सीरवी समाज - मुख्य समाचार

Posted By : Posted By Mangal Senacha on 10 Oct 2011, 08:49:46

पाली, मीरा विश्व की धरोहर है, वह भारत में सभी जगह प्रेम, भक्ति, समर्पण और कृष्ण की अनूठी साधिका के रूप में जानी जाती है। सवाल कुड़की का नहीं, मीरा का है, पर कुड़की ने मीरा को जन्म दिया। यहीं से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई, जिसने सबको सराबोर कर दिया। वह हमेशा के लिए अमर हो गईं। ऐसी महान साधिका के लिए कुड़की तीर्थ स्थल बनें, पर्यटन स्थल बनें, प्रेरणा स्रोत बनें। यह बात आईएएस प्रशिक्षु जितेंद्र कुमार सोनी ने रविवार को भारतीय विद्या मंदिर शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में राजस्थान साहित्य अकादमी और साहित्य साधना समिति द्वारा आयोजित मीरा महोत्सव के दौरान कही।
उन्होंने साहित्यकारों को सुझाव देते हुए कहा कि वे पुस्तकें खरीदकर पढ़ें, जिससे लेखकों को संबल मिलेगा। इस अवसर पर आशा पांडे ने प्रेम और भक्ति का संगम व मीरा दर्शन विषय पर पत्र वाचन करते हुए कहा कि राजस्थान वीरता, शृंगार व संस्कार का अद्भुत संगम है। ऐसे प्रदेश में भक्ति व प्रेम की अनन्य मूर्ति मीरा का अवतरित होना सोने में सुहागा के समान हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान ही नहीं, समस्त भारत के भक्त कवियों में मीरा का नाम सर्वोपरि है। प्रेम और दर्द के तारों को छेड़ती मीरा स्वयं भक्ति की धुन बन गई। आज भी मीरा के मधुर सुरीले गीत राजस्थान की माटी के कण-कण में गूंजते हैं। उन गीतों की करुणा में पानी को बहने से रोकने का सामथ्र्य है, तो पठारों को पिघला देने वाली क्षमता भी है। पता नहीं कितने जन्मों का दर्द मीरा के अंतर में हिलोरे ले रहा था। उसके अंतर की छटपटाहट प्रेम और भक्ति का आवरण ओढ़ कर अपने आलौकिक प्रेमी पर न्यौछावर हो गई। मीरा की अमृत मय वाणी से सिंचित यह मरू भूमि बंजर होकर भी सरस बन गई। उन्होंने कुड़की को विद्वानों के अनुसार निर्विवाद सच के रूप में मीरा का जन्म स्थान स्वीकार किया है। उसे दर्शनीय स्थान के रूप में विकसित कर हम मीरा की भक्ति को नमन करें।
आशा पांडे के पत्र पर अनेक साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र का संचालन वीरेंद्र लखावत ने किया। अध्यक्षता प्रेमपाल शर्मा ने की। इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में जयपुर दूरदर्शन के कार्यक्रम निर्माता वीरेंद्र परिहार ने मीरा को भक्ति और समर्पण की प्रतिमूर्ति बताया। उन्होंने कहा कि मीरा पर एक वृहद चित्र बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने अपनी सेवाएं देने का संकल्प व्यक्त किया। मीरा के आदर्शों को जीवित रखने के लिए पुरस्कारों, स्मारकों व मार्गों का नामकरण मीरा के नाम से होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस कार्य में प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। परिहार ने सुझाव दिया कि दूरदर्शन के प्रादेशिक चैनलों पर विभिन्न भाषाओं में मीरा साहित्य का प्रसारण किया जा सकता है।
महोत्सव के समापन अवसर पर पुष्पेंद्रसिंह कुड़की ने सभी साहित्यकारों को आगामी मीरा महोत्सव कुड़की में आयोजित करने का निमंत्रण देते हुए राजस्थान अकादमी और साहित्य साधना समिति के प्रति आभार जताया। शिक्षाविद् विनोद कुमार शर्मा ने मीरा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मीरा भक्तिकालीन साहित्य की ऐसी कवयित्री है, जिसने तत्कालीन सामाजिक रूढिय़ों को तोड़ते हुए भक्ति के सन्मार्ग पर चलने का निश्चय किया और चलकर दिखाया। ऐसी नेत्री की वर्तमान में एकमात्र मिसाल झांकी की रानी ही है। अंत में प्रतिवेदन संस्था अध्यक्ष सीताराम जोशी ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए महामंत्री देवराज शर्मा ने संभागियों का सार्थक सहयोग व भागीदारी के लिए साधुवाद ज्ञापित किया।
मीरा ने तोड़ी जातिवाद की दीवार
समापन सत्र में अध्यक्षीय पद से बोलते हुए जोधपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. किशोरीलाल ने कहा कि मीरा को अपने पद से कोई विपत्ति और किसी प्रकार का डर विचलित नहीं कर सकता था, क्योंकि मीरा को अपने आराध्य में अटूट आस्था थी। इसलिए तत्कालीन सामंती वैभव, उसके शौर्य, धन, बल सबको मीरा ने चुनौती दी और वह अपने भक्ति के पथ पर अडिग रहीं। तत्कालीन समाज जाति प्रथा से ग्रस्त था, फिर भी मीरा ने साहसपूर्वक रविदास को अपना गुरु बनाकर जातिवाद की दीवार तोड़ी। मीरा ने उस काल में वैसा ही साहसी कार्य किया, जैसा लक्ष्मी बाई ने किया था।
मीरा के भजनों से श्रोता भाव-विभोर
उपसभापति शमीम मोतीवाला ने मीरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर की महान भक्त बताया। उन्होंने कहा कि मीरा के पद दिल को झकझोर देने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वैसा सर्पण नहीं है, इसलिए साहित्यकार जीवन को कुछ देने का सोचें। उन्होंने सह स्वर में ‘पायो जी मैंने रामरतन धन पायो’ भजन की प्रस्तुति देकर सदन को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस मौके पर पंचायत समिति प्रधान शोभा सोलंकी ने कहा कि मीरा ने भगवान के प्रति प्रेम को किस प्रकार परवान चढ़ाया, वास्तव में वह अलौकिक प्रेम था। मीरा ने जो पद लिखे, गाए वे भक्ति की अनूठी मिसाल है। उन्होंने ‘निज मंदिर माय मीरा नाची रे नाची’ पद सुनाया तो श्रोता भाव विभोर हो गए।