व्यक्ति की पहचान, प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी सुपुत्र श्रीमान रतनलाल जी राठौड़ जनासनी - साँगावास (मैसूरु)
व्यक्ति की पहचान
आज के इस आधुनिक युग में कौन व्यक्ति कैसा है, यह पता चलना तो कठिन बात है किन्तु उस व्यक्ति का व्यवहार जिस रूपमें सामने आता हैं, उसके आधार पर व्यक्ति को पहचाना जा सकता हैं। हमारी पहचान का सबसे बड़ा साधन है व्यवहार। हम बाहरी जगत में कैसे प्रकट होते हैं? हमारा आचरण कैसा है? हमारी अभिव्यक्ति कैसी है? हम दूसरों के प्रति पदार्थ के प्रति, व्यक्ति के प्रति कैसा व्यवहार करते हैं? उस व्यवहार में हमारा पूरा व्यक्तित्व झलक जाता हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु ने सटीक कहा है - अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता है। एक आदमी बगीचे के अन्दर चल रहा है और जगह-जगह गन्दगी फैलाता चल रहा है। फूलों को तोड़ रहा है। बिना मतलब पेड़-पौधों, वनस्पति सबको खराब कर रहा है। वहीँ दूसरी और एक व्यक्ति ऐसा भी है जो प्रातः काल घूमता है और उसे जहाँ कहीं कुछ पड़ा दिखाई देता हैं, वह उसे उठाकर मुख्यमार्ग से दूर रख देता है। दो व्यक्ति हैं और दोनों का आचरण भिन्न है। इससे पता चलता है कि व्यक्ति के अंतर्मन में केसी जागरूकता है, और यह व्यक्ति कैसा है। दार्शनिक विलियम शेक्सपियर ने मनुष्य की चेतना को इन शब्दों में मार्मिक अभिव्यक्ति दी है कि हम जानते हैं कि क्या हैं हम, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं। एक आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण में जागरूकता बहुत जरूरी है।
जीवन के आदर्श मूल्यों का ही परिणाम है जागरूकता। छोटी से छोटी घटना के प्रति छोटी से छोटी वस्तु के प्रति, और छोटे से छोटे व्यक्ति के प्रति जागरूकता आती है तो समझना चाहिए कि व्यक्ति का जीवन सफल एवं सार्थक है !.. लेकिन कुछ सामाजिक प्राणी अनायास ही अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए-इनको गिराओ, इनको उठाओ, तोड़-फोड़, विघटन करना, केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना तथा लोगों का गलत इस्तेमाल करना आदि, इन्हीं सब में वे अपना जीवन सार्थक समझते हैं।
इसीलिए मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था कि मैने प्रेम को ही अपनाने का निर्णय किया है। द्वेष करना बोझिल काम है और मेरे अनुसार तो बुजदिलों का काम है। इसलिए अच्छे व्यक्तित्व के निर्माण के लिए मन को बदलना जरूरी है। साथ-साथ इसका पूरक वाक्य है कि व्यवहार भी बदलना जरूरी है। व्यक्ति मन से बदलेगा और बाहर से नहीं बदलेगा, यह बात सम्भव नहीं है। जो भीतर से बदलेगा, वह बाहर से भी बदलेगा। इस प्रकार बदलाव दोनों दिशाओं में आएगा। बाहर से कोई बदलता है तो यह जरुरी नहीं कि वो भीतर से भी बदल जाए। बहार तो छल हो सकता है। एक आदमी बाहर से बदल गया, बाहर बदलाव दिखाता है किन्तु हो सकता है कि भीतर प्रवंचना है और ऐसे लोग अपने मूल उद्देश्य को कभी नहीं प्राप्त करते हैं चाहे जितना जतन कर लें।
इस लिए आदर्श व्यक्तित्व की निशानी है कि वह पहले भीतर से बदलेगा।
प्रस्तुति :- मनोहर सीरवी सुपुत्र श्रीमान रतनलाल जी राठौड़ जनासनी - साँगावास (मैसूरु)
संपादक , सीरवी समाज डॉट कॉम