सीरवी समाज - मुख्य समाचार
Posted By : Posted By Mangal Senacha on 06 Nov 2011, 13:35:50
बिलाड़ा,बिलाड़ा कस्बे में स्थित कल्पवृक्ष जन जन की आस्था का प्रतीक है। अति प्राचीन इस कल्पवृक्ष के बारे में धारणा है कि यहां आकर जो मनोकामना की जाती है, वह पूरी होती है। विवाह के दौरान नवदंपत्ती व शिशु यहां धोक देने आते हैं। श्रद्धालु यहां आते हैं और सवामणी का प्रसाद करते हैं। राजा कल्पवृक्ष नर का रूप माना जाता है। यहां श्रद्धालु पगड़ी के प्रतीक के रूप में हाथ से कटा हुआ लाल पीला सूत (कलावा) चढ़ाते हैं और पुष्प, अगरबत्ती, दीप व जल से आरती करते हैं। यहां रानी कल्पवृक्ष नहीं होने के बावजूद महिलाएं तूणी को रानी का प्रतीक मानकर काजल, सिंदूर और चुन्नी रख देती हैं। राजा व रानी वृक्ष के चारों ओर 108 बार परिक्रमा की जाती है। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि यह वृक्ष अति प्राचीन है।
धार्मिक महत्व है : पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक कल्पवृक्ष भी था । यह इंद्र को दिया गया था। इसे सुर कानन में स्थापित किया गया था। बताया जाता है कि इंद्र को जीतने व उसका आसन प्राप्त करने के लिए यक्ष राजा बलि ने निन्यानवे महायज्ञ किए व धरती -आकाश व पाताल के सभी प्राणियों को न्योता दिया था। बलि की देवताओं में घोर आस्था देख कर विष्णु भगवान ने समुद्र मंथन से निकला कल्पवृक्ष राजा बलि को दे दिया था, जिसे उसने बलिपुर में स्थापित कर दिया। वही बलिपुर आज बिलाड़ा कस्बे के रूप में जाना जाता है। बताया जाता है कि राजा बलि के सोचे महायज्ञ को पूर्ण होते देख इंद्र भगवान विष्णु के पास गए व गिड़गिड़ाए कि उन्होंने पहले से ही कल्पवृक्ष यक्ष बलि को दे दिया है अब अगर सौंवा यज्ञ पूरा हो गया तो देवलोक में यक्षों का राज हो जाएगा। इस पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर राजा बलि को छला। बलि ने छले जाने के बाद भी राजा विष्णु से वरदान मांगा कि कल्पवृक्ष उनकी नगरी में रहने दिया जाए। इसी वचन का प्रतीक कल्पवृक्ष आज भी बलिपुर यानि बिलाड़ा में मौजूद है।
देश विदेश के शोधार्थी यहां आ चुके हैं : इस वृक्ष की लोक मान्यता को देखते हुए देश विदेश के शोधार्थी यहां आ चुके हैं। बताया जाता है कि इस वृक्ष के तने व डालियों में देवी देवताओं की आकृति बनती बिगड़ती रहती है। आज भी लोग यहां शोध करते हैं। गोपाल सहस्त्रनाम तथा विष्णु नाम स्तोत्र में कल्पतरु का वर्णन आता है। अमरवाणी में इसे दरिद्रता का हरण करने वाला बताया गया है। रामरखास्तोत्रम के एक श्लोक में राम की तुलना कल्प वृक्ष से की गई है। पदम पुराण के अनुसार अमृत की बूंदें धरती पर गिरने से कल्पवृक्ष की उत्पत्ति हुई।
साभार - दैनिक भास्कर