
अमेरिका के विश्वप्रसिद्ध कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में करेंगे भारत का प्रतिनिधित्व
बेंगलोर, श्री बाबु डी. चौधरी (दांये से दुसरे), संस्थापक, थिंक्लोक (ThinkClock) श्री मानव सुबोध (सबसे बायें) (ग्लोबल प्रबंधक, शौध विभाग, इंटेल कंपनी) और प्रो. के. कुमार (सबसे दायें) (अध्यक्ष NSRCEL, आईआईएम बैंगलोर) से पुरस्कार प्राप्त करते हुए
श्री बाबु डी. चौधरी, ने अपनी अद्वितिय टेक्टाइल टेक्नोलोजी से भारत भर के 1000 से अधिक प्रतिभागियों को हराकर प्रतिष्ठित प्रतियोगिता – “नेक्स्ट बिग आईडिया” के शीर्ष तीन विजेताओं में स्थान बनाकर यह उल्लेखनीय सफलता हासिल की हैं | यह प्रतियोगिता इंटेल कम्पनी और भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आईआईएम बैंगलोर के तत्वावधान में पिछले महीने आयोजित की गयी | इस प्रतियोगिता के शीर्ष तीन विजेता अब विश्व स्तर पर आयोजित वैश्विक प्रौद्योगिकी उद्यमिता प्रतियोगिता में भाग लेंगे जो की इंटेल कम्पनी द्वारा अमेरिका के विश्वप्रसिद्ध कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में अगले नवम्बर में आयोजित की जाएगी |
विजेता के रूप में श्री बाबु डी. चौधरी को भारत सरकार की तरफ से पचत्तर हजार रुपये का नकद पारितोषिक एवं विश्वस्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने का खर्चा दिया गया | गौरतलब हैं कि पच्चीस वर्षीय श्री बाबु डी. चौधरी, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद से कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढाई पूर्ण करके संस्थान में अपने गुरु प्रो. एम. राधाकृष्णा और प्रो. आर. सी. त्रिपाठी के मार्गदर्शन में एक शोध कम्पनी – थिंक्लोक इनोवेशन लैब्स (पी.) लिमिटेड की स्थापना की |
अपनी टेक्टाइल टेक्नोलोजी के बारे में बताते हुए श्री बाबु डी. चौधरी ने कहा “वायरलेस मार्केट में उछाल के साथ, मोबाइल गजेट्स की बाढ़ सी आ गयी हैं | मोबाइल फोंस के नित नए आने वाले ढेरों मोडेल्स के कारण, खरीदतें समय उपभोक्ता अनगिनत विकल्पों की वजह से असमजंस की स्तिथि में पड़ जाता हैं | नया हैंडसेट खरीदने, उपभोक्ता जब स्थानीय दुकान पर आता हैं तो एक डमी मॉडल पकड़ा दिया जाता हैं, जिससे की उसको कुछ पता नहीं चलता हैं की उसके अन्दर क्या हैं | इस प्रौद्योगिकी से उपभोक्ता खरीदने से पहले, अब घर बैंठे इन्टरनेट के माध्यम से मोबाइल के अन्दर-बाहर पूरा देख सकते हैं | इसके जरिये आप हैंडसेट के सभी फीचर्स को इंटरनेट के माध्यम से इस्तेमाल करके देख सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे की आपने उसे अपने हाथ में पकड़ रखा हो |”
डॉ. एमडी तिवारी, आई. आई. आई. टी. इलाहाबाद के निदेशक ने कहा कि संस्थान को श्री बाबु डी. चौधरी कि इस सफलता पर गर्व हैं | अब आप किसी भी मोबाइल गैजेट को खरीदने से पहले आभासी इंटरफेस के माध्यम से इंटरनेट पर उपयोग करके देख सकते हैं | और पूरा 360 डिग्री से निगाह डाल सकते हैं | यह सब अब थिंक्लोक की टेक्टाइल टेक्नोलोजी के जरिये घर बैंठे संभव हैं |
न्यायिकगण के जानेमाने विद्वानों ने इस तकनिकी को अपने निर्धारित मानदंडों के आधार पर क्रांतिकारी, अदभूत एवं विश्वस्तर पर व्यापक प्रभावशाली बताया हैं | श्री मानव सुबोध जो कि इंटेल कम्पनी में इनोवेशन सेल के ग्लोबल मेनेजर हैं, ने कहा कि इस तकनिकी में पुरे मोबाइल की दुनिया को बदलने की क्षमता हैं और इंटेल इस टेक्नोलोजी को अपने मोबाइल विभाग में उपयोग करने के लिए उत्सक हैं |
श्री बाबु डी. चौधरी कि सफलता से प्रभावित होकर इंग्लैंड के नेशनल एन्विरोंमेंट कमिसन ने उन्हें २२ लाख सालाना कि फेलोशिप पर अपने “अंडरग्राउंड वायरलेस सेंसर नेटवर्क” प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए आमंत्रित किया हैं | यह प्रोजेक्ट लन्दन के विश्वविख्यात इम्पिरिअल कॉलेज एवं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के तत्वावधान में चलेगा | इस प्रोजेक्ट के लिए श्री बाबु डी. चौधरी अगले महीने से इम्पिरिअल कॉलेज, लन्दन के डिपार्टमेंट ऑफ़ कम्प्यूटिंग में डॉ. जुली ए. मिकैन के साथ रिसर्च करेंगे और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिको के साथ सहयोग करेंगे | इसके अलावा उन्हें वहां पी. एच. डी. करने कि विषिस्ट अनुमति दी गयी, जब कि उन्होंने मास्टर डिग्री भी नहीं की हैं |
श्री बाबु डी. चौधरी के बारे में:
श्री बाबु डी. चौधरी
श्री बाबु डी. चौधरी राजस्थान के पाली जिले के ग्राम -पीपलिया कलां में बेरा -भारंडा स्थित एक साधारण अशिक्षित किसान परिवार में पले-बढे हैं और बड़ी कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए यहाँ तक पहुचें हैं | पानी के अभाव में ३-बीघा पुश्तेनी जमीन की खेती से इनके पिता श्री कानाराम सैंणचा के लिए परिवार का जीवनयापन भी मुश्किल था, फिर भी उन्होंने अपने बेटे को उच्च शिक्षा के लिए भेजने का प्रसंसनीय साहस दिखाया और श्री बाबु डी. चौधरी को गाँव का पहला इंजिनियर बनाया |
अपना अनुभव बताते हुए श्री बाबु डी. चौधरी ने व्यक्त किया – “इस मुकाम तक पहुचने के लिए, मैं अपने पिता एवं समाज का ऋणि रहूँगा | मुझे याद हैं, इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा का फार्म तक भरने के लिए मुझे पैसे उधार मांगने पड़े थे | बिजली के अभाव में चिमनी एवं किसान टोर्च की रौशनी में पढ़ा करता था | मैंने अपने दुर्भाग्य को अपनी ताकत बनाया | लेकिन मुझसे यहाँ आस-पास के किसानो की हालत देखी नहीं जाती | मैं यह देखकर व्यथित हूँ कि आर्थिक परिस्थितिया बहुत सारी होनहार प्रतिभाओ के सपने तोड़ रही हैं | जब मैंने आर्थिक सहायता के लिए बैंक से संपर्क किया तो उन्होंने मेरे पिता के पास पर्याप्त जायदाद और आयदान नहीं होने के कारण ऋण देने से इनकार कर दिया | चारो तरफ सहायता के लिए हाथ पाँव मरने के पश्चात मुझे सारी सरकारी योजनाये ढोंग नजर आई | इन्ही परिस्थितियों से मुझमे यह प्रेरणा उत्पन्न हुई कि मुझे इंजिनियर बनकर उद्यमिता विकास के जरिये यहाँ के लोगो के लिए कुछ करना हैं | और इसी प्रेरणा से मैंने अपना व्यक्तिगत भविष्य दावं पर लगा कर थिंक्लोक कम्पनी की स्थापना की हैं | लेकिन मुझे खेद हैं कि मेरे सपने को लोग नहीं समझ पा रहे हैं और मुझे उनकी संकीण मानसिकता एवं टांग खिंचाई से खिन्न होकर फिर से विदेश का रुख करना पड़ रहा हैं |”