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आज आपा बात कर रियां हाँ.. घर जेडों सुख कठैई नहीं : सीरवी
Posted By : Posted By Raju Seervi on 10 Mar 2023, 13:06:21

आज आपा बात कर रियां हाँ.. घर जेडों सुख कठैई नहीं : सीरवी
राम राम सा आज आपा बात कर रियां हाँ.. घर जेडों सुख कठैई नहीं...हुकुम मनुष्य चाहे संसार रे किन्ही भी कोने में घूम ले, मौज-मस्ती कर ले, स्वर्ग जेड़ो आनन्द भोग ले पर सुख उने अपणे घर में आने ही मिले। घर सूं दूर यदि चलो भी जावे तो थोड़े दिनों रे बाद ही अपणे घर री याद सतावण लाग जावें। उण समय मन करें कि उड़ने अपणे आशियाने में वापिस पहुँच जाऊं।
हुकुम सृष्टि रो रचयिता परमात्मा भी घर ने एक धुरी बणा दियों है। इने इर्द-गिर्द आपा गोल-गोल घूमता रेहवा। घर सूं निकलें तो दफ्तर, स्कूल वगैरह जावें पर लौटने पाछो आ जावें। शापिंग वास्तें बाजार जावें, शादी-ब्याह में सम्मिलित हवें, पार्टी करें घूमने-फिरने देश-विदेश कठे भी जावें फिर लौटने घर ही आवें। कोई मारवाड़ी ठीक कयों है कि कठे भी जाओ पर ठौर घर ही है।
घर रें सदस्यों में कितों ही मनमुटाव क्यों न हो, खूब लड़ाई-झगड़े हुवता हों, जूतम पैजार भी हुवती हो, चाहे वे एक-दूसरे रा चेहरा तक देखना पसंद नहीं करें फिर भी घर रो मोह ऐडो है जो उन्हें बाँध ने राखे... ज्यों ही शाम ढलें और रात हुवें, मन घरे भागण वास्तें बेचैन हुवण लाग जावें।
अपणों घर चाहे आलिशान महल हो, फ्लैट हो, झोपड़ी हो या टूटो-फूटो हो यानि कि केड़ो भी हो घर ही हुवें। घर हर मनुष्य रे वास्तें एक विश्राम ठिकानों ही हुवें हुकुम जठे सारे दिन री थकान गायब हूँ जावें।
यदि घर बनाणे रो चलन नहीं हुवतों तो शायद सगळा खानाबदोश लोगों री तरह एक जगह सूं दूसरी जगह भटकता रेवता। जठे रात हुवती वठे ही जमीन पर सो जावता और दिन हुवतें ही घुमक्कड़ों रे ज्यों चाल पड़ता। जणे आपाणे कने सगळी सुख-सुविधाओं रा साधन भी नहीं था जेड़ा आज आपाणे अपणे घरों में आपा जोड़ ने राखा। इण युग में आपा उण जीवन री कल्पना भी नहीं कर सकां जठे न सुख-सुविधा रा साधन था, न घर जेडी सुरक्षा थी और न ही इता अच्छा यातायात रा भी साधन था।
ईश्वर ने आपाणे ऊपर बहुत ही उपकार कियों है। श्री हरी ज्यों दिन रे बाद रात आराम करण री बणाई हैं। घर बणाने री सोच डालने मनुष्य ने आराम करण रो एक ठिकाणों बणायो है जठे मनुष्य बिना रोकटोक खुद री मनमर्जी सूं रह सके और आपरी मेहनत री कमाई सूं सुविधाओं रो भोग कर सकें।
अपणे घर आणे रे बाद जो सुख मनुष्य पावें वे बल्ख और बुखारे समृद्ध स्थानों में भी नहीं मिले। हुकुम इन्ही बात ने छज्जू भक्त इण शब्दों में कहियों है-
जो सुख छज्जू दे चौबारे, न ओ बल्ख न बुखारे

मनोहर सीरवी
संपादक
सीरवी समाज डॉट कॉम
निवासी- जनासनी-साँगावास (मैसूरु-कर्नाटक)