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बेटी के ससुराल में बेटी के माता-पिता को सामान्य रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये : मनोहर सीरवी
Posted By : Posted By Raju Seervi on 17 Jul 2022, 07:22:55

पारिवारिक रिश्ते बचाने एवं सम्बन्ध मजबूत करने के लिए जरुरी विचार योग्य पहल। बेटी के ससुराल में बेटी के माता-पिता को सामान्य रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। जिससे  प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है, उसी प्रकार प्रत्येक परिवार को भी अपने घर में अपनी इच्छा से जीने का अधिकार हैं। जैसे एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। उसी प्रकार से एक परिवार को दूसरे परिवार की परम्पराओं में भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। 
एक ही परिवार में बाप और बेटा दोनों 100% एक समान जीवन नहीं जी सकते क्योंकि दोनों के अपने संस्कार अलग-अलग हैं, रुचि अलग-अलग हैं, इसलिए वे अपने रूचि एवं संस्कार के हिसाब से अपना-अपना जीवन जीते हैं। इसी प्रकार से हर परिवार के संस्कार भी अलग-अलग हैं। अतः एक परिवार को दूसरे परिवार की परम्पराओं में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। 
बेटी, शादी के बाद ससुराल गई। माता-पिता ने वर्षों तक जिस बेटी को पाल-पास कर बड़ा किया हो, उनको उस बेटी से राग-मोह होना तो स्वाभाविक है।  अब माता-पिता को अपनी बेटी से राग-मोह होने के कारण उसके दुख-सुख तथा सुरक्षा की चिन्ता भी रहती है, परन्तु इस चिन्ता में वे अनेक बार अपनी सीमा का अतिक्रमण कर जाते हैं जो कि नहीं करना चाहिये। 
यह सत्य हैं कि शादी से पहले बेटी माता-पिता की थी। उस परिवार की सदस्य थी। तब तक उसके सुख-दुख एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी उसके माता-पिता की थी। अब शादी के बाद उसका घर एवं माता-पिता बदल गये हैं। अब तो ससुराल ही उसका घर हैं। उसके पति, सास, ससुर ही उसके रक्षक हैं, वही उसके सुख दुख के साथी हैं।  अब बेटी की शादी के बाद माँ-बाप को यह चिन्ता नहीं करनी चाहिये परन्तु राग-मोह अधिक होने के कारण अनेक बार ऐसा देखा जाता है कि माता-पिता, बेटी से फोन पर बात करते हैं, और बातें भी क्या होती हैं- आज क्या सब्जी बनाई, कौन सी दाल बनाई, तुम्हारे ससुर ने क्या कहा, तुम्हारी सास ने क्या कहा, तुम्हारे पति ने कोई गड़बड़ तो नहीं की, तुम्हारी ननद ने तुम्हारे साथ कोई दुर्व्यवहार तो नहीं किया, तुम्हारी सास ने ऐसा किया, यह गलत है। तुम्हारे देवर को ऐसा नहीं बोलना चाहिये, तुम किसी बात की चिन्ता मत करो, हम बैठे हैं न , इत्यादि-इत्यादि। इस तरह की बातें करके माता-पिता के द्वारा बेटी के ससुराल में हस्तक्षेप करना अनुचित है। 
अब बेटी का घर ससुराल है। ससुराल परिवार की जीवन को जीने की अपनी परम्परायें हैं। वे अपने ढंग से अपना जीवन जीने को स्वतंत्र हैं। जब बेटी ससुराल में चली गई तो अब वह ससुराल के परिवार की सदस्य है। अब उसे वहाँ की परम्पराओं में ढलना होगा। अन्यथा वह कभी भी उस परिवार का अंग नहीं बन पायेगी और न ही निश्चिन्त होकर उसे अपना घर समझ पायेगी। और न ही उसे वहाँ पर उसके अधिकार प्राप्त हो पायेंगे। इसलिए अन्य किसी व्यक्ति या परिवार बेटी के माता-पिता आदि को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। 
परन्तु बेटी के सुख-दुख और सुरक्षा की चिन्ता करते हुए ससुराल परिवार की परम्पराओं में हस्तक्षेप करने पर ससुराल पक्ष को कठिनाई होती है, उससे परस्पर लड़ाई-झगड़े बढ़ते हैं। आपस में प्रेम भी कम हो जाता है। इससे और भी अनेक छोटी-बड़ी समस्यायें उत्पन्न होती हैं। तो सभी माताओं-पिताओं से मेरा विनम्र निवेदन है कि बेटी के ससुराल में हस्तक्षेप न करें। यह सामान्य नियम है। 
मेरा तो यही कहना हैं आप सभी से की जब तक बेटी स्वयं माता-पिता को शिकायत न करे, कि मेरे साथ यहां ससुराल में बहुत अत्याचार हो रहा है। अब मैं यहाँ नहीं रह सकती, तब तक माता-पिता को बेटी के ससुराल में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। यदि बेटी के माता-पिता ससुराल पक्ष के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करें तो सम्बन्ध मधुर व सुरक्षित रहेंगे। यदि अपनी सीमा का उल्लंघन करेंगे तो परिणाम अच्छे नहीं आयेंगे और बार-बार हस्तक्षेप करने पर विवाह सम्बन्ध टूट भी सकता है।

आपका
मनोहर सीरवी सुपत्र श्री रतनलाल जी राठौड़ जनासनी-साँगावास (मैसूरु)
संपाद : सीरवी समाज डॉट कॉम