सीरवी समाज - मुख्य समाचार

Posted By : Posted By Mangal Senacha on 20 Sep 2011, 11:04:36

महिला सषक्तिकरण-दशा एवं दिशा
सीरवी ललिता चौधरी, नई दिल्ली 110075 फोन- 9582036686
किसी भी समाज का स्वरूप वहां की नारी की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि उसकी स्थिति सुदृढ एवं सम्मानजनक है तो समाज भी सुदृढ एवं मजबूत होगा। भला पक्षी एक पंख से उडान नहीं भर सकता, एक पहिए से गाडी नहीं चल सकती, अतः समाजरूपी रथ के सुचारू संचालन के लिये स्त्री-पुरुष दोनों का सुदृढ होना आवष्यक है।
प्रकृति का एक महत्वपूर्ण नियम है-यत्पिण्डे,तत्ब्रह्माण्डे । कुछ ऐसी ही व्यवस्था मानव समाज की भी है कि जब तक सभी लोग सहकारिता से भागीदार नहीं होते, उनका विकास सम्भव नहीं है। इसीलिये स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार तथा सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक क्षेत्रों में नारी की पुरुषों के बराबर ही सहभागिता अनिवार्य है, तब ही सम्पूर्ण समाज का विकास हो सकेगा। नारी का विकास केवल नारी की खुषहाली की दृष्टि से ही आवश्यक नहीं है बल्कि वह सम्पूर्ण समाज के संतुलित विकास की दृष्टि से भी अनिवार्य है।
नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी की महनता को बताते हुये कहा था कि--“ मुझे एक योग्य माता दे दो, मै तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा ” । पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा है कि- अगर किसी देश की प्रगति जानना हो तो वहॉ कि महिलाओं की दशा का ज्ञान कर लो । भारत का सिन्धुघाटी एवं ऋग्वैदिक काल नारी अधिकार एवं सम्मान की दृष्टि से गौरवपूर्ण काल था। सूत्रों एवं स्मृतियों की रचनाओं के साथ उसकी स्थिति गिरती गई और मध्यकाल में इस्लामी आक्रमणों एवं खतरों ने नारी को रजिया सुल्तान व रानी दुर्गावती जैसे अपवादों को छोडकर मात्र भोग्या और पर्दानसीन बनाकर छोड दिया।
आधुनिक युग में भारतीय समाज सुधारकों यथा- राजाराम मोहन राय और ईश्वरचन्द्र से लेकर कुछ सुधारवादी ब्रिटिश शासकों विलियम बैंटिक आदि के प्रयास सराहनीय रहे और सतीप्रथा, पर्दाप्रथा, बालविवाह आदि रूप में मिथ्या सामाजिक प्रतिष्ठा का बोझ ढोती ”अकेली नारी“ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिक स्वतन्त्र होती गई। आजाद भारत की आजाद सरकार पहले नारी उद्धार फिर महिला कल्याण तत्पश्चात महिला विकास के बाद वर्ष 2001 से महिला सशक्तिकरण के लिये प्रयासरत है।
नारी सशक्तिकरण का अर्थ है महिला का सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक निर्णयों में भागीदारी तथा अपने निर्णयों पर टिके रहने के लिये आवश्यक संसाधनों तक पहुंच। महिलाओं को परावलम्बन की भावना से मुक्त करना तथा इनकी हीन भावना को समाप्त करना ही नारी सशक्तिकरण है। महिलाओं को हाश्यिे से हटाकर समाज की मुख्य धारा में लाना एवं निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना सशक्तिकरण है। यदि समाज में नारी भयमुक्त हो अथवा सम्मान खोये विना अपनक लक्ष्य को प्राप्त कर सके, उसकी इच्छा अनिच्छा की परिवार एवं समाज के स्तर पर कद्र की जाए, उसे अपना वाजिब हक मिले, सबलता और सुयोग्यता नारी सशक्तिकरण की प्रमुख पहचान है।
महिला सशक्तिकरण की माप करने हेतु इसके अन्तर्गत सामान्यतौर पर निम्नांकित चार तत्वों को सम्मिलित किया जाता हैं-
संसद / विधानमंडलों में महिलाओं की भागीदारी का अंश।
प्रशासन प्रबन्ध में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत।
प्रोफेशनल एवं तकनीकी सेवाओं में महिलाओं का अनुपात।
प्रतिमहिला आमदनी और उनकी तुलनात्मक आर्थिक स्थिति।
महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु उठाए गए कदमः-
महिलाओं को संवैधानिक एवं कानूनी रूप से सशक्त बनाने हेतु अनेक व्यवस्थाओं और अधिनियमों को लागू किया जाता रहा है, जैसे- संविधान के अनुच्छेद 14,15,17,19,23 और 39 में राज्य, जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान, जीविका, कानून आदि के आधार पर अवसरों की समानता की गारण्टी तथा जबरन काम करवाने आदि को पूरी तरह प्रतिबन्धित किया गया है। 1955 का हिन्दू विवाह अधिनियम, 1954 का विशेष विवाह अधिनियम, 1956 का पुनर्विवाह अधिनियम, 1954 में पारित हिन्दू भरणपोषण अधिनियम के द्वारा नारी को सामाजिक अधिकार प्रदान किये गए। वहीं 1956 के हिन्दू उत्ताराधिकार अधिनियम द्वारा नारी को सम्पति का अधिकार प्रदान किया गया। प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम 1961, दहेज निषेध अधिनियम 1961, समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976, बाल विवाह निषेध अधिनियम 1976, वैष्यावति निवारण (संषोधन) अधिनियम1986, सति निषेध अधिनियम 1987, प्रसवपूर्व निदान तकनीक अधिनियम1934 आदि के द्वारा उन्हें विशेष सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करने के प्रयास किये जा रहे हैं। हाल ही के वर्षों में पारित किये गये अधिनियमों मे से विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम2001, भारतीय तलाक(संशोधन) अधिनियम2001, भारतीय उत्ताराधिकार (संशोधन) अधिनियम2002, हिन्दू विवाह अधिनियम एवं विशेष विवाह अधिनियम 2003, तथा दण्ड प्रकिया (संशोधन) अधिनियम 1994 एवं 2005, हिन्दू उत्ताराधिकार संशोधन अधिनियम2005 आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त बालिका अनिवार्य शिक्षा एवं कल्याण अधिनियम 2001,महिला आरक्षण सम्बन्धी संविधान (संशोधन)विधेयक, विवाह पंजीयन अनिवार्य (अधिनियम) विधेयक 2005, अनैतिक व्यापार (निरोधक) संशोधन विधेयक 2006, कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन से महिलाओं का संरक्षण विधेयक 2007 महत्त्वपूर्ण हैं।
महिला शक्ति पुरस्कारों की व्यवस्था-
समाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट स्तर का योगदान करने वाली महिलाओं को केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिवर्ष “श्री शक्ति पुरस्कार” से सम्मानित किया जाता है।इन पुरस्कारों को देष की 5 शीर्ष स्तरीय वीरांगनाओं के नाम पर रक्षा गया है। इनके नाम इस प्रकार है-
देवी अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार।
झॉंसी की रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार।
माता जीजाबाई पुरस्कार।
श्रानी गैदन्लियू जलियांग पुरस्कार।
कन्नगी पुरस्कार।
वर्ष 2001 से नियमित रूप से उपर्युक्त पांचों पुरस्कारों से महिलाओं के कल्याण में लगी विशिष्ठ महिलाओं को सम्मानित किया जाता है। इन पुरस्कारों में प्रत्येक ऐसी महिला को एक लाख रूपये तथा प्रशस्ति पत्र दिये जाने की व्यवस्था है। इन पुरस्कारों को बेसहारा, विकलांग, बुजुर्ग, लाचार, अत्याचार और संघर्ष आदि से पीडित परिस्थितियों से गुजरने वाली महिलाओं और बच्चों को पुनर्वास और सहायता, शिक्षा तथा प्रशिक्षण कृषि और ग्रामोद्योग कार्यो में लगी महिलाओं को सहायता देने, ऐसी तकनीकी को प्रोत्साहन देना जिसमे कम मेहनत लगती हो, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार सहित स्वास्थ्य के क्षेत्र में, कला और मीडिया सहित समुदाय आधरित कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं की समस्याओं के बारे में जानकारी तथा जागरूकजा पैदा करने जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को प्रतिवर्ष 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर प्रदान किया जाता है।
राजनैतिक सशक्तिकरण हेतु ”महिला आरक्षण विधेयक“ (प्रस्तावित) को संसद में पारित कराने का प्रयास- अप्रैल 1993 में 73वां और 74वां संविधान संशोधन द्वारा त्रिस्तरीय पंचायतीराज संस्थाओं एवं स्थानीय निकायों में प्रत्येक स्तर पर महिला सदस्यों के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी गई ताकि महिला देश के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय शगीदारी निभा सके। केन्द्र सरकार द्वारा संसद तथा विधानमण्डलों में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटों पर आरक्षण प्रदान करने हेतु सबसे पहले वर्ष 1986 में इसे संसद में पेश किया गया था। तेरहवीं लोकसभा में पुनः प्रस्तुत किया गया और पारित कराने हेतु सभी राजनैतिक पार्टियों में आम राय बनाने की कोषिष की जा रही है। इस बहुचर्चित विधेयक के प्रमुख प्रावधान निम्नांकित हैं।
संविधान के अनुच्छेद 330 के खण्ड 1 में लोकसभा में महिलाओं के लिये स्थान आरक्षित रहेंगे।
अनुच्छेद 330 के खण्ड 2 के अधीन आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के जहां तक सम्भव हो एक तिहाई स्थान अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिये आरक्षित रहेंगे।
किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में लोकसभा के लिये प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा श्रेत्र जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के जहां तक सम्भव हो, एक तिहाई स्थान जिसके अन्तर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिये आरक्षित स्थानों की संख्या है, महिलाओं के लिये आरक्षित रहेंगे और ऐसे स्थान उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में भिन्न चुनाव क्षेत्र चक्रानुक्रम द्वारा आंवटित किये जा सकेंगे।
जिन क्षेत्रों में निर्वाचित स्थानों की संख्या तीन से कम है, उनमें महिलाओं के लिये बारी-बारी से आरक्षण दिया जायेगा।
प्रस्तावित आरक्षण का प्रावधान 15 वर्षों तक लागू रहेगा।
राज्यसभा, विधानपरिषदों तथा दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के आरक्षण हेतु पृथक् प्रावधान की आवष्यकता रहेगी।
लिंग आधारित बजट की व्यवस्था-
केन्द्र सरकार द्वारा लिंग आधारित बजट पर वर्ष 2001-02 के आर्थिक सर्वेक्षण में एक पूरा अध्याय पहली बार तैयार कराया गया। वर्ष 2004-05 के लगातार केन्द्रीय बजट में महिला केन्द्रित योजनाओं हेतु बजट आवटंन को प्राथमिकता प्रदान की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत विभिन्न मन्त्रालयों को अपने बजट प्रावधानों एवं योजनाओं में महिलाओं को प्राथमिकता देने वाले प्रावधानों को स्पष्ट रूप से बताने की व्यवस्था निर्धारित की गई है। इस व्यवस्था के माध्यम से पुरुषों तथा महिलाओं को मिलने वाले सापेक्षिक लाभ का मूल्यांकन करने के लिये सरकारी व्यय का विश्लेष्ण करना है। सरकार का मानना है कि महिला सश्क्तिकरण के प्रयास तभी सफल हो सकते हैं जब सरकार के पास इस बारे में पूरी -पूरी और सही जानकारी होगी कि महिलाओं पर योजनावार तथा मंत्रालयवार कितने संसाधन खर्च किये जा रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा प्रथम चरण में लिंग आधारित बजंिटंग व्यवस्था लागू करने के लिये 18 मंत्रालयों की पहचान की गई, जिसमें कृषि और ग्रामीण उद्योग, संचार व सूचना प्रौद्योगिकी, वन एवं पर्यावरण, खाद्य प्रसंस्करण , स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, मानव संसाधन विकास, श्राम, विधि व न्याय, गैर परम्परागत ऊर्जाश्रोत, ग्रामीण विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सामाजिक न्याय व अधिकारिता, लघु उद्योग, जनजातीय मामले, शहरी रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन तथा युवा मामले और खेल मन्त्रालय शामिल किये गये। वर्ष 2007-08 में 50 मन्त्रालयों और विभागों द्वारा अपने यहॉं “महिला बजट सैल" स्थापित कर लिये गये हैं।
तात्कालिक उपायों में कुछ ऐसे कानूनों की व्यवस्था हो सकती है जो वर्तमान व्यवस्था में नारी की सुरक्षा सुनिष्चित करते हुये उसके षैक्षिक, आर्थिक व सांस्कारिक विकास में सहायक हो। चूॅकि आज नारी न केवल सार्वजनिक और कार्यस्थलों पर , बल्कि परिवार में और यहॉं तक कि कोख में भी सुरक्षित नहीं है, इसीलिये मौजूदा कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन और उनमें आवश्यकतानुरूप संशोंधन किये जाए, ताकि दहेज, शराब तथा अन्य कारणें से कोई वृद्ध माता, विधवा भाभी, नई बहू, बहिन या बेटी, कामकाजी महिला अथवा पत्नि प्रताडित न की जा सके।
सशक्तिकरण के लिये एक अति महत्त्वपूर्ण सोपान है- आर्थिक स्वतंत्रता। आर्थिक स्वतंत्रता के लिये जहां महिलाओं के रोजगार के लिये युक्तियुक्त योजनाएं बनाकर प्रभावी रूप से लागू की जानी चाहिये वहीं उत्तराधिकार व स्थायी सम्पत्ति खरीद- बेचान के पंजीयन के द्वौरान संयुक्त अधिकार व सहभागिता की व्यवस्था सुनिश्तचत की जानी चाहिये। आर्थिक स्वतंत्रता व रोजगार की स्थिति के बावजूद पढे लिखे एवं संभ्रान्त परिवारों की कामकाजी महिलायें भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हैं। उनका वेतन उनकी इच्छा के अनुरूप उपयोग किया जाए, यह जरूरी नहीं है, तब उनमें आत्मश्क्ति बने और पुरुष मानसिकता बदलने की जरूरत महसूस होती है।
समाज की मानसिकता में परिवर्तन लाया जाए, नारी को केवल औरत की निगाह से न देखा जाए। साथ ही साथ नारी की स्वयं की मानसिकता में शक्ति परिवर्तन की आवश्यकता है वह स्वयं को अबला नहीं बल्कि सबला समझे। महिलाओं में जाग्रति लाई जाए एवं उनमें आत्मविष्वास जगाया जाए जिससे वे कर्त्तव्यों के साथ-साथ अधिकारों को शक्ति समझे एवं उन्हें पाने के लिये सजग रहे। इसमें गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वे सामाजिक परम्पराऐं जो नारी की स्थिति को निम्न बनाती है, उनका उन्मूलन किया जाये, उपभोक्तावाद के प्रलोभनों से महिलाओं को मुक्त किया जाये एवं नारी की गरिमा का सम्मान हो। इस क्षेत्र से जुडे कानूनों का वास्तविक क्रियान्वयन हो। पुलिस एवं प्रशासन को इसके लिये मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया जाए।
नारी सशक्तिकरण के लिये उपरोक्त उपायों के अलावा शिक्षा की समुचित व्यवस्था, न केवल उच्च षिक्षा और रोजगारपरक शिक्षा बल्कि स्वस्थ समाज के लिये आवश्यक संस्कारों से युक्त शिक्षा, ताकि आज की शिक्षार्थी कल नारी गरीमा को बनाये रखें। नारी मां के रूप में बच्चे की प्रथम पाठशाला भी है, इसीलिये समाज का आधार भी है। आधुनिकता की आड में प्रतिष्ठा न खो जाये, यह भी उसके लिये चिन्तन का विषय है।
सच तो यह है कि केवल नारी ही नहीं, पुरुष सशक्तिकरण की भी आवश्यकता है। पुरुष मिथ्या अहंकार और संकीर्णता के जिस पाश में बंधा हुआ है, उसे तोडकर पुरुष को सशक्त और आधुनिक बनाने की जरूरत है ताकि नारी के जन्म, शिक्षा प्राप्ति, इच्छित व्यवसाय और जीवन साथी के चयन की स्वतंत्रता, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक निर्णयों में भी क्रियान्विति के प्रति वह पवित्र मनोंभावों व शुद्ध विचारों के साथ उसका सहभागी बनें। समाज में पति परमेष्वर के पवित्र चरणें की दासी रूप में नहीं बल्कि ”सहचरी“ के रूप में नारी की प्रतिष्ठा हो। नारी सशक्ति समाज में फैलती अराजकता, आतंकवाद और युद्धोन्माद का एक सशक्त उपाय भी सरबित होगा, जैसा कि जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में कहा है--
“ नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयुश स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।”