खत्म
विस्थापितों का पक्ष रखते हुए आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने न्यायाधीशों के सामने आग्रह किया कि अगर इस योजना को तत्काल रद्द नहीं किया गया तो सैकड़ों आदिवासी एवं दलित छोटे सीमांत किसानों का जमीन व जीने का अधिकार खत्म हो जाएगा। सुनवाई के उपरांत न्यायालय ने शासन को आदेश दिया कि वह तीन सप्ताह में रिट याचिका का जवाब दे। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि शासन द्वारा विस्थापितों की कानूनी अधिकारों को अगर कोई भी नुकसान पहुंचेगा तो वह सही समय पर उनके संपूर्ण पुनर्वास के लिए हस्तक्षेप करेगा। आंदोलन की मुख्य आपत्ति है कि पुनर्वास की प्रक्रिया में अनीति, अत्याचार और भ्रष्टाचार खत्म हो और सही रूप से पुनर्वास नीति का पालन हो।
साभार - पत्रिका