सीरवी समाज - ब्लॉग
माता पिता की अति महत्वाकांक्षा से 27-28-32 उम्र से अदिक की कुंवारी लड़कियां घर बैठी हैं। अगर अभी भी माँ-बाप नहीं जागे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो सकती है : सीरवी
Posted By : Posted By Raju Seervi on 09 Feb 2022, 07:33:06
माता पिता की अति महत्वाकांक्षा से 27-28-32 उम्र से अदिक की कुंवारी लड़कियां घर बैठी हैं। अगर अभी भी माँ-बाप नहीं जागे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो सकती है। हमारा समाज आज बच्चों के विवाह को लेकर इतना सजग हो गया है कि आपस में रिश्ते ही नहीं हो पा रहे हैं। समाज में आज 27-28-32 उम्र तक की बहुत सी कुँवारी लड़कियाँ घर बैठी है, क्योंकि इनके सपने हैसियत से भी बहुत ज्यादा है इस प्रकार के कई उदाहरण है। ऐसे लोगों के कारण समाज की छवि बहुत ख़राब हो रही है। सबसे बड़ा मानव सुख, सुखी वैवाहिक जीवन होता है। पैसा भी आवश्यक है, लेकिन कुछ हद तक। पैसे की वजह से अच्छे रिश्ते ठुकराना गलत है। पहली प्राथमिकता सुखी संसार व् अच्छा घर-परिवार होना चाहिये। ज्यादा धन के चक्कर में अच्छे रिश्तों को नजर-अंदाज करना गलत है। सपंति खरीदी जा सकती है लेकिन गुण नहीं। मेरा मानना है कि घर-परिवार और लड़का अच्छा देखें लेकिन ज्यादा के चक्कर में अच्छे रिश्तें हाथ से नहीं जाने दें। सुखी वैवाहिक जीवन जियें। 30 की उम्र के बाद विवाह नहीं होता, समझौता होता है और मेडिकल स्थिति से भी देखा जाए तो उसमें बहुत सी समस्याएँ उत्तपन्न होती हैं। आज उससे भी बुरी स्थिति कुंडली मिलान के कारण हो गई हैं। आप सोचिए जिनके साथ कुंडली मिलती है लेकिन घर और लड़का अच्छा नहीं और जहाँ लड़के में सभी गुण हैं वहां कुण्डली नहीं मिलती और हम सब कुछ अच्छा होने के कारण भी कुण्डली की वजह से रिश्ता छोड़ देते हैं, आप सोच के देखें जिन लोगों के 36 में से 20 या फिर 36/36 गुण भी मिल गए फिर भी उनके जीवन में तकलीफें हो रही है। क्योंकि हमने लड़के के गुण नहीं देखे। कुंडली मिलान के गुण देखे। पंडितों ने पढ़े लिखे आधुनिक समाज को एक सदी और पीछे धकेल दिया कुंडली मिलान, कुंडली मिलान इस चक्कर में अच्छे रिश्ते नहीं हो पा रहे हैं और ये कुंडली का बिजनेस आज करोड़ों रुपए का हो गया है, सुबह टेलीविजन चालू करते ही पण्डित जी आपका भविष्य बताने लग जाते है और उनको खुद के भविष्य का पता नहीं होता कि उनकी बेटा या बेटी की आगे स्थिति क्या होगी। आजकल समाज में लोग बेटी के रिश्ते के लिए (लड़के में) चौबीस टंच का सोना खरीदने जाते है, देखते-देखते चार पांच साल व्यतीत हो जातें है, उच्च शिक्षा या जॉब के नाम पर भी समय व्यतीत कर देते हैं। और लड़के देखने का अंदाज भी समय व्यतीत का अनोखा उदाहरण हो गया है? खुद का मकान है कि नहीं? अगर है तो फर्नीचर कैसा है? घर में कमरे कितने है? गाड़ी है की नहीं?है तो कौन सी है? रहन-सहन, खान-पान कैसा है? कितने भाई-बहन हैं? बंटवारे में माँ-बाप किनके गले पड़े हैं? बहन कितनी हैं, उनकी शादी हुई है कि नहीं? माँ-बाप का स्वभाव कैसा है? घर वाले, नाते-रिश्तेदार आधुनिक ख्यालात के हैं कि नहीं? बच्चे का कद क्या है? रंग-रूप कैसा हैं? शिक्षा, कमाई, बैंक बैलेंस कितना है? लड़का-लड़की सोशल मीडिया पर एक्टिव है कि नहीं? उसके कितने दोस्त हैं? सब बातों पर पूछताछ पूरी होने के बाद भी कुछ प्रश्न पूछने में और सोशल मीडिया पर वार्तालाप करने में और समय व्यतीत हो जाता है। हालात को क्या कहे माँ-बाप की नींद ही खुलती है 25 की उम्र पर। फिर चार-पांच साल की यह दौड़-धुप बच्चों की जवानी को बर्बाद करने के लिए काफी है। इस वजह से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते हैं। और माँ-बाप अपने ही बच्चों के सपनों को चूर चूर-चूर कर देते हैं। एक समय था जब खानदान देख कर रिश्ते होते थे। वो लम्बे भी निभाते थे। समधी-समधन में मान मनुहार थी। सुख-दुख में साथ था। रिश्ते-नाते की अहमियत का अहसास था। चाहे धन-माया कम थी मगर खुशियां घर-आँगन में झलकती थी। कभी कोई ऊँची-नीची बात हो जाती थी तो आपस में बड़े-बुर्जुर्ग संभाल लेते थे। तलाक शब्द रिश्तों में था ही नहीं, दाम्पत्य जीवन खट्टे-मीठे अनुभव में बित जाया करता था। दोनों एक-दूसरे के बुढ़ापे की लाठी बनते थे। और पोते-पोतियों में संस्कारों के बीज भरते थे। अब कहाँ है वो संस्कार? आँख की शर्म तो इतिहास हो गई। नौबत आ जाती है रिश्तों में समझौता करने की। लड़का-लड़की अपने समाज के नहीं होंगे तो भी चलेगा, ऐसी बातें भी सामने आ रही है। आज समाज की लड़कियां और लड़के खुले आम दूसरी जाती की तरफ जा रहे है और दोष दे रहे है कि समाज में अच्छे लड़के या लड़कियाँ मेरे लायक नहीं हैं।
प्रस्तुति : मनोहर सीरवी सुपुत्र श्री रतनलाल जी राठौड़ जनासनी-साँगावास सह संपादक सीरवी समाज सम्पूर्ण भारत डॉट कॉम